प्रश्न - *मेरे हाई एजुकेटेड और वेल सेटल्ड बेटा व बेटियाँ अधिक उम्र होने पर भी शादी नहीं कर रहे हैं? क्या करूँ?*
उत्तर- आत्मीय माता जी, यदि बच्चों के जीवन में अध्यात्म नहीं है और वो पाश्चात्य के प्रभाव में आज़ादी व स्वच्छंद जीवन की चकाचौंध में हैं, तो वह आपके कहने पर विवाह नहीं करेंगे।
विवाह एक समझौता है, एक प्रेम बन्धन है, जिम्मेदारी है, एक दूसरे को सम्हालने की विधिव्यस्था है, एक तपोवन है। इस जिम्मेदारी को उठाना कई लोग पसन्द नहीं करते हैं, विवाह व बच्चे उन्हें बोझ लगते हैं। वो जीवनसाथी नहीं अपितु रिमोट से चलने वाला रोबोट चाहते हैं। इसलिए जिन पाश्चत्य प्रभावित युवाओ के विवाह जबरजस्ती करवा भी दिये गए हैं उनके तलाक़ हो गए हैं। या घर कलह व युद्ध का मैदान बना हुआ है।
आप स्वयं का जीवन देखिये, विवाह के बाद से पति व ससुराल वालों के कहे अपशब्द को आपने जितना सह लिया क्या आपकी बेटी उतना सहेंगी? पति की मनमानियों को क्या वो सहेंगी? नहीं न...अतः जब तक वो आज़ाद ख्याल की जैसी हैं वैसे को स्वीकारने वाला नहीं मिल जाता तब तक उन्हें विवाह नहीं करना चाहिए। इसीतरह बेटे की आज़ाद ख़्याली के लिए उसके हिसाब की जब तक लड़की न मिले उसे भी शादी नहीं करनी चाहिए। अन्यथा कई लोग एक साथ बर्बादी झेलते हैं।
बच्चों को उनकी मर्ज़ी से उनकी जिंदगी जीने दीजिये। विवाह की अनिवार्यता जब तक वह स्वयं महसूस न करें उन्हें फ़ोर्स मत कीजिये। वह मैच्योर हैं, जो निर्णय लें वह स्वयं लें।
पहले किशोरावस्था में विवाह होता था तो माता पिता की मर्जी को मानने के लिए लोग बाध्य होते थे। जब आपका विवाह हुआ था आप मात्र 17 से 19 वर्ष के बीच की रही होंगी, साथ ही घर पर पिता पर निर्भर थीं और शादी के बाद पति पर निर्भर थीं। बाहरी दुनियाँ का आपको ज्ञान तक नहीं था, आपके सपने व मन को ससुराल के लिए आपकी माता ने बुन दिया था। आपकी कोई स्वतंत्र ख्वाइश ही नहीं थी, पति व बच्चों की ख्वाइशों को पूरी करने में आपने उम्र ही निकाल दी। कोई क्रेडिट नहीं मांगा, कभी सैलरी व प्रमोशन नहीं मांगा, कोई पहचान नहीं माँगी, कोई सम्पत्ति तक नहीं माँगी। इसका कोई अफ़सोस आपको न होगा।
लेकिन आपकी बेटी 35+ उम्र की है, वह मैच्योर है और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है। वह आपकी तरह बिना पहचान के नहीं जी सकती। आपकी तरह हुकुम नहीं बजा सकती। उसकी कोई मजबूरी नहीं है। वह घर में न पिता पर अब निर्भर है और न हीं पति पर विवाह के बाद निर्भर होगी। उसकी स्वतंत्र पहचान व ढेर सारी ख्वाइशें हैं, वह बाहर की दुनियाँ आपसे ज्यादा जानती है। अतः जहां उसके विचार व मन मिले उसे वहीं शादी करने दीजिए। न मन मुताबिक वर मिले तो कुंवारा रहना बेहतर है, अन्यथा समस्या बढ़ेगी । अभी वो अपनी जिंदगी में खुश हैं, उन्हें वैसा रहने दीजिए।
लड़के को भी उसकी मर्जी की दुल्हन ढूढ़ने दीजिये, स्वयं की मर्जी की दुल्हन लाएगा तो स्वयं जिम्मेदारी उठाएगा। स्वप्न में भी मत सोचिएगा कि आपको बहु आपकी जैसी घर सम्हालने वाली व सास ससुर की सेवा सबकुछ सहकर करने वाली मिलेगी। बेटा जो आज़ाद परी लाएगा वो आपकी बेटियों की तरह ही आज़ादी गैंग की होगी, आज़कल लड़के आर्थिक सक्षम लड़की ढूढ़ रहे हैं जो हाई सोसायटी की पार्टी अटेंड कर सके, कोई सुसंस्कारी लड़की ढूँढ़ नहीं रहा है, और कोई माता पिता सुसंस्कारी लड़की गढ़ने में रुचि भी नहीं ले रहे हैं।
सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग, यह बीमारी मन से निकाल दीजिये, कोई रिश्तेदार पूँछे कि बच्चे शादी क्यों नहीं कर रहे तो कहिए आप बच्चों से ही पूंछ लीजिये कि वो क्या चाहते है और उनकी मर्जी के जीवनसाथी ढूढ़ने में मदद कर दीजिए। हम आधुनिक मतापिता हैं और अपने बच्चों पर अपनी मनमर्ज़ी नहीं थोपते।
जब बच्चे कच्ची उम्र के गीली मिट्टी की तरह थे तब आप सँस्कार दे सकती थीं। अब मिट्टी पक गई है, वह आपकी इच्छा से नहीं मुड़ेगें, न अब आप उन्हें सँस्कार दे पाएंगी। पति व बच्चे अब आपकी इच्छानुसार नहीं बदलेंगे और न ही सुधरेंगे। अतः वो जैसे हैं उन्हें वैसा स्वीकार लीजिये, इसे अपनी नियति मान लीजिए।
अतः आप अब मानसिक गृह त्यागी व सन्यासी हो जाइए। घर में रहकर तपस्वी हो जाइए। जब कोई आपकी सुनने को तैयार नहीं है, तो मौन हो जाइये। स्वयं को समझाइए जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, जो होगा अच्छा होगा। ज्यों ज्यों आप शांतचित्त हो गहन ध्यान की गहराई में जाएंगी, त्यों त्यों शरीर भाव से ऊपर उठेंगी, रिश्तों से ऊपर उठेंगी और जीवन को जी सकेंगी। आपकी गहन शांति जब विस्तार लेगी तब आपके पहले पति सुधरेंगे, फिर शनैःशनैः बेटा प्रभावित होगा और अंत में बेटियों पर प्रभाव पड़ेगा। अत्यंत लंबा सफ़ऱ है धैर्य चाहिए। जब तक गहन ध्यान के आनन्द की झलक आप में उन्हें नहीं मिलेगी तब तक वह आपसे प्रेरित नहीं होंगे। अतः सन्यासिनी योगिनी बन जाईये और सब मोहमाया त्याग दीजिये।
इस संसार में बाहर अब कहीं शांति नहीं है, न हिमालय शांत बचा न ही जंगल शांत बचे, सर्वत्र मनुष्य पहुंच गया है, सब टुरिष्ट स्पॉट व ट्रैकिंग स्पॉट बन गया है।आज के जमाने में कोई आश्रम वृद्धावस्था में सुख नहीं देगा, कोई आश्रम वृद्धावस्था में लाचार शरीर की जिम्मेदारी नहीं उठाता। अतः ऐसी कोई शांत जगह पाने की इच्छा मन मे मत लाइये जहां आप तप कर सकें।
परिस्थिति नहीं बदलेगी, आपको मनःस्थिति बदलनी है। घर में रहते हुए व जो भी दैनिक कार्य अभी कर रही हैं, जो भी जिम्मेदारी उठा रही हैं वह सब करते हुए तप करना है। महाराज जनक की तरह संसार मे रहते हुए भी मोहमुक्त विदेह बनना है। कीचड़ में रहकर भी कमल की तरह खिलना है। घर मे रहकर योग साधना है।
पुस्तक - *प्रसुप्ति से जागृति की ओर* पूरा पढ़िये और अपनी चेतना को उर्ध्वगामी बनाइये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय माता जी, यदि बच्चों के जीवन में अध्यात्म नहीं है और वो पाश्चात्य के प्रभाव में आज़ादी व स्वच्छंद जीवन की चकाचौंध में हैं, तो वह आपके कहने पर विवाह नहीं करेंगे।
विवाह एक समझौता है, एक प्रेम बन्धन है, जिम्मेदारी है, एक दूसरे को सम्हालने की विधिव्यस्था है, एक तपोवन है। इस जिम्मेदारी को उठाना कई लोग पसन्द नहीं करते हैं, विवाह व बच्चे उन्हें बोझ लगते हैं। वो जीवनसाथी नहीं अपितु रिमोट से चलने वाला रोबोट चाहते हैं। इसलिए जिन पाश्चत्य प्रभावित युवाओ के विवाह जबरजस्ती करवा भी दिये गए हैं उनके तलाक़ हो गए हैं। या घर कलह व युद्ध का मैदान बना हुआ है।
आप स्वयं का जीवन देखिये, विवाह के बाद से पति व ससुराल वालों के कहे अपशब्द को आपने जितना सह लिया क्या आपकी बेटी उतना सहेंगी? पति की मनमानियों को क्या वो सहेंगी? नहीं न...अतः जब तक वो आज़ाद ख्याल की जैसी हैं वैसे को स्वीकारने वाला नहीं मिल जाता तब तक उन्हें विवाह नहीं करना चाहिए। इसीतरह बेटे की आज़ाद ख़्याली के लिए उसके हिसाब की जब तक लड़की न मिले उसे भी शादी नहीं करनी चाहिए। अन्यथा कई लोग एक साथ बर्बादी झेलते हैं।
बच्चों को उनकी मर्ज़ी से उनकी जिंदगी जीने दीजिये। विवाह की अनिवार्यता जब तक वह स्वयं महसूस न करें उन्हें फ़ोर्स मत कीजिये। वह मैच्योर हैं, जो निर्णय लें वह स्वयं लें।
पहले किशोरावस्था में विवाह होता था तो माता पिता की मर्जी को मानने के लिए लोग बाध्य होते थे। जब आपका विवाह हुआ था आप मात्र 17 से 19 वर्ष के बीच की रही होंगी, साथ ही घर पर पिता पर निर्भर थीं और शादी के बाद पति पर निर्भर थीं। बाहरी दुनियाँ का आपको ज्ञान तक नहीं था, आपके सपने व मन को ससुराल के लिए आपकी माता ने बुन दिया था। आपकी कोई स्वतंत्र ख्वाइश ही नहीं थी, पति व बच्चों की ख्वाइशों को पूरी करने में आपने उम्र ही निकाल दी। कोई क्रेडिट नहीं मांगा, कभी सैलरी व प्रमोशन नहीं मांगा, कोई पहचान नहीं माँगी, कोई सम्पत्ति तक नहीं माँगी। इसका कोई अफ़सोस आपको न होगा।
लेकिन आपकी बेटी 35+ उम्र की है, वह मैच्योर है और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है। वह आपकी तरह बिना पहचान के नहीं जी सकती। आपकी तरह हुकुम नहीं बजा सकती। उसकी कोई मजबूरी नहीं है। वह घर में न पिता पर अब निर्भर है और न हीं पति पर विवाह के बाद निर्भर होगी। उसकी स्वतंत्र पहचान व ढेर सारी ख्वाइशें हैं, वह बाहर की दुनियाँ आपसे ज्यादा जानती है। अतः जहां उसके विचार व मन मिले उसे वहीं शादी करने दीजिए। न मन मुताबिक वर मिले तो कुंवारा रहना बेहतर है, अन्यथा समस्या बढ़ेगी । अभी वो अपनी जिंदगी में खुश हैं, उन्हें वैसा रहने दीजिए।
लड़के को भी उसकी मर्जी की दुल्हन ढूढ़ने दीजिये, स्वयं की मर्जी की दुल्हन लाएगा तो स्वयं जिम्मेदारी उठाएगा। स्वप्न में भी मत सोचिएगा कि आपको बहु आपकी जैसी घर सम्हालने वाली व सास ससुर की सेवा सबकुछ सहकर करने वाली मिलेगी। बेटा जो आज़ाद परी लाएगा वो आपकी बेटियों की तरह ही आज़ादी गैंग की होगी, आज़कल लड़के आर्थिक सक्षम लड़की ढूढ़ रहे हैं जो हाई सोसायटी की पार्टी अटेंड कर सके, कोई सुसंस्कारी लड़की ढूँढ़ नहीं रहा है, और कोई माता पिता सुसंस्कारी लड़की गढ़ने में रुचि भी नहीं ले रहे हैं।
सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग, यह बीमारी मन से निकाल दीजिये, कोई रिश्तेदार पूँछे कि बच्चे शादी क्यों नहीं कर रहे तो कहिए आप बच्चों से ही पूंछ लीजिये कि वो क्या चाहते है और उनकी मर्जी के जीवनसाथी ढूढ़ने में मदद कर दीजिए। हम आधुनिक मतापिता हैं और अपने बच्चों पर अपनी मनमर्ज़ी नहीं थोपते।
जब बच्चे कच्ची उम्र के गीली मिट्टी की तरह थे तब आप सँस्कार दे सकती थीं। अब मिट्टी पक गई है, वह आपकी इच्छा से नहीं मुड़ेगें, न अब आप उन्हें सँस्कार दे पाएंगी। पति व बच्चे अब आपकी इच्छानुसार नहीं बदलेंगे और न ही सुधरेंगे। अतः वो जैसे हैं उन्हें वैसा स्वीकार लीजिये, इसे अपनी नियति मान लीजिए।
अतः आप अब मानसिक गृह त्यागी व सन्यासी हो जाइए। घर में रहकर तपस्वी हो जाइए। जब कोई आपकी सुनने को तैयार नहीं है, तो मौन हो जाइये। स्वयं को समझाइए जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, जो होगा अच्छा होगा। ज्यों ज्यों आप शांतचित्त हो गहन ध्यान की गहराई में जाएंगी, त्यों त्यों शरीर भाव से ऊपर उठेंगी, रिश्तों से ऊपर उठेंगी और जीवन को जी सकेंगी। आपकी गहन शांति जब विस्तार लेगी तब आपके पहले पति सुधरेंगे, फिर शनैःशनैः बेटा प्रभावित होगा और अंत में बेटियों पर प्रभाव पड़ेगा। अत्यंत लंबा सफ़ऱ है धैर्य चाहिए। जब तक गहन ध्यान के आनन्द की झलक आप में उन्हें नहीं मिलेगी तब तक वह आपसे प्रेरित नहीं होंगे। अतः सन्यासिनी योगिनी बन जाईये और सब मोहमाया त्याग दीजिये।
इस संसार में बाहर अब कहीं शांति नहीं है, न हिमालय शांत बचा न ही जंगल शांत बचे, सर्वत्र मनुष्य पहुंच गया है, सब टुरिष्ट स्पॉट व ट्रैकिंग स्पॉट बन गया है।आज के जमाने में कोई आश्रम वृद्धावस्था में सुख नहीं देगा, कोई आश्रम वृद्धावस्था में लाचार शरीर की जिम्मेदारी नहीं उठाता। अतः ऐसी कोई शांत जगह पाने की इच्छा मन मे मत लाइये जहां आप तप कर सकें।
परिस्थिति नहीं बदलेगी, आपको मनःस्थिति बदलनी है। घर में रहते हुए व जो भी दैनिक कार्य अभी कर रही हैं, जो भी जिम्मेदारी उठा रही हैं वह सब करते हुए तप करना है। महाराज जनक की तरह संसार मे रहते हुए भी मोहमुक्त विदेह बनना है। कीचड़ में रहकर भी कमल की तरह खिलना है। घर मे रहकर योग साधना है।
पुस्तक - *प्रसुप्ति से जागृति की ओर* पूरा पढ़िये और अपनी चेतना को उर्ध्वगामी बनाइये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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