Monday 27 January 2020

वसंतपंचमी (29 एवं 30 जनवरी 2019, रविवार) पर्व की शुभकामनाएं एवं पूजन विधि

*।।वसंतपंचमी (29 एवं 30 जनवरी 2019, रविवार) पर्व की शुभकामनाएं एवं पूजन विधि।।*

*वसंत पंचमी मुहूर्त ( Vasant Panchami Muhurat 2020)*:
*पञ्चमी तिथि का प्रारम्भ* – 29 जनवरी 2020 को 10:45 AM बजे से होगा।
*पञ्चमी तिथि की समाप्ति* – 30 जनवरी 2020 को 01:19 PM बजे पर होगी।
*वसन्त पञ्चमी मध्याह्न का क्षण (पूजा मुहूर्त)* – 10:47 AM से 12:34 PM तक रहेगा।
पूजा के मुहूर्त की कुल अवधि – 01 घण्टा 49 मिनट्स की है।
ब्रह्ममुहूर्त पूजन के लिए सर्वोत्तम होता है, जिस तिथि में सूर्योदय हो व्रत उसी तिथि में किया जाता है। अतः जो व्रत रखते हैं वह व्रत 30 जनवरी को ही रखें।

अनुरोध - इस पूजनविधि को अधिक से अधिक फारवर्ड करें।

*||वसन्त पंचमी माहात्म्यबोध||*

वसन्त पंचमी शिक्षा, साक्षरता, विद्या और विनय का पर्व है। कला, विविध गुण, विद्या को- साधना को बढ़ाने, उन्हें प्रोत्साहित करने का पर्व है- वसन्त पंचमी। मनुष्यों में सांसारिक, व्यक्तिगत जीवन का सौष्ठव, सौन्दर्य, मधुरता उसकी सुव्यवस्था यह सब विद्या, शिक्षा तथा गुणों के ऊपर ही निर्भर करते हैं। अशिक्षित, गुणहीन, बलहीन व्यक्ति को हमारे यहाँ पशुतुल्य माना गया हैं। अशिक्षित, गुणहीन बलहीन व्यक्ति को हमारे यहाँ पशुतुल्य माना गया है। साहित्य सङ्गीत कलाविहीनः, साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। इसलिए हम अपने जीवन को इस पशुता से ऊपर उठाकर विद्या- सम्पन्न, गुण सम्पन्न- गुणवान् बनाएँ वसन्त पंचमी इसी की प्रेरणा का त्यौहार है।

भगवती सरस्वती के जन्म दिन पर उनके अनुग्रह के लिए कृतज्ञता भरा अभिनन्दन करें- उनकी अनुकम्पा का वरदान प्राप्त होने की पुण्यतिथि पर हर्षोल्लास मनाएँ, यह उचित ही है। दिव्य शक्तियों को मानवी आकृति में चित्रित करके ही उनके प्रति भावनाओं की अभिव्यक्ति सम्भव है। भावोद्दीपन मनुष्य की निज की महती आवश्यकता है। शक्तियाँ सूक्ष्म, निराकार होने से उनकी महत्ता तो समझी जा सकती है, शरीर और मस्तिष्क द्वारा उनसे लाभ उठाया जा सकता है, पर अन्तःकरण की मानस चेतना जगाने के लिए दिव्यतत्त्वों को भी मानवी आकृति में संवेदनायुक्त मनःस्थिति में मानना और प्रतिष्ठापित करना पड़ता है। इसी चेतना विज्ञान को ध्यान में रखते हुए भारतीय तत्त्ववेत्ताओं ने प्रत्येक दिव्य शक्तियों को मानुषी आकृति और भाव गरिमा में सँजोया है। इनकी पूजा, अर्चना, वन्दना, धारणा हमारी अपनी चेतना को उसी प्रतिष्ठापित देव गरिमा के समतुल्य उठा देती है, साधना विज्ञान का सारा ढाँचा इसी आधार पर खड़ा है।

पूर्व व्यवस्था में अन्य पर्वों की तरह पूजन मंच तथा श्रद्धालुओं के बैठने की व्यवस्था पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मंच पर माता सरस्वती का चित्र, वाद्ययन्त्र सजाकर रखना चाहिए। चित्र में मयूर न हो, तो मयूरपंख रखना पर्याप्त है। पूजन की सामग्री तथा अक्षत, पुष्प, चन्दन, कलावा, प्रसाद आदि उपस्थिति के अनुसार रखें।

षठ कर्म - पवित्रीकरण, आचमन, शिखावन्धन, प्राणायाम, न्यास और पृथ्वीपूजन कर लें। चंदन धारण और कलावा/रक्षासूत्र बांध लें। इस लेख के लिए संदर्भ 📖 पुस्तक *कर्मकांड भाष्कर, गायत्री परिवार शान्तिकुंज हरिद्वार* से लिया गया है।

*।।गुरु आह्वाहन।।*

ॐ अखण्डमण्डलाकारं, व्यापतं येन चरचराम,
तत्पदम् दर्शितं येन:, तस्मै श्री गुरुवे नमः।
यथा सूर्यस्य कांतिस्तु, श्रीरामे विद्यते ही या,
सर्वशक्तिस्वरूपायै, देव्यै भगवत्यै नमः।।
ॐ श्री गुरुवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

*॥ पूर्व पूजन क्रम॥*

पर्व पूजन के प्रारम्भिक उपचार षट्कर्म से रक्षाविधान तक सभी पर्वों की तरह करते हैं। विशेष पूजन क्रम में माँ सरस्वती का षोडशोपचार पूजन करके उनके उपकरण, वाहन तथा वसन्त पूजन का क्रम चलता है।

युग निर्माण मिशन के सूत्र संचालक का युगऋषि परम् पूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्मदिन  है, तो वसन्त पूजन के बाद उस क्रम को जोड़ा जाना चाहिए। सङ्कल्प में नवसृजन सङ्कल्प की संगति दोनों ही समारोहों के साथ ठीक- ठीक बैठती है। नवसृजन के लिए अपने समय, प्रभाव ज्ञान, पुरुषार्थ एवं साधनों के अंश लगाने की सुनिश्चित रूपरेखा बनाकर ही सङ्कल्प किया जाना उचित है।

समापन क्रम अन्य पर्वों की तरह ही पूरे किये जाते हैं।

*॥ सरस्वती आवाहन॥*

माँ सरस्वती शिक्षा, साक्षरता तथा भौतिक ज्ञान की देवी हैं। चूँकि वसन्त पंचमी भी शिक्षा- साक्षरता का पर्व है, इसलिए इस अवसर पर प्रधान रूप से देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है। सरस्वती का चित्र अथवा प्रतिमा स्थापित कर देवी सरस्वती का आवाहन करना चाहिए।

ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसुः॥ ॐ सरस्वत्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि ध्यायामि। - २०.८४

तदुपरान्त षोडशोपचार पूजन (पृष्ठ ९६) करके प्रार्थना करें-

ॐ मोहान्धकारभरिते हृदये मदीये, मातः सदैव कुरुवासमुदारभावे।

स्वीयाखिलावयव- निर्मल, शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्॥

सरस्वति महाभागे, विद्ये कमललोचने। विद्यारूपे विशालाक्षि, विद्यां देहि नमोऽस्तु ते॥

वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले, भक्तार्तिनाशिनि विरंचिहरीशवन्द्ये। कीर्तिप्रदेऽखिल- मनोरथदे महार्हे,

विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥

*॥ वाद्ययन्त्र पूजन॥*

वाद्य सङ्गीत मनुष्य की उदात्त भावनाओं और उसकी हृदय तरंगों को व्यक्त करने के सहयोगी साधन हैं। इसलिए इन साधनों का पूजन करना, उनके प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धा- भावना प्रकट करना है। स्मरण रहे, स्थूल और जड़ पदार्थ भी चेतनायुक्त तरंगो से स्वर लहरियों के संयोग से सूक्ष्म रूप में एक विशेष प्रकार की चेतना से युक्त हो जाते हैं, इसलिए वाद्य केवल स्थूल वस्तु नहीं; प्रत्युत् उनमें मानव हृदय की सी तरंगो को समझकर उनकी पूजा करनी चाहिए। चर्मरहित जो वाद्ययंत्र उपलब्ध हों, उन्हें एक चौकी पर सजाकर रखें। पुष्प, अक्षत आदि समर्पित कर पूजन करें।

ॐ सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यां, पत्नी सुकृतं बिभर्ति।

अपा  रसेन वरुणो न साम्नेन्द्र , श्रियै जनयन्नप्सु राजा॥- १९.९४

*॥ मयूरपूजन॥*

मयूर- मधुर गान तथा प्रसन्नता का सर्वोत्कृष्ट प्रतीक प्राणी है। मनुष्य मयूर की भाँति अपनी वाणी, व्यवहार तथा जीवन को मधुरतायुक्त आनन्ददायी बनाए, इसके लिए मयूर की पूजा की जाती है।

सरस्वती के चित्र में अंकित अथवा प्रतीक रूप में स्थापित मयूर का पूजन करें। अक्सर चित्रों में मयूर का चित्र होता ही है। यदि कहीं ऐसा चित्र सुलभ न हो, तो मयूर पंख को पूजा के लिए प्रयुक्त कर लेना चाहिए। निम्न मन्त्र से मयूर का पूजन किया जाए।

ॐ मधु वाताऽऋतायते, मधु क्षरन्ति सिन्धवः।

माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः॥ - १३.२७

*॥ वसन्त पूजा॥*

पुष्प प्रसन्नता, उल्लास और नवजीवन के खिलखिलाते रूप के मूर्त प्रतीक होते हैं। प्रकृति के गोद में पुष्पों की महक, उनका हँसना, खेलना, घूमना मनुष्य के लिए उल्लास, प्रफुल्लता का जीवन बिताने के लिए मूक सन्देश है। इसी सन्देश को हृदयंगम करने, जीवन में उतारने के लिए पुष्प का पूजन किया जाता है। खेतों में सर्षप (सरसों) पुष्प जो वासन्ती रंग के हों अथवा बाग आदि से फूल पहले ही मँगवाकर एक गुलदस्ता बना लेना चाहिए। वसन्त का प्रतीक मानकर इसका पूजन करें।

ॐ वसन्ताय कपिंजलानालभते, ग्रीष्माय कलविङ्कान्, वर्षाभ्यस्तित्तिरीञ्छरते, वर्त्तिका हेमन्ताय, ककराञ्छिशिराय विककरान्॥- २४.२०

सभी फूल का गुच्छा सरस्वती माता को अर्पित करें।

*||दीपयज्ञ||*

गायत्री मंत्र बोलते हुए दीपक सभी जलाएँ। जितने लोग उतने दीपक लें या 7 दीपक लें।

*||मानसिक आहुति||*

*गायत्री मंत्र(7 बार)* - ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् स्वाहा ।। इदं गायत्र्यै इदं नमः

*सरस्वती गायत्री मंत्र(3 बार)* - ऊँ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात् स्वाहा ।। इदं सरस्वत्यै इदं नमः

*गणेश गायत्री मंत्र(3 बार)* - ॐ एक दंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय
धीमहि। तन्नो दंतिः प्रचोदयात् स्वाहा ।। इदं गणेशाय इदं नमः

*महामृत्युंजय मंत्र(3 बार)* - ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥स्वाहा ।। इदं महामृत्युंजयाय इदं नमः

*॥संकल्प ॥*
अक्षत पुष्प लेकर सङ्कल्प बोलें और भगवान की पूजन थाली में अर्पित कर दें।

<. *अपना नाम यहां बोलें*.>..नामाहं वसन्तपर्वणि नवसृजन- ईश्वरीय योजनां अनुसरन् आत्मनिर्माण- परिवारनिर्माण त्रिविधसाधनासु नियमनिष्ठापूर्वकं सहयोगप्रदानाय संकल्पम् अहं करिष्ये॥

*।।शांति पाठ।।*

कलश का जल सभी के ऊपर छिड़कें और अंत मे सूर्य भगवान को जल अर्पित कर दें।

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,
पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:।।

पुस्तक कर्मकाण्ड भाष्कर में *वसंत पर्व पूजन* विस्तार से दिया है। उसे पढ़ें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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