Monday 27 January 2020

प्रश्न - *विपत्ति का क्या कोई लाभ भी है?*

प्रश्न - *विपत्ति का क्या कोई लाभ भी है?*

उत्तर- विपत्ति हमेशा कल्याण के लिए आती है, व व्यक्तित्व को निखारने हेतु प्रेरित करती है। विपत्ति एक जीवन का एग्जाम है? कोई पास होकर इतिहास रचता है, कोई मन से हारकर विपत्ति में टूट जाता है।

In life you will have challenges, it can either make you or break you. Overcome those challenges it only makes you stronger.

कभी कभी माँ की डांट फ़टकार की तरह विपत्ति हमें सुधारने आती है, भूले लोगों को परमात्मा की याद दिलाती है।

👇🏻 - *एक कहानी के माध्यम से इसे समझें*
सुख में सुमिरन सब करें, दुःख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो, दुःख काहे को होय।।

एक धर्मात्मा और प्रतापी राजा ने एक राज्य जीता। नए राज्य के लोग आलसी, बिगड़ैल व धर्म विरुद्ध आचरण करने वाले लापरवाह थे। झगड़ालू व असंगठित थे। महामारी, अकाल व दुर्भिक्ष पड़ने की नौबत आ गयी। राजा ने बड़ी कोशिश की उन्हें धर्म मार्ग पर लाने की सभी प्रयत्न बेकार चला गया। विविध पुरस्कार की तकनीक भी काम न आई। लोगों को दी हुई सुख सुविधा से उनके व्यवहार में सुधार नहीं आया। पता चला कि कुछ अड़ियल और दुष्ट व्यक्ति लोगों को भड़का कर राज्य की सुनीति व योजना चलने ही नहीं देते थे, बच्चों को स्कूल तक जाने को मना कर देते। जनता इन्हें अपना और राजा को पराया समझती थी।

तब एक मंत्री ने सलाह दी कि - *मूर्ख बिना दण्ड के नहीं सुधरेंगे*

राजा ने उस राज्य में जगह जगह आग लगवा दी, आग के भय ने सभी जनता को व्यथित कर दिया। कुछ लोग राजा से मदद मांगने गए, राजा ने उल्टा उन्हें कोल्हू के बैल की जगह जुतवा दिया और कुछ अड़ियल व गुमराह करने वाले लोगों को कारागार में भेज दिया। राजा के बेरूखी व विपत्ति ने लोगों को अंदर तक भयभीत कर दिया।

जब विपत्ति आती है तो ही भगवान की याद आती है। लोग भगवान को पुकारने लगे। मन्दिर जाने लगे और उपाय पूंछने लगे। राजा के पण्डित जो मंदिरों में तैनात थे उन्होंने उपाय बताया कि  सुबह ब्रह्म मुहूर्त में साधना में मंत्रजप-तप-योग-ध्यान-प्राणायाम-स्वाध्याय व सामूहिक यज्ञादि करो। भगवान मदद करेंगे।
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*40 दिन की साधना लोगों ने समूह में किया* और राजा ने सभी को बताया कि भगवान ने आदेश दिया है कि अगले छः महीने तक अत्याचार जनता परनहीं कर सकते। लोग बड़े ख़ुश हुए व और ज्यादा साधना करने लगे। *रोज़ धर्म ग्रन्थों का श्रवण करते, ब्रह्ममुहूर्त में साधना करते व साफ सफाई से रहते। यज्ञ में औषधियाँ डालकर यज्ञ होता। लोग स्वस्थ व प्रशन्न रहने लगे*। झगड़े कम हो गए। अपने अपने कर्तव्य पथ पर लौटने लगे। राजा ने छः महीने बाद पुनः घोषणा की कि भगवान ने स्वप्न में आकर पुनः छः महीने की और मोहलत जनता को दी है। हम अत्याचार नहीं करेंगे।

जनता वर्ष भर में सुधर गयी, महामारी मिट गई और सामूहिक स्वास्थ्य लौट आया। नगर मौहल्ले स्वच्छ हो गए। यज्ञादि से वर्षा अच्छी हुई, खेती अच्छी हुई तो अकाल व दुर्भिक्ष टल गया। बच्चे स्कूल जाने लगे।

अड़ियल व गुमराह करने वाले तो जेल में थे, अतः जनता सुधरती चली गयी। सुव्यवस्था व सुनीति चलने लगी। अराजकता समाप्त हो गयी।

जब सारी जनता सुखी हो गयी व राज्य फलने फूलने लगा। तब राजा ने बंदी लोगों को छोड़ दिया। व आगजनी में जिनकी सम्पत्ति का नुक्सान हुआ था। व्याज सहित लौटा दिया।

राजा ने बताया, आप सभी को सुधारने के लिए यह कठोर कदम उठाया। अन्यथा यह राज्य दुर्भिक्ष व महामारी में खत्म हो जाता। आज जो आप लोग स्वास्थ्य व सुख शांति का आनन्द ले रहे हैं, इसलिए यह कठोर कदम उठाया।

राज्य के यह अड़ियल और दुष्ट बंदी जिन्हें हम छोड़ रहे हैं, अब इन्हें सुधारने की जिम्मेदारी हम आप पर छोड़ते है।  पुनः यह राज्य को खराब न कर सकें इसका ध्यान रखें।

अब जनता समझ चुकी थी, धर्म का मार्ग चुन चुकी थी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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