*लोहड़ी पर्व की ढेर सारी शुभकामनाएं, मौसम परिवर्तन से उपजें रोगों को सामूहिक यज्ञ से दूर भगाएं*
- 13 जनवरी 2020
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*लोहड़ी का अर्थ है*- ल (लकड़ी), ओह (गोहा यानी सूखे उपले), ड़ी (रेवड़ी)। लोहड़ी के पावन अवसर पर लोग मूंगफली, तिल व रेवड़ी को इकट्ठठा कर प्रसाद के रूप में इसे तैयार करते हैं और आग में अर्पित करने के बाद आपस मे बांट लेते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या फिर बच्चे का जन्म हुआ हो वहां यह त्योहार काफी उत्साह व नाच-गाने के साथ मनाया जाता है।
भगवान कृष्ण द्वारा लोहिता राक्षसी का वध भी आज के दिन किया गया था उस खुशी के उपलक्ष में यह पर्व मनाया जाता है।
कालांतर में अकबर के शासन के दौरान दुल्ला भट्टी की वीरगाथा से जोड़ा गया उसके जीवन की विशेषताओं में से एक यह है कि उसने मुगलों द्वारा प्रकारांतर से उठाई गई हिंदू लड़कियों को वापस छीन कर उनका विवाह हिंदू युवकों के साथ कराया गया। आज लोहड़ी पर्व पर दुल्ला भटी की देशभक्ति और वीरता को याद करना चाहिए।
वैदिक परंपरा मौसम परिवर्तन और मौसम परिवर्तन के दौरान सक्रमण व रोगों की रोकथाम के लिए एक सामूहिक यज्ञ हवन लोहड़ी पर्व में करने की सदियों पुरानी एक प्रक्रिया है, परम्परा है।
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से 1 दिन पहले पूरे भारत में प्रकारांतर से यह पर्व मनाया जाता है। सब जगह किसी न किसी प्रकार का हवन करने की परंपरा रही है। तीन चार महीने की सर्दी के कारण शरीर में आलस्य का भरना और उससे मन में नकारात्मकता के कुहासे को दूर करने के लिए क्षेत्र के सभी लोग एक जगह एकत्र होकर हवन करते थे। उसमें अन्य सामग्री के अलावा काले तिल की आहुति दी जाती है।
काले तिल नकारात्मकता का अंत दर्शाते है। पूजन, लोहड़ी की आग और हवन में काले तिलों का उपयोग करना जीवन में नकारात्मकता खत्म होने का संकेत देते हैं।
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सामूहिक यज्ञ के लिए गोबर के उपलों, आम की लकड़ी, चिरायता औषधि की सुखी झाड़, गिलोय की सुखी बेलें व लकड़ी, सुखी तुलसी की लकड़ियाँ एकत्रित करके यज्ञ कुंड प्रज्वलित करें।
हवन सामग्री में *शान्तिकुंज हरिद्वार की 11 औषधियों के मिश्रण से बनी कॉमन हवन सामग्री या आर्य समाज द्वारा बनाई हवन सामग्री लें*। इसमें तिल, गुड़, अक्षत, जौ और कर्पूर मिलाकर निम्नलिखित मन्त्रो से सामूहिक हवन करें:-
*गायत्री मन्त्र*- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। स्वाहा इदं गायत्र्यै इदं न मम्।
*गणेश गायत्री मन्त्र*- ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।स्वाहा इदं गणेशाय इदं न मम्।
*चन्द्र गायत्री मन्त्र*- ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि, तन्न: चन्द्र: प्रचोदयात्। स्वाहा इदं चन्द्राय इदं न मम्।
*महामृत्युंजय मन्त्र*- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। स्वाहा इदं महामृत्युंजयाय इदं न मम्।
*पुर्णाहुति से पूर्व एक बुरी आदत त्यागने व एक अच्छी आदत अपनाने का संकल्प लें*
सामूहिक भजन कीर्तन प्रेरणादायक गीत, क्रांतिकारी गीत, व नुक्क्ड़ नाटक इत्यादि का आयोजन करें। खूब आनन्द मनाएं और तिल गुड़ से बने प्रसाद को खाएं व आनन्द उठाएं।
*||शान्तिपाठ||*
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती, DIYA
- 13 जनवरी 2020
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*लोहड़ी का अर्थ है*- ल (लकड़ी), ओह (गोहा यानी सूखे उपले), ड़ी (रेवड़ी)। लोहड़ी के पावन अवसर पर लोग मूंगफली, तिल व रेवड़ी को इकट्ठठा कर प्रसाद के रूप में इसे तैयार करते हैं और आग में अर्पित करने के बाद आपस मे बांट लेते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या फिर बच्चे का जन्म हुआ हो वहां यह त्योहार काफी उत्साह व नाच-गाने के साथ मनाया जाता है।
भगवान कृष्ण द्वारा लोहिता राक्षसी का वध भी आज के दिन किया गया था उस खुशी के उपलक्ष में यह पर्व मनाया जाता है।
कालांतर में अकबर के शासन के दौरान दुल्ला भट्टी की वीरगाथा से जोड़ा गया उसके जीवन की विशेषताओं में से एक यह है कि उसने मुगलों द्वारा प्रकारांतर से उठाई गई हिंदू लड़कियों को वापस छीन कर उनका विवाह हिंदू युवकों के साथ कराया गया। आज लोहड़ी पर्व पर दुल्ला भटी की देशभक्ति और वीरता को याद करना चाहिए।
वैदिक परंपरा मौसम परिवर्तन और मौसम परिवर्तन के दौरान सक्रमण व रोगों की रोकथाम के लिए एक सामूहिक यज्ञ हवन लोहड़ी पर्व में करने की सदियों पुरानी एक प्रक्रिया है, परम्परा है।
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से 1 दिन पहले पूरे भारत में प्रकारांतर से यह पर्व मनाया जाता है। सब जगह किसी न किसी प्रकार का हवन करने की परंपरा रही है। तीन चार महीने की सर्दी के कारण शरीर में आलस्य का भरना और उससे मन में नकारात्मकता के कुहासे को दूर करने के लिए क्षेत्र के सभी लोग एक जगह एकत्र होकर हवन करते थे। उसमें अन्य सामग्री के अलावा काले तिल की आहुति दी जाती है।
काले तिल नकारात्मकता का अंत दर्शाते है। पूजन, लोहड़ी की आग और हवन में काले तिलों का उपयोग करना जीवन में नकारात्मकता खत्म होने का संकेत देते हैं।
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सामूहिक यज्ञ के लिए गोबर के उपलों, आम की लकड़ी, चिरायता औषधि की सुखी झाड़, गिलोय की सुखी बेलें व लकड़ी, सुखी तुलसी की लकड़ियाँ एकत्रित करके यज्ञ कुंड प्रज्वलित करें।
हवन सामग्री में *शान्तिकुंज हरिद्वार की 11 औषधियों के मिश्रण से बनी कॉमन हवन सामग्री या आर्य समाज द्वारा बनाई हवन सामग्री लें*। इसमें तिल, गुड़, अक्षत, जौ और कर्पूर मिलाकर निम्नलिखित मन्त्रो से सामूहिक हवन करें:-
*गायत्री मन्त्र*- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। स्वाहा इदं गायत्र्यै इदं न मम्।
*गणेश गायत्री मन्त्र*- ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।स्वाहा इदं गणेशाय इदं न मम्।
*चन्द्र गायत्री मन्त्र*- ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि, तन्न: चन्द्र: प्रचोदयात्। स्वाहा इदं चन्द्राय इदं न मम्।
*महामृत्युंजय मन्त्र*- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। स्वाहा इदं महामृत्युंजयाय इदं न मम्।
*पुर्णाहुति से पूर्व एक बुरी आदत त्यागने व एक अच्छी आदत अपनाने का संकल्प लें*
सामूहिक भजन कीर्तन प्रेरणादायक गीत, क्रांतिकारी गीत, व नुक्क्ड़ नाटक इत्यादि का आयोजन करें। खूब आनन्द मनाएं और तिल गुड़ से बने प्रसाद को खाएं व आनन्द उठाएं।
*||शान्तिपाठ||*
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती, DIYA
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