Thursday 26 December 2019

क्या आप शिक्षक है? और शिक्षण को गम्भीरता से लेते हुए शिक्षण में गुणवत्ता सुधार हेतु प्रयत्नशील है और मार्गदर्शन चाहते है?

*क्या आप शिक्षक है? और शिक्षण को गम्भीरता से लेते हुए शिक्षण में गुणवत्ता सुधार हेतु प्रयत्नशील है और मार्गदर्शन चाहते है?*🙏

*पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी* कहते हैं कि - *शिक्षा से तातपर्य मूलतः व्यक्तित्व के समग्र विकास व प्रतिभा का पूर्णतया निखार है। जिससे व्यक्ति स्वयं के निर्माण व समाज उत्थान में अहम भूमिका निभा सके।*

*स्वामी विवेकानंद जी कहा है कि मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करने वाली प्रक्रिया का नाम शिक्षा है।*

*आ• वीरेश्वर उपाध्याय जी कहते हैं,  मनुष्य में मानवता गढ़ने व उसमें देवत्व उभारने की प्रक्रिया विद्या है, शिक्षा से मिले ज्ञान को उपयोग कहाँ करना है यह विद्या सिखाती है। कोई भी शक्ति वह चाहे शिक्षा हो, हथियार हो, विज्ञान हो या बुद्धि हो स्वयं में अच्छा बुरा नहीं होता। उसका उपयोगकर्ता चेतना मनुष्य के अच्छे बुरे होने पर उसका उपयोग अच्छा बुरा होता है।*

*शिक्षण जगत से जुडी कई समस्याओं का समाधान और प्रश्नों को हल पुस्तक - वांगमय 41 "शिक्षा एवं विद्या" से पा सकते है।*


इस वांगमय के कुछ महत्वपूर्ण चैप्टर जो आपके कई प्रश्नों को सुलझा सकते हैं ?

१. शिक्षा का सही स्वरूप क्या हो? - पृष्ठ 1.1

२. क्या शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास ? - पृष्ठ 1.3

३. क्या शिक्षा ऐसी हो जो जीवन की समस्या सुलझाए? - पृष्ठ 1.17

४. क्या शिक्षा के साथ शिक्षा प्राप्ति का उद्देश्य जोड़ा जाना चाहिए ? - पृष्ठ 1.25

५. लोग आज की उच्च शिक्षा को एक जाल-जंजाल क्यों मानते हैं ? - पृष्ठ 1.49

६. आधुनिक शिक्षा की विचारणीय समस्याएं ? - पृष्ठ 1.58

७. प्राचीन शिक्षा पद्धति की उपयोगिता ? - पृष्ठ 1.51

८. भारतीय शिक्षा पद्धति में क्या परिवर्तन आवश्यक है ? - पृष्ठ 1.59

९. कठिनाइयों की पाठशाला में साहस व पुरुषार्थ का शिक्षण क्यों जरूरी है? - पृष्ठ 1.133

१०. बौद्धिक कायाकल्प में समर्थ शिक्षा कैसे बने ? - पृष्ठ 2.1

११. शिक्षितो की नैतिक जिम्मेदारी क्या है ? - पृष्ठ 2.14

१२. बच्चों को शिक्षा के साथ साथ सुसंस्कार भी दें.. पृष्ठ 2.24

१३. सोवियत विद्यार्थी का जीवनक्रम  - पृष्ठ 2.22

१४. सेवा साधना के सहारे व्यक्तित्व का उत्कर्ष कैसे हो ? - पृष्ठ 2.59

१५. छात्र निर्माण एक टीम वर्क है, छात्र निर्माण में शिक्षको व अभिवावकों की भूमिका ? -  पृष्ठ 3.1

१६. शिक्षको के महान उत्तरदायित्व क्या है? - पृष्ठ 3.7

१७. शिक्षण प्रशिक्षण उपयुक्त सही वातावरण क्या हो ? - पृष्ठ 3.47

१८. अनुशासित छात्र ही प्रगतिशील समाज के कर्णधार ? - पृष्ठ 3.52

१९. आस्तिकता क्यों आवश्यक है? - 3.67

२०. अभिवावकों का सहयोग क्यों आवश्यक है? - पृष्ठ 3.68

२१. स्कूल भेजने के साथ यह भी ध्यान रखे? - पृष्ठ 3.81

२२. शिक्षा-विस्तार ही समाज की प्रगति का मूल आधार क्या है ? - पृष्ठ 4.1

२३. शिक्षण का लक्ष्य हो - सोये को जगाना ? - पृष्ठ 4.5

२४. अशिक्षा की तरह दुर्बुद्धि भी विघातक है ? - पृष्ठ 4.54

२५. व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास शिक्षा और विद्या के समन्वय से ? - पृष्ठ 5.1

२६. जीवन विद्या का विस्तार - जिसे किये बिना कोई गति नहीं - पृष्ठ 5.44

२७. एक लाख अध्यापकों द्वारा विद्या विस्तार का श्री गणेश - पृष्ठ 5.45

28. लोकमानस-परिष्कार का प्रशिक्षण - 5.52

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मैकाले की शिक्षा नीति आज भी पढ़ाई तथा दिखाई जाती है। जब उसका 17 साल का प्रवास पूरा हुआ तो वह व्रिटेन की संसद में हाउस आफ कामन में 2 फरवरी 1835 को कुछ इस प्रकार एक लम्बा भाषण दिया था। उसके प्रमुख अंश इस प्रकार हैं –

I have travelled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth i~ have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that i~ do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, i~ propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation’

इसी भाषण के अन्त में वह कहता है – ‘‘ भारत में जिस व्यक्ति के घर में मैं कभी भी गया तो मैंने देखा कि वहां सोनों के सिक्को का ढ़ेर एसे लगा रहता है जैसे कि चने या गेहूं का ढ़ेर किसानों के घरों में लगा रहता है।’’ वह कहता है कि भारतवासी कभी इन सिक्कों को गिन नहीं पाते, क्योकि उन्हें गिनने की फुर्सत नहीं होती है। इसलिए वे इसे तराजू पर तौलकर रखते हैं। किसी के घर पर 100 किसी के 200 तो किसी के यहां 500 किलो सोना रहता है। इस तरह भारत के घरों में सोने का भंडार भरा हुआ था।

*स्वयं विचार कीजिये ... शिक्षा जगत में परिवर्तन व शिक्षा की गुणवत्तापूर्ण में सकारात्मक सुधार की कितनी आवश्यकता है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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