Tuesday, 7 January 2020

प्रश्न - *लोकप्रिय नेतृत्व व व्यक्तित्व स्वयं का कैसे गढूं? मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *लोकप्रिय नेतृत्व व व्यक्तित्व स्वयं का कैसे गढूं? मार्गदर्शन करें*

उत्तर - आत्मीय बेटे,

आपको अपने मनोभूमि में श्रेष्ठ व्यक्तित्व की खेती करनी पड़ेगी। जिसे जीवन देवता की साधना कहते हैं।

*जीवन साधना का अर्थ है- "अपने अनगढ़ व्यक्तित्व को सुगढ़ता प्रदान करना और उसे मनचाही मनःस्थिति व परिस्थिति के लिए उपयोगी बनाना।*

बेटा, व्यक्ति में महान बनने की संभावना के बीज जन्म से ही विद्यमान होते हैं, निरन्तर प्रशिक्षण व अभ्यास से उनका मनचाहा विकास किया जा सकता है।

हीनता से महानता की ओर बढ़ने के इच्छुक साधक को चतुर्विध प्रक्रिया सम्पन्न करनी पड़ती है:-
1- महान बनने में बाधक अवांछनीयता व बुरी आदतों को ढूँढना और उनको जीवन से दूर करना
2- जन्मजात विद्यमान कुसंस्कारों को आत्मबल बढ़ाकर परास्त करना
3- जो सत्प्रवृत्तियाँ महान लोगों की पहचान होती है, उसे अपने स्वभाव व आदत में शामिल करना, उनका विकास करना
4- निज उपलब्धियों व श्रेय को लोगों बांटना, उसे टीम का बताना। ज्ञानार्जन करके स्वयं प्रकाशित दिए की तरह बनना स्वयं प्रकाशित होना व दूसरों के जीवन को भी आलोकित करना। अच्छा नेता हमेशा श्रेय व उपलब्धि शेयर करता है। स्वभाव से विनम्र होता है।

इस प्रकार आत्मचिंतन करता हुआ व्यक्ति सीमित न रहकर असीम बन जाता है। उसका कार्य क्षेत्र भी व्यापक परिधि में सत्प्रवृत्तियों का संवर्द्धक बन जाता है। ऐसे व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं और निर्वाह के लिए स्वयं न्यूनतम रखकर शेष क्षमता व सम्पदा को सत्प्रयोजनों में लगाये रहते हैं। संसार के इतिहास में जिन लोकप्रिय महामानवों का उज्ज्वल चरित्र जगमगा रहा है, वे आत्मविकास के इसी राजमार्ग का अवलम्बन लेते हुए उच्च शिखर तक पहुंच सके हैं।

*सूरज बनकर चमकना सब चाहते हैं, सूरज की तरह कष्ट उठाकर स्वयं जलना कोई नहीं चाहता। बिना जले चमक कैसे सम्भव है? बिना उपासना, साधना, जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय के आत्मबल नहीं मिलता। बिना आत्मबल के कोई तेजोमय व्यक्तित्व नहीं पा सकता।*

निम्नलिखित पंचशील जीवन में अपनाए एवं महानता का जीवन में समावेश करें:-

1- *श्रमशीलता* - आलसी व्यक्ति महान नहीं बन सकता। साथ ही सारे कार्य स्वयं करने वाला भी महान नहीं बनता।महान व्यक्ति स्वयं भी मेहनत करता है, व अपने नीचे मेहनत करने वालो की टीम खड़ी करता है। कार्य को डिस्ट्रीब्यूट करना जानता है, क्या मुझे करना है और क्या मुझे दुसरो से करवाना है।

2- *मितव्ययिता* - महान व्यक्ति व्यर्थ शानोशौकत में पैसे खर्च नहीं करता और न ही वह कंजूस होता है। विवेकपूर्वक पैसे से पैसा बनाता है, ज्ञान से पैसा कमाता है और उसे सत्प्रयोजनों में लगाता।

3- *शिष्टता* - सर्वसम्पन्न होते हुए भी महान व्यक्ति विनम्र व शिष्टाचार से भरा होता है। शालीनता बिना मोल मिलती है और उससे सबकुछ ख़रीदा जा सकता है। श्रीराम व कृष्ण की तरह शिष्ट होते है, मगर दुष्टों के संघार के समय पीछे भी नहीं हटते हैं।

4- *सुव्यवस्था* - महान व्यक्ति सुव्यवस्थित होते हैं। वह अपने समय, श्रम, मनोयोग, जीवनक्रम, शरीर-सामर्थ्य आदि सभी क्रियाकलापों का सुनियोजन करते हैं।

5- *सहकारिता* - बड़े कार्य सँयुक्त शक्ति से ही सम्पन्न हो पाते हैं। सँयुक्त शक्ति - संगठन में ही शक्ति होती है।  महान व्यक्ति मिलजुल कर काम करना व करवाना जानता है।
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*कुछ निम्नलिखित पुस्तकों को पढ़ो व स्वयं के व्यक्तित्व को संवार लो:-*
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1- 📖 परिष्कृत व्यक्तित्व एक सिद्धि-एक उपलब्धि
2- 📖 सफल जीवन की दिशा धारा
3- 📖 जीवन जीने की कला
4- 📖 महापुरुषों की जीवनियां
5- 📖 सफलता के सात सूत्र साधन
6- 📖 युग नेतृत्व की दिशा में कदम यों बढ़ें
7- 📖 नवयुग के दायित्व एवं सफल जीवन
8- 📖 वर्तमान युवावर्ग एवं उनकी चुनौती
9- 📖 व्यक्तित्व विकास की उच्चस्तरीय साधनाएं

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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