प्रश्न - *बड़े बड़े आयोजन में वर्कशॉप में संकल्पित कार्य बाद में प्रशिक्षण लेने वाले क्यों नहीं करते हैं, वह अमल में क्यों नहीं आ पाता है?*
उत्तर- वर्कशॉप ट्रेनिंग दो तरह की होती है, एक प्रोडक्ट बेस्ड और दूसरी सॉल्यूशन बेस्ड।
प्रोडक्ट बेस्ड में हाई फाई टॉपिक व कंटेंट होते हैं। जिसको सुनने के बाद तालियाँ बजती हैं। यह दर्शनीय व सॉफिस्टिकेटेड है।
सॉल्यूशन बेस्ड में सिम्पल दैनिक यूज में काम आने वाली विषय वस्तु होती है, जिसे सुनकर दिल व दिमाग उसे अपनाने में जुट जाता है। यह वैल्युएबल और सरल हृदय ग्राह्य है।
गुरुकुल शिक्षा और आधुनिक शिक्षा में यही अंतर है। गुरुकुल सॉल्यूशन बेस्ड है और आधुनिक शिक्षा प्रोडक्ट बेस्ड है।
प्रोडक्ट बेस्ड में आप लेक्चर व प्रेजेंटेशन का सहारा ले सकते हैं। इसमे बन्दा मोटिवेट होता है, पर करेगा कैसे क्लियर नहीं होता।
सॉल्यूशन बेस्ड में दैनिक जीवन मे की समस्या, उस समस्या की जड़, उसका सॉल्यूशन, उस समस्या को सॉल्व करने के लिए मोटिवेशन के साथ समस्या सॉल्व कैसे होगी यह क्लियर होता है। समस्या का समाधान कैसे ढूँढना है और उसका समाधान कैसे करना है यह क्लियर होता है।
व्यक्तित्व व चरित्र गुणवत्ता सुधार ट्रेनिंग - सॉल्यूशन बेस्ड होनी चाहिए।
उलझे लोगों की मनःस्थिति को सुलझाने में मददगार होनी चाहिए, सोया हुआ आत्मविश्वास जगाने की तकनीक होनी चाहिए। घर व जॉब के बीच संतुलन ला सकें वह विधिव्यस्था व सूत्र उन्हें ट्रेनिंग से मिले।
विचारों को एकत्रित करके पुनः नए तरीके से सोचने की कला मिले।
लेकिन सबसे ज़रूरी चीज़ - इस आयोजन का मक़सद(प्रयोजन) व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण व समाज निर्माण हेतु स्वयं में श्रेष्ठ गुण कर्म स्वभाव व चरित्र युक्त देशभक्त नागरिक गढ़ने का कार्य स्वयं द्वारा जो करवाना है उसके लिए उन्हें इनिशियल गाइड लाइन देना व उसके लिए प्रेरित करना है।
देश में दुनियाँ में सर्वत्र बहुत बड़े बड़े वर्कशॉप ट्रेनिंग आयोजित होती है, सब ट्रेनिंग के समय मोटिवेट भी हो जाते हैं। लेकिन कुछ दिन बाद सब पुराने ढर्रे पर लौट जाते हैं, क्योंकि यह मोटिवेशन बाह्य था, जिसका असर महंगे परफ्यूम की तरह कुछ दिनों में उड़ गया।
जब ट्रेनिंग व वर्कशॉप में कुछ रिमाइंडर सेल्फ के लिए सेट करने व फॉलोअप की विधिव्यस्था होती है तभी बात बनती है।
साथ ही जो समझ मे आ गया उसे करने के लिए जो आत्मबल चाहिए उसे अर्जित करने के लिए ज़रूरी साधना की गाइडलाइंस भी चाहिए:-
1- विपश्यना ध्यान
2- नाड़ी शोधन व भ्रामरी प्राणायाम
3- नित्य गायत्रीमंत्र जप उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए
4- नित्य अच्छी पुस्तकों जैसे *जीवन जीने की कला* और *सफल जीवन की दिशा धारा* इत्यादि का स्वाध्याय जरूरी है।
5- नित्य आत्मबोध(भगवान को धन्यवाद, नया जन्म, सुबह क्या करना है उसको तय करना) - तत्त्वबोध(रात को क्या हुआ और क्या रह गया उसका लेखा जोखा, एक दिन का जीवन समाप्त, भगवान को धन्यवाद) साधना ।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- वर्कशॉप ट्रेनिंग दो तरह की होती है, एक प्रोडक्ट बेस्ड और दूसरी सॉल्यूशन बेस्ड।
प्रोडक्ट बेस्ड में हाई फाई टॉपिक व कंटेंट होते हैं। जिसको सुनने के बाद तालियाँ बजती हैं। यह दर्शनीय व सॉफिस्टिकेटेड है।
सॉल्यूशन बेस्ड में सिम्पल दैनिक यूज में काम आने वाली विषय वस्तु होती है, जिसे सुनकर दिल व दिमाग उसे अपनाने में जुट जाता है। यह वैल्युएबल और सरल हृदय ग्राह्य है।
गुरुकुल शिक्षा और आधुनिक शिक्षा में यही अंतर है। गुरुकुल सॉल्यूशन बेस्ड है और आधुनिक शिक्षा प्रोडक्ट बेस्ड है।
प्रोडक्ट बेस्ड में आप लेक्चर व प्रेजेंटेशन का सहारा ले सकते हैं। इसमे बन्दा मोटिवेट होता है, पर करेगा कैसे क्लियर नहीं होता।
सॉल्यूशन बेस्ड में दैनिक जीवन मे की समस्या, उस समस्या की जड़, उसका सॉल्यूशन, उस समस्या को सॉल्व करने के लिए मोटिवेशन के साथ समस्या सॉल्व कैसे होगी यह क्लियर होता है। समस्या का समाधान कैसे ढूँढना है और उसका समाधान कैसे करना है यह क्लियर होता है।
व्यक्तित्व व चरित्र गुणवत्ता सुधार ट्रेनिंग - सॉल्यूशन बेस्ड होनी चाहिए।
उलझे लोगों की मनःस्थिति को सुलझाने में मददगार होनी चाहिए, सोया हुआ आत्मविश्वास जगाने की तकनीक होनी चाहिए। घर व जॉब के बीच संतुलन ला सकें वह विधिव्यस्था व सूत्र उन्हें ट्रेनिंग से मिले।
विचारों को एकत्रित करके पुनः नए तरीके से सोचने की कला मिले।
लेकिन सबसे ज़रूरी चीज़ - इस आयोजन का मक़सद(प्रयोजन) व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण व समाज निर्माण हेतु स्वयं में श्रेष्ठ गुण कर्म स्वभाव व चरित्र युक्त देशभक्त नागरिक गढ़ने का कार्य स्वयं द्वारा जो करवाना है उसके लिए उन्हें इनिशियल गाइड लाइन देना व उसके लिए प्रेरित करना है।
देश में दुनियाँ में सर्वत्र बहुत बड़े बड़े वर्कशॉप ट्रेनिंग आयोजित होती है, सब ट्रेनिंग के समय मोटिवेट भी हो जाते हैं। लेकिन कुछ दिन बाद सब पुराने ढर्रे पर लौट जाते हैं, क्योंकि यह मोटिवेशन बाह्य था, जिसका असर महंगे परफ्यूम की तरह कुछ दिनों में उड़ गया।
जब ट्रेनिंग व वर्कशॉप में कुछ रिमाइंडर सेल्फ के लिए सेट करने व फॉलोअप की विधिव्यस्था होती है तभी बात बनती है।
साथ ही जो समझ मे आ गया उसे करने के लिए जो आत्मबल चाहिए उसे अर्जित करने के लिए ज़रूरी साधना की गाइडलाइंस भी चाहिए:-
1- विपश्यना ध्यान
2- नाड़ी शोधन व भ्रामरी प्राणायाम
3- नित्य गायत्रीमंत्र जप उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए
4- नित्य अच्छी पुस्तकों जैसे *जीवन जीने की कला* और *सफल जीवन की दिशा धारा* इत्यादि का स्वाध्याय जरूरी है।
5- नित्य आत्मबोध(भगवान को धन्यवाद, नया जन्म, सुबह क्या करना है उसको तय करना) - तत्त्वबोध(रात को क्या हुआ और क्या रह गया उसका लेखा जोखा, एक दिन का जीवन समाप्त, भगवान को धन्यवाद) साधना ।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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