Sunday, 15 December 2019

बुखार, फ़ीवर, ज्वर के कारण व निवारण

*बुखार, फ़ीवर, ज्वर के कारण व निवारण*

यह पोस्ट आपके ज्ञानवर्धक व ज्वर के कारण निवारण की जानकारी हेतु है। सबके शरीर की प्रकृति अलग अलग होती है, अतः दवाओं के प्रयोग से पूर्व आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह अवश्य लीजिये।

यदि बुखार किसी इन्फेक्शन के कारण होता है तो ऐलोपौथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार रोगी को एण्टीबायोटिक दवाई दी जाती है और कोर्स के रूप में तब तक दवा दी जाती है, जब तक इनफेक्शन समाप्त नहीं हो जाता।

*आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति रोग को दबाने की नहीं, रोग को कारण सहित जड़ से उखाड़कर फेंकने की है। आयुर्वेद ने ज्वर के 8 भेद बताए हैं यानी ज्वर होने के 8 कारण माने हैं*।

1. वात 2. पित्त 3. कफ 4. वात पित्त 5. वात कफ 6. पित्त कफ 7. वात पित्त कफ। इनके दूषित और कुपित होने से तथा 8. आगन्तुक कारणों से बुखार होता है।

निज कारण शारीरिक होते हैं और आगंतुक कारण बाहरी होते हैं। निज एवं आगन्तुक ज्वर के भेद निम्नलिखित हैं-

*निज द्वारा उत्तपन्न*  : 1. मिथ्या आहार-विहार करने से हुआ ज्वर। 2. शरीर में दोष पहले कुपित होते हैं लक्षण बाद में प्रकट होते हैं। 3. दोष भेद से ज्वर 7 प्रकार का होता है। 4. चिकित्सा दोष के अनुसार होती हैं।

*आगन्तुक* : 1. अभिघात, अभिषंग, अभिचार और अभिशाप के कारण ज्वर का होना। 2.शरीर में पहले लक्षण प्रकट होते हैं, बाद में दोषों का प्रकोप होता है। 3. कारण भेद से अनेक प्रकार का होता है। 4. चिकित्सा का निर्णय कारण के अनुसार होता है।

*ज्वर 104 या अधिक डिग्री तक पहुंच गया हो तो सिर पर ठंडे पानी की पट्टी बार-बार रखने, पैरों के तलुओं में लौकी का गूदा पानी के छींटे मारते हुए घिसने और बाद में दोनों तलुओं में 1-1 चम्मच शुद्ध घी मसलकर सुखा देने से ज्वर उतर जाता है या हल्का तो होता ही है।*

*सामान्य ज्वर के लिए आयुर्वेदिक औषधियाँ*

*ज्वरनाशक चिकित्सा* :
साधारण ज्वर के लिए पतञ्जलि दिव्य फार्मेसी की - मृत्यंजय रस 2 गोली, महासुदर्शन घनवटी 2 गोली, महाज्वरांकुश रस 2 गोली (सब गोलियां 1-1 रत्ती वाली) सुबह, दोपहर और शाम को पानी के साथ लेना चाहिए। बच्चों को (12 वर्ष से ऊपर) 1-1 गोली और इससे कम उम्र वाले छोटे बच्चों को आधी-आधी गोली देना चाहिए। तीनों गोलियों को एक साथ लेना होगा। इन गोलियों को लेने के एक घंटे बाद अमृतारिष्ट 2 चम्मच और महासुदर्शन काढ़ा 2 चम्मच आधा कप पानी में डालकर पी लेना चाहिए। छोटी उम के बच्चों को मात्रा कम करके पिलाएँ।

*पथ्य(ज्वर के दौरान भोजन में क्या खाना है?* : मूँग की दाल और दाल का पानी, परवल, लौकी, अनार, मौसम्बी का रस, दूध, पपीता आदि हल्के पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

*अपथ्य(ज्वर के दौरान भोजन में क्या नहीं खाना है?* : भारी अन्न, तेज मिर्च-मसालेदार, तले हुए पदार्थ, खटाई, अधिक परिश्रम, ठण्डे पानी से स्नान, मैथुन, ठण्डा कच्चा पानी पीना, हवा में घूमना और क्रोध करना यह सब वर्जित है।

*जीर्ण ज्वर चिकित्सा* : बहुत दिनों तक बुखार बना रहे तो इसे जीर्ण ज्वर कहते हैं। ऐसे जीर्ण की चिकित्सा के लिए अयमंगल रस 2 ग्राम, स्वर्ण मालिनी वसन्त 2 ग्राम और प्रवाल पिष्टी 5 ग्राम सबको मिलाकर बराबर वजन की 30 पुड़िया बना लें। 1-1 पुड़िया सुबह-शाम थोड़े से शहद के साथ मिलाकर चाट लें। पुराने बुखार को ठीक करने के लिए यह प्रयोग उत्तम है।

*शिशु ज्वर चिकित्सा* : संजीवनी वटी 1 गोली और महासुदर्शन घन वटी आधी गोली दोनों को पीसकर 1-1 पुड़िया सुबह-शाम शहद से मिलाकर चटा दें।

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