प्रश्न - *आदरणीय दीदी आरती का क्या नियम है आरती किस प्रकार करनी चाहिए?*
उत्तर- आत्मीय भाई, आर्त स्वर में की गई प्रार्थना को आरती कहते हैं। पहले आरती में भगवान की शक्तियों का गुणगान होता है, उनकी स्तुति होती है । साथ ही आरती के अंतिम पदों में उस सर्वसमर्थ सत्ता से स्वयं के कल्याण के लिए प्रार्थना भी की जाती है। आरती पूजन के अंत में होती है, आरती के बाद शांतिपाठ होता है।
*आरती का महत्व-*
- आरती के महत्व की चर्चा सर्वप्रथम "स्कन्द पुराण" में की गई है.
- आरती हिन्दू धर्म की पूजा परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है.
- किसी भी पूजा पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान के अंत में देवी-देवताओं की आरती की जाती है.
- आरती की प्रक्रिया में एक थाल में ज्योति और कुछ विशेष पुष्प इत्यादि वस्तुएं रखकर भगवान के सामने घुमाते हैं.
- थाल में अलग-अलग वस्तुओं को रखने का अलग-अलग महत्व होता है.
- लेकिन सबसे ज्यादा महत्व होता है आरती के साथ गाई जाने वाली स्तुति का. मान्यता है कि जितने आर्त भाव व श्रद्धा विश्वास से आरती गाई जाती है, पूजा उतनी ही ज्यादा प्रभावशाली होती है.
*आरती करने के नियम-*
- बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के सिर्फ आरती नहीं की जा सकती है.
- हमेशा किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति पर ही आरती करना श्रेष्ठ होता है.
- आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित की जा सकती है.
- अगर दीपक से आरती करें, तो ये पंचमुखी होना चाहिए.
- इसके साथ पूजा के फूल और कुमकुम भी जरूर रखें.
- आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ॐ की आकृति बन सके.
- Optional - आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए.
*आरती के बाद के नियम*
- सबसे पहले हाथ से आरती भगवान को अर्पित की जाती है।
- फिर आरती में दान-दक्षिणा हेतु जो भी श्रद्धा हो अर्पित करके आरती ली जाती है।
- आरती के दिये पर तीन बार हाथ घुमा के आरती का भाव लेकर अपने सर एवं चेहरे पर गायत्री मंत्र बोलते हुए हाथ घूमा कर हाथ फिराना चाहिए
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय भाई, आर्त स्वर में की गई प्रार्थना को आरती कहते हैं। पहले आरती में भगवान की शक्तियों का गुणगान होता है, उनकी स्तुति होती है । साथ ही आरती के अंतिम पदों में उस सर्वसमर्थ सत्ता से स्वयं के कल्याण के लिए प्रार्थना भी की जाती है। आरती पूजन के अंत में होती है, आरती के बाद शांतिपाठ होता है।
*आरती का महत्व-*
- आरती के महत्व की चर्चा सर्वप्रथम "स्कन्द पुराण" में की गई है.
- आरती हिन्दू धर्म की पूजा परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है.
- किसी भी पूजा पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान के अंत में देवी-देवताओं की आरती की जाती है.
- आरती की प्रक्रिया में एक थाल में ज्योति और कुछ विशेष पुष्प इत्यादि वस्तुएं रखकर भगवान के सामने घुमाते हैं.
- थाल में अलग-अलग वस्तुओं को रखने का अलग-अलग महत्व होता है.
- लेकिन सबसे ज्यादा महत्व होता है आरती के साथ गाई जाने वाली स्तुति का. मान्यता है कि जितने आर्त भाव व श्रद्धा विश्वास से आरती गाई जाती है, पूजा उतनी ही ज्यादा प्रभावशाली होती है.
*आरती करने के नियम-*
- बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के सिर्फ आरती नहीं की जा सकती है.
- हमेशा किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति पर ही आरती करना श्रेष्ठ होता है.
- आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित की जा सकती है.
- अगर दीपक से आरती करें, तो ये पंचमुखी होना चाहिए.
- इसके साथ पूजा के फूल और कुमकुम भी जरूर रखें.
- आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ॐ की आकृति बन सके.
- Optional - आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए.
*आरती के बाद के नियम*
- सबसे पहले हाथ से आरती भगवान को अर्पित की जाती है।
- फिर आरती में दान-दक्षिणा हेतु जो भी श्रद्धा हो अर्पित करके आरती ली जाती है।
- आरती के दिये पर तीन बार हाथ घुमा के आरती का भाव लेकर अपने सर एवं चेहरे पर गायत्री मंत्र बोलते हुए हाथ घूमा कर हाथ फिराना चाहिए
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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