Thursday, 9 January 2020

प्रारब्ध शमन व जीवन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गायत्री महामंत्र जप और सही दिशा में पुरुषार्थ करें।

*प्रारब्ध शमन व जीवन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गायत्री महामंत्र जप और सही दिशा में पुरुषार्थ करें।*

शास्त्रों में,पुराणों में और हिन्दू धर्म में  महामंत्र गायत्री मंत्र का बहुत ही ज्यादा महत्त्व वर्णित है| इस महामंत्र के जप से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सकारात्मकता प्राणऊर्जा से मन भर जाता है|

मन्त्र शक्ति है और पुरुषार्थ शिव है,  जिस प्रकार पूर्णता के लिए शिव को शक्ति का साथ चाहिए, वैसे ही मनुष्य को जीवन लक्ष्य प्राप्ति व प्रारब्ध शमन के लिए मन्त्र जप के साथ साथ सांसारिक पुरुषार्थ भी करना चाहिए। *उदाहरण* - यदि परीक्षा में सफ़ल बनना है तो बुद्धि की शक्ति व क्षमता के विकास लिए गायत्री मन्त्र जप करें व उगते सूर्य का ध्यान करें, और बुद्धि में जानकारियों के प्रवेश के लिए सम्बन्धित विषय की पुस्तकों की पढ़ाई भी करें।

*भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।*
*याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥*

*भावार्थ:*-श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते॥

श्रद्धा-विश्वास के बिना कोई भी मन्त्र फ़लित नहीं होता। अतः श्रद्धा-विश्वास से उपरोक्त में से पूर्ण या संक्षिप्त में से जो जप सकें, जप करें। भगवान शंकर व माता गायत्री की कृपा बनी रहेगी। रोगों से मुक्ति मिलेगी।

👉🏻🙏🏻 *आदरणीय चिन्मय भैया का उद्बोधन सुने - "मन्त्र में कैसे लाएं विलक्षण शक्ति"*
👇🏻
https://youtu.be/TGqd_Er8oPA


अखंडज्योति 1966, में युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि👇🏻
*प्रारब्ध शमन के लिए गायत्री मंत्र का जप और यज्ञकरना चाहिए*
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       *ऋषियों की मान्यता है कि गायत्री मंत्र जप और यज्ञ सघन प्रारब्ध को काटने, मिटाने का सर्वोत्तम साधन है* ।
      *यदि गायत्री मंत्र का उपासक लम्बे समय से गायत्री मंत्र का जप या अनुष्ठान ,यज्ञ करता है तो उसके जीवन में आने वाले दुर्भाग्य का ताप ( प्रभाव ) कम हो जाता है और वह दुर्भाग्य छोटी-छोटी घटनाओं में परिवर्तित होकर समाप्त हो जाता है।*
     *गायत्री साधक को जीवन में दुर्योग स्पर्श भी नहीं कर पाता है। क्योंकि भगवत चेतना ढ़ाल बनकर साधक के साथ खड़ी हो जाती है।*

तुलसीदास जी कहते हैं कि👇🏻

*कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ।*
 *जो जस करहि सो तस फल चाखा ॥*
 *सकल पदारथ हैं जग मांही।*
 *कर्महीन नर पावत नाहीं ॥*

मनुष्य के जीवन में कर्म की प्रधानता से। चाहें रामचरित मानस हो या गीता, दोनों में ही कर्म को ही प्रधान बताया गया है। *हम अपने कर्मो से ही अपने भाग्य को बनाते और बिगाड़ते हैं। हमें कर्म के आधार पर ही उसका फल प्राप्त होता है। कर्म सिर्फ शरीर की क्रियाओं से ही संपन्न नहीं होता बल्कि मन से, विचारों से एवं भावनाओं से भी कर्म संपन्न होता है।*

मंत्रजप भावनात्मक कर्म है, यज्ञ, जप, तप, ध्यान सभी चेतना स्तर के कर्म है। जिस तरह कमाया पैसा जीवन को एशोआराम देता है, वैसे ही कमाया गया पुण्य जीवन में सुख-शांति देता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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