*महाभारत जब घर में अपनों से हो तो, लड़ना कठिन हो जाता है।*
पूर्व जन्म के दुश्मन और मित्र,
विभिन्न रिश्तों के रूप में संग आते हैं,
मित्र रिश्ते प्यार लुटाते हैं,
दुश्मन रिश्ते खून के आँशु रुलाते हैं।
मोह बन्धन में हम यूँ उलझ जाते हैं,
निर्णय लेना कठिन हो जाता है,
महाभारत जब घर में अपनों से हो तो,
हर रिश्ता उलझ जाता है,
निर्णय लेना बहुत कठिन होता है।
क्या सही है क्या गलत है,
कुछ भी समझ नहीं आता है,
तब मोह में ग्रस्त अर्जुन की तरह,
व्यक्ति किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है।
जब समझ नहीं आता,
अपनों से ही कैसे लड़ूँ,
तब लगता है स्वयं को ही,
क्यों न समाप्त कर लूँ?
दो अपनों के बीच,
किसका चयन करूँ,
दो अपनों में से,
किस एक को छोड़ दूँ?
ऐसी विकट परिस्थिति पर,
जब भी स्वयं को पाएँ,
कुछ दिन की छुट्टी लेकर,
गुरुधाम - तीर्थ स्थल चले जाएं।
खुले आसमान के नीचे,
श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करें,
स्वयं को अर्जुन मानकर,
भगवान कृष्ण से मदद की गुहार करें।
खुले आसमान की तरफ़,
सर ऊंचा कर एकटक निहारो,
स्वयं के अस्तित्व को और इसे बनाने वाले को,
पूरी शक्ति से पुकारो।
जब समस्या पर ध्यान केंद्रित करोगे,
तब समाधान नहीं दिखेगा,
जब समाधान पर ध्यान केंद्रित करोगे,
तब समस्या का अस्तित्व ही नहीं बचेगा।
जीवन युद्ध है,
लड़ना तो पड़ेगा,
फोड़ा हुआ है,
तो ऑपरेशन करना पड़ेगा।
ज़िंदगी में निर्णय,
सही गलत के बीच नहीं लेना होता है,
जिंदगी में तो निर्णय,
दो ग़लत में से कोई एक कम गलत चुनना होता है,
दो सही में से कोई एक ज्यादा सही चुनना होता है।
अनिर्णय में रहोगे तो,
हैरान व परेशान रहोगे,
कुछ न कुछ निर्णय ले लोगे तो,
जीवन के पथ पर बढ़ सकोगे।
कायरता छोड़कर,
स्वयं में साहस व शक्ति का संचार करो,
हिम्मत व सूझबूझ से,
अपनी समस्याओं का समाधान करो।
मनुष्यो को उनकी आकृति से नहीं,
उनकी अंतः प्रकृति से पहचानो,
भीतर से वो सिंह है या वह लोमड़ी है या अन्य जीव है,
उसे समझो और तद्नुसार ही व्यवहार करो।
जो स्वयं की मदद करता है,
ईश्वर भी उसी की मदद कर सकता है,
जन्मजन्मांतर के प्रारब्ध का शमन,
इंसान स्वयं इस जन्म में ही कर सकता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
पूर्व जन्म के दुश्मन और मित्र,
विभिन्न रिश्तों के रूप में संग आते हैं,
मित्र रिश्ते प्यार लुटाते हैं,
दुश्मन रिश्ते खून के आँशु रुलाते हैं।
मोह बन्धन में हम यूँ उलझ जाते हैं,
निर्णय लेना कठिन हो जाता है,
महाभारत जब घर में अपनों से हो तो,
हर रिश्ता उलझ जाता है,
निर्णय लेना बहुत कठिन होता है।
क्या सही है क्या गलत है,
कुछ भी समझ नहीं आता है,
तब मोह में ग्रस्त अर्जुन की तरह,
व्यक्ति किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है।
जब समझ नहीं आता,
अपनों से ही कैसे लड़ूँ,
तब लगता है स्वयं को ही,
क्यों न समाप्त कर लूँ?
दो अपनों के बीच,
किसका चयन करूँ,
दो अपनों में से,
किस एक को छोड़ दूँ?
ऐसी विकट परिस्थिति पर,
जब भी स्वयं को पाएँ,
कुछ दिन की छुट्टी लेकर,
गुरुधाम - तीर्थ स्थल चले जाएं।
खुले आसमान के नीचे,
श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करें,
स्वयं को अर्जुन मानकर,
भगवान कृष्ण से मदद की गुहार करें।
खुले आसमान की तरफ़,
सर ऊंचा कर एकटक निहारो,
स्वयं के अस्तित्व को और इसे बनाने वाले को,
पूरी शक्ति से पुकारो।
जब समस्या पर ध्यान केंद्रित करोगे,
तब समाधान नहीं दिखेगा,
जब समाधान पर ध्यान केंद्रित करोगे,
तब समस्या का अस्तित्व ही नहीं बचेगा।
जीवन युद्ध है,
लड़ना तो पड़ेगा,
फोड़ा हुआ है,
तो ऑपरेशन करना पड़ेगा।
ज़िंदगी में निर्णय,
सही गलत के बीच नहीं लेना होता है,
जिंदगी में तो निर्णय,
दो ग़लत में से कोई एक कम गलत चुनना होता है,
दो सही में से कोई एक ज्यादा सही चुनना होता है।
अनिर्णय में रहोगे तो,
हैरान व परेशान रहोगे,
कुछ न कुछ निर्णय ले लोगे तो,
जीवन के पथ पर बढ़ सकोगे।
कायरता छोड़कर,
स्वयं में साहस व शक्ति का संचार करो,
हिम्मत व सूझबूझ से,
अपनी समस्याओं का समाधान करो।
मनुष्यो को उनकी आकृति से नहीं,
उनकी अंतः प्रकृति से पहचानो,
भीतर से वो सिंह है या वह लोमड़ी है या अन्य जीव है,
उसे समझो और तद्नुसार ही व्यवहार करो।
जो स्वयं की मदद करता है,
ईश्वर भी उसी की मदद कर सकता है,
जन्मजन्मांतर के प्रारब्ध का शमन,
इंसान स्वयं इस जन्म में ही कर सकता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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