Friday, 20 December 2019

प्रश्न - *प्रिय दीदी.....किसी के प्रारब्ध के बीच में आना या किसी के लिये प्रार्थना करना क्या एक ही बात है?? हम यह उदाहरण सुनते हैं कि दूसरे के फटे में पैर मत डालो। क्या मुहावरा है यह कृपया समझाएँ*

प्रश्न - *प्रिय दीदी.....किसी के प्रारब्ध के बीच में आना या किसी के लिये प्रार्थना करना क्या एक ही बात है?? हम यह उदाहरण सुनते हैं कि दूसरे के फटे में पैर मत डालो। क्या मुहावरा है यह कृपया समझाएँ*

उत्तर- आत्मीय बहन,

किसी के फटे में टाँग डालकर उसे सही नहीं किया जा सकता, उसी तरह किसी के प्रारब्ध में प्रवेश करके उसके साथ प्रारब्ध झेलना बेवकूफ़ी है। जब तुम दर्जी नहीं और तुम्हें यह पता नहीं कि सामने वाले का कपड़ा कितना फटा है कितना सिलना पड़ेगा, कितना समय लगेगा तो दूसरे के फटे को सिलने की गारन्टी वारंटी नहीं लेनी चाहिए। यदि तुम दूसरे का कपड़ा सिलोगे तो तुम्हारा कौन सिलेगा? तुम ऑफिस में दूसरे का काम करोगे तो तुम्हारा कार्य कौन करेगा? तुम दूसरे के प्रारब्ध में प्रवेश करोगे तो फिर तुम्हारा प्रारब्ध कौन काटेगा?

प्रारब्ध कभी कभी आइसबर्ग की तरह  होता है, आपको लगता है छोटा मग़र वह आपको टाइटेनिक की तरह डूबा सकता है। केवल गुरु ही प्रारब्ध की गहराई जानता है, वही शिष्य के प्रारब्ध में प्रवेश कर सकता है। डूबने से वही बचाये जो तैरना जानता हो, हम और आप जो तैराकी में कुशल नहीं, उन्हें मदद के लिए बड़े को बुलाना चाहिए।

इसका अर्थ यह है कि किसी दूसरे के फटे कपड़े सिलने से अच्छा है, उसके हाथ में सुई-धागा दे दो, दूसरे के लिए प्रार्थना भी तब करो जब वह भी स्वयं के लिए प्रार्थना करे। किसी के लिए अखण्डजप व यज्ञ भी तब करो जब वह स्वयं साथ मे अखण्डजप व यज्ञ कर रहा हो। ऑफिस में दूसरे का कार्य करने से अच्छा है दूसरे को कार्य करने का तरीका बता दो, उचित सलाह दे दो। प्रारब्ध किसी का काटने से अच्छा है उसे प्रारब्ध शमन का तरीका बता दो, उसका उचित मार्गदर्शन कर दो।

📖 *गहना कर्मणो गति:* (कर्मफ़ल का सिद्धांत) पढ़िये और इसे गहराई से समझिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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