*मोक्ष क्यूँ नहीं मिला?*
एक बार नारद जी पृथ्वी भ्रमण में निकले और एक व्यक्ति से मिले उसने आथित्य सत्कार किया व भोजन करवाया। नारद जी त्रिकालदर्शी थे तो बोले मित्र तुम्हारे बच्चे बड़े हो गए हैं चलो मैं तुम्हें गुरुमंत्र देता हूँ उसे जपो और मुक्ति के मार्ग पर चलो। परिवार का मोह छोड़ दो।
उस व्यक्ति ने कहा, सारा बिजनेस चौपट हो जाएगा, यदि मैं नहीं करूंगा। तब नारद बोले तुम अमर तो नहीं हो, कभी न कभी तो मरोगे तब तो उन्हें ही सम्हालना है, तो अभी समझा दो और तुम मुक्ति मार्ग पर चलो।
उस व्यक्ति ने कहा ठीक है महाराज जी, दोनों बेटों को व्यवसाय समझा दिया और घर में रहकर बच्चे सम्हालने लगा। कुछ दिन बाद नारद आये, बोले चलो मेरे साथ, तो वह बोला मैं बच्चे सम्हालता हूँ, तो बहुएं भी पतियों के साथ व्यवसाय सम्हाल रही हैं। नारद जी ने कहा - यह घर गृहस्थी तुम्हारे बहु बेटों की है, तुम्हारी मृत्यु के बाद तो सम्हालना उन्हें ही है, तो यह उन पर छोड़ दो। उसने कहा ठीक कुछ समय सारी जिम्मेदारी छोड़कर फिर आपके साथ आता हूँ।
कुछ महीनों बाद नारद आये तो देखा बहुओं ने बच्चों के लिए व्यवस्था बना दी, बहु बेटे मिलकर घर व व्यवसाय बहुत अच्छे से सम्हाल रहे हैं। उस व्यक्ति के बारे में पता किया तो वह खेत में मजदूरों का हिसाब किताब कर रहा था। नारद जी ने कहा - व्यवसाय व घर दोनो बहु बेटों ने सम्हाल लिया अब चलो। बोला ठीक है चलता हूँ कुछ दिन की मोहलत दीजिये इस फ़सल को कटवा के मंडी पहुंचवा दूं तब चलूंगा।
कुछ वर्षो बाद नारद जी आये, उसे ढूंढा तो वह मिल गया। लेकिन पता चला गम्भीर बीमारी के कारण वह मर गया और पुत्रमोह में कुत्ता बनकर वहीँ जन्म गया। कुत्ते रूप में जन्मे व्यक्ति से कहा अरे अब तो चलो, इंसान अब तुम रहे नहीं तो यह पुराने परिवार का मोह क्यों। कुत्ते ने कहा - बेटे विदेश में हैं और घर की रखवाली कर रहा हूँ। वो आते हैं तो मैं तपस्या को निकलूंगा।
कुछ वर्षो बाद पुनः नारद जी उधर उस व्यक्ति के पास गए तो देखा एक सांप को लोग मार रहे थे। मुंह उसका कुचला जा रहा था, तब नारद जी उसे देखकर करुणा में भर गए।
बोले यह दृश्य मैंने उसी दिन देख लिया था जिस दिन तूने मुझे भोजन करवाया था, तुझे बचाना चाहता था, मग़र तू तो पुत्र मोह में ऐसा उलझा था कि मेरी बात तुझे समझ ही नहीं आयी। तू रौरव नरक का टिकट कटा लिया, मेरे ज्ञान देने व समझाने पर भी नहीं सम्हला।
यही मोहग्रस्त सभी मनुष्यों का हाल है, आत्मउत्कर्ष व आत्मउत्थान हेतु उनके पास वक्त ही नहीं है। परिवार मोह में विभिन्न कष्ट उठा रहे हैं, लेकिन मोह छोड़ ही नहीं पा रहे हैं।
क्या हम अमर है? नहीं न... अपने युवा बच्चों को उनकी जिम्मेदारी सौंप के जीवन का उत्तरार्द्ध लोकहित में और आत्मकल्याण में वानप्रस्थी व सन्यासी की तरह जियें। अपने बच्चों को उनकी गृहस्थी स्वयं सम्हालने दें।
🙏🏻 पुस्तक - *जो पचपन के हो चले* जरूर पढ़ें।
आज ही जल लेकर भगवान के समक्ष सङ्कल्प लें, वानप्रस्थ धारण करें, परिवार का मोह त्यागें और जीवन के उत्तरार्ध को लोकहित लगाएं, आत्मकल्याण करें।
जब शरीर मर जाये और राग, द्वेष, परिवार से मोह, इच्छाएं व वासनाएं शेष रहे तो नरक है।
जब शरीर जीवित रहे औरऔर राग, द्वेष, परिवार से मोह, इच्छाएं व वासनाएं छूट जाए तो मोक्ष है।
पशु-पक्षी भी अपने बच्चों को बड़े होने पर उन्हें स्वयं का जीवन सम्हालने हेतु छोड़ देते हैं, मग़र हाय रे मनुष्य! मरते मरते भी परिवार मोह को नहीं छोड़ता, 30 वर्ष का भी बच्चे को उसके जीवन को स्वयं सम्हालने हेतु नहीं छोड़ता।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
एक बार नारद जी पृथ्वी भ्रमण में निकले और एक व्यक्ति से मिले उसने आथित्य सत्कार किया व भोजन करवाया। नारद जी त्रिकालदर्शी थे तो बोले मित्र तुम्हारे बच्चे बड़े हो गए हैं चलो मैं तुम्हें गुरुमंत्र देता हूँ उसे जपो और मुक्ति के मार्ग पर चलो। परिवार का मोह छोड़ दो।
उस व्यक्ति ने कहा, सारा बिजनेस चौपट हो जाएगा, यदि मैं नहीं करूंगा। तब नारद बोले तुम अमर तो नहीं हो, कभी न कभी तो मरोगे तब तो उन्हें ही सम्हालना है, तो अभी समझा दो और तुम मुक्ति मार्ग पर चलो।
उस व्यक्ति ने कहा ठीक है महाराज जी, दोनों बेटों को व्यवसाय समझा दिया और घर में रहकर बच्चे सम्हालने लगा। कुछ दिन बाद नारद आये, बोले चलो मेरे साथ, तो वह बोला मैं बच्चे सम्हालता हूँ, तो बहुएं भी पतियों के साथ व्यवसाय सम्हाल रही हैं। नारद जी ने कहा - यह घर गृहस्थी तुम्हारे बहु बेटों की है, तुम्हारी मृत्यु के बाद तो सम्हालना उन्हें ही है, तो यह उन पर छोड़ दो। उसने कहा ठीक कुछ समय सारी जिम्मेदारी छोड़कर फिर आपके साथ आता हूँ।
कुछ महीनों बाद नारद आये तो देखा बहुओं ने बच्चों के लिए व्यवस्था बना दी, बहु बेटे मिलकर घर व व्यवसाय बहुत अच्छे से सम्हाल रहे हैं। उस व्यक्ति के बारे में पता किया तो वह खेत में मजदूरों का हिसाब किताब कर रहा था। नारद जी ने कहा - व्यवसाय व घर दोनो बहु बेटों ने सम्हाल लिया अब चलो। बोला ठीक है चलता हूँ कुछ दिन की मोहलत दीजिये इस फ़सल को कटवा के मंडी पहुंचवा दूं तब चलूंगा।
कुछ वर्षो बाद नारद जी आये, उसे ढूंढा तो वह मिल गया। लेकिन पता चला गम्भीर बीमारी के कारण वह मर गया और पुत्रमोह में कुत्ता बनकर वहीँ जन्म गया। कुत्ते रूप में जन्मे व्यक्ति से कहा अरे अब तो चलो, इंसान अब तुम रहे नहीं तो यह पुराने परिवार का मोह क्यों। कुत्ते ने कहा - बेटे विदेश में हैं और घर की रखवाली कर रहा हूँ। वो आते हैं तो मैं तपस्या को निकलूंगा।
कुछ वर्षो बाद पुनः नारद जी उधर उस व्यक्ति के पास गए तो देखा एक सांप को लोग मार रहे थे। मुंह उसका कुचला जा रहा था, तब नारद जी उसे देखकर करुणा में भर गए।
बोले यह दृश्य मैंने उसी दिन देख लिया था जिस दिन तूने मुझे भोजन करवाया था, तुझे बचाना चाहता था, मग़र तू तो पुत्र मोह में ऐसा उलझा था कि मेरी बात तुझे समझ ही नहीं आयी। तू रौरव नरक का टिकट कटा लिया, मेरे ज्ञान देने व समझाने पर भी नहीं सम्हला।
यही मोहग्रस्त सभी मनुष्यों का हाल है, आत्मउत्कर्ष व आत्मउत्थान हेतु उनके पास वक्त ही नहीं है। परिवार मोह में विभिन्न कष्ट उठा रहे हैं, लेकिन मोह छोड़ ही नहीं पा रहे हैं।
क्या हम अमर है? नहीं न... अपने युवा बच्चों को उनकी जिम्मेदारी सौंप के जीवन का उत्तरार्द्ध लोकहित में और आत्मकल्याण में वानप्रस्थी व सन्यासी की तरह जियें। अपने बच्चों को उनकी गृहस्थी स्वयं सम्हालने दें।
🙏🏻 पुस्तक - *जो पचपन के हो चले* जरूर पढ़ें।
आज ही जल लेकर भगवान के समक्ष सङ्कल्प लें, वानप्रस्थ धारण करें, परिवार का मोह त्यागें और जीवन के उत्तरार्ध को लोकहित लगाएं, आत्मकल्याण करें।
जब शरीर मर जाये और राग, द्वेष, परिवार से मोह, इच्छाएं व वासनाएं शेष रहे तो नरक है।
जब शरीर जीवित रहे औरऔर राग, द्वेष, परिवार से मोह, इच्छाएं व वासनाएं छूट जाए तो मोक्ष है।
पशु-पक्षी भी अपने बच्चों को बड़े होने पर उन्हें स्वयं का जीवन सम्हालने हेतु छोड़ देते हैं, मग़र हाय रे मनुष्य! मरते मरते भी परिवार मोह को नहीं छोड़ता, 30 वर्ष का भी बच्चे को उसके जीवन को स्वयं सम्हालने हेतु नहीं छोड़ता।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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