Monday 27 January 2020

गुरुचेतना को स्वयं में धारण करने का ध्यान

*गुरूदेव को अनुभव करने का स्थान*
*- उगता हुआ सूर्य*
*गुरुचेतना को स्वयं में धारण करने का ध्यान*
 *- उगता हुआ सूर्य*
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एक दिन हम (डा. ए.के. दत्ता) लोग उनके पास बैठे थे, तो वे बोले, ‘‘मैं शरीर छोड़ने पर कुछ ऐसा करूँगा जैसे कोई कुर्ता उतारता है, पर फिर मैं तीन स्थानों पर रहूँगा एक माताजी के पास, दूसरा सजल-श्रद्धा प्रखर-प्रज्ञा तीसरा अखंड दीपक।’’ हमारे साथ अमेरिका के एक परिजन भी बैठे थे। उन्होंने कहा, ‘‘गुरुजी, ये तीनों स्थान तो शान्तिकुञ्ज में हैं और हम लोग तो बहुत दूर हैं।’’ इस पर गुरुजी बोले, ‘‘बेटा! मेरा चौथा स्थान उगता हुआ सूर्य होगा।’’

*माताजी का सूर्यार्घ्य*

सन् 1981-82 की बात है एक दिन मैंने (श्रीमती अपर्णा दत्ता) माताजी को सूर्य भगवान् को अर्घ्य देते हुए देखा। मैंने देखा सूर्य की गहरी प्रकाश किरणों का एक समूह उनके चरणों में आ रहा है। फिर यह प्रकाश किरणें बिखर कर शान्तिकुञ्ज के परिसर द्वारा सोखी जा रही हैं। मैंने गुरुजी से पूछा, ‘‘गुरुजी, आज मैंने माताजी का विलक्षण स्वरूप देखा। यह क्या है?’’ तो गुरुजी ने कहा, ‘‘ *माताजी के इसी दिव्य प्रकाश और शक्ति से शान्तिकुञ्ज और युग निर्माण योजना संचालित है*।’’

*उगते हुए सूर्य का संक्षिप्त ध्यान*

षट कर्म व देवावाहन के बाद शांत चित्त होकर सुखासन पर कमर सीधी कर  के बैठ जाएं। कम्बल या ऊनि वस्त्र के आसन में बैठें। सर थोड़ा सा हल्का उठा हुआ आकाश की ओर होना चाहिए। नेत्र बन्द हों और श्वांस सहज व गहरी हो।

सांस लेते व छोड़ते हुए मन ही मन निम्नलिखित बातें एक बार दोहराएं

1- मैं शरीर नहीं हूँ, शरीर तो मात्र मेरा वस्त्र है, जिसे मैंने धारण किया है।यह मेरी उपस्थिति में ही सक्रिय है, मैं नहीं तो मेरा शरीर भी नहीं, मेरी अनुपस्थिति में यह मात्र शव है।
2- मैं मन नहीं हूँ, यह तो मुझसे ही उतपन्न होते विचारों, मेरे अनुभवो का संग्रह है, यह मेरी उपस्थिति में ही सक्रिय है, मैं नहीं तो मेरा मन भी नहीं।
3- मैं अनन्त यात्री हूँ, मैं आत्मा हूँ, इस जन्म से पहले भी मेरा अस्तित्व है, अभी इस शरीर मे भी मैं हूँ, इस शरीर के न रहने पर भी मेरा अस्तित्व रहेगा। मैं अजर अमर आत्मा हूँ। मैं परम पिता का अंश हूँ। मैं पवित्र हूँ, मैं निर्मल हूँ, मैं शांत हूँ, मैं आनन्द में हूँ।

अब भावना करें कि आत्मा में परमात्मा की शक्तियों का प्रवेश हो रहा है। ध्यान करें:-

1- सूर्य उदीयमान है, सुनहरे रंग के प्रकाश से आकाश रौशन हो रहा है, लालिमा छाई हुई है। उदीयमान सूर्य के भीतर गुरुदेव व माताजी विराजमान हैं।

2- आप शरीर को पूजन स्थल में छोड़कर सूर्य की ओर उड़ रहे हैं। आपकी आत्मज्योति सूर्य में विलीन हो गयी है। सूर्य यज्ञ में आत्म ज्योति की आहुति डल गयी है। साधक एवं सविता एक हो गए हैं।
3- आप गुरु में समाहित हो गए है, गुरु व शिष्य एक हो गए हो।
4- पुनः गुरुदेव माता जी आपकी आत्म ज्योति में ऊर्जा का अनन्त प्रवाह प्रवेश करवा रहे हैं। पुनः सूर्य की अग्नि व ऊर्जा से ओतप्रोत आपकी आत्म ज्योति को धरती में आपके शरीर की ओर अपने आशीर्वाद के साथ भेज रहे हैं।
5- आप इतने प्रकाशित है कि शरीर मे प्रवेश करते ही, शरीर प्रकाशित व ऊर्जावान हो गया। प्राणों की ऊर्जा तरंग आसपास भी लहलहा रही है। आप तेजोमय बन गए हैं।

इस ध्यान में जितना आपके पास वक्त हो 5 या 10 या 15 या 20 या 30 मिनट इसी ध्यान में खोए रहें। स्वयं को ऊर्जा पुंज महसूस करते रहें।

फ़िर विलंबित स्वर में ॐ का 5 बार उच्चारण करें, फिर गायत्री मंत्र बोलते हुए दोनों हाथ रगड़े और चेहरे पर हाथ रखें और धीरे धीरे आंख खोलकर पहले हथेली को देखें। फिर हथेली को चेहरे पर जैसे क्रीम लगाते हैं घुमाएं।

अन्य मंत्रजप या यज्ञादि जो करना हो करें , जब उठें तो शांति मन्त्र बोलकर ही उठें।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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