Sunday 2 February 2020

गुरुकुल परम्परा - एक हाथ में शास्त्र एवं दूसरे हाथ में शस्त्र*

*गुरुकुल परम्परा - एक हाथ में शास्त्र एवं दूसरे हाथ में शस्त्र*

पता नहीं आप में से कितने लोगों ने धर्म साहित्यों का गहराई से अध्ययन किया है व कितने लोगों ने सनातन धर्म मे पूजे जाने वाले देवी देवताओं के प्रतीक चित्रों के रहस्य को समझा है व कितने लोगों को वैदिक गुरुकुल परम्परा के बारे में जानकारी है।

हम यहाँ मात्र उन तथ्यों व तर्को को प्रस्तुत कर रहे हैं, जो हमारी दृष्टि में अध्ययन के दौरान आये:-

1- प्राचीन वैदिक समय में स्त्री पुरुषों को समान शिक्षा का अधिकार था।
2- गुरुकुल शिक्षा दीक्षा के केंद्र थे जो आवासीय(हॉस्टल सुविधा) और बिना आवास के दोनों तरह से सन्चालित थे।
3- गुरुकुल केवल ऋषियों व तपस्वियों द्वारा चलाया जाता था जो गृहस्थ या सन्यासी हो सकते थे। जो ज्ञान दाता शास्त्रों के विशेषज्ञ थे साथ ही शस्त्र के ज्ञाता व युद्ध कला प्रवीण थे।
4- विद्यार्थियों को शास्त्र(Information of knowledge) पढ़ाने से पूर्व उनके मन की पात्रता उसे ज्ञान को ग्रहण करने योग्य बनाई जाती थी। इसलिए उनकी चेतना को उर्ध्वगामी व सुपात्र बनाने हेतु उन्हें विभिन्न साधनाये करवाई जाती थी - जिसमें मन को साधने हेतु ध्यान, मन को ऊर्जावान बनाने हेतु गायत्री मन्त्र जप, मन की मजबूती के लिए विभिन्न प्राणायाम जैसे - भ्रामरी, नाड़ीशोधन, गणेश योग  इत्यादि प्रमुख थे।
5- जब बच्चे का मन सध जाता था तब उसे शास्त्र (विभिन्न ज्ञान परक पुस्तके) पढ़ाई जाती थी।
6- बच्चे को शस्त्र व युद्ध कला सिखाने से पूर्व उनके शरीर को मजबूत बनाया जाता था - इसके लिए सूर्य नमस्कार, दण्ड बैठक, भार वहन, योग इत्यादि तकनीक उपयोग में लाई जाती थी।
7- जब शरीर मजबूत हो जाता था तो युद्ध कला पहले बांस से बने हथियारों, फिर लट्ठ, फिर लोहे के अस्त्र शस्त्र से युद्ध कला सिखाई जाती थी।
8- जब युवावस्था में उच्च पढ़ाई(ग्रेजुएशन) की अवस्था आती थी तब उन्हें मन्त्र प्रयोग से अस्त्र को ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ विभिन्न देव शक्तियों की शक्ति के साथ चलाना सिखाते थे।
9- उन्हें आयुर्वेद की शिक्षा बचपन से अनिवार्य थी। आयुर्वेद - दो शब्दों से मिलकर बना है - आयु + वेद। वेद का अर्थ होता है ज्ञान। आयु का अर्थ है जीवनी शक्ति व स्वास्थ्य भरी उम्र। ऐसा ज्ञान जो समग्र स्वास्थ्य के साथ जीने की कला सिखाये। आयुर्वेद की एक शाखा - उपनिषद - यज्ञ एक समग्र उपचार सिखाया जाता था।
10- दैनिक गायत्री मंत्र जप, उगते सूर्य का ध्यान, धार्मिक पुस्तकों का स्वाध्याय एवं यज्ञ प्रत्येक विद्यार्थी को उम्रभर करने के लिए निर्देशित किया जाता था।
11- किसी एक ईष्ट देवी देवता को आदर्श रूप में चुनने को कहा जाता था। जिसे चुना उसके गुण स्वयं में धारण करने की प्रेरणा दी जाती थी। सभी देवी देवता अस्त्र, शस्त्र एवं शास्त्रों से सुसज्जित होते हैं। माता पार्वती साधारण समय मे तपलीन शिव के साथ नॉर्मल गृहणी है। युद्ध के समय दुर्गा व काली हैं। शिव साधारण समय में भोलेनाथ हैं, युद्ध के समय महाकाल है। गणेश, कार्तिकेय, रिद्धि-सिद्धि व संतोषी माता समस्त परिवार साधारण समय गृहस्थ हैं, युद्ध के वक्त सभी असुरों को नष्ट करने में सक्षम हैं। अतः शिव परिवार की तरह कुशल गृहस्थ बनने की प्रेरणा दी जाती थी। गृहस्थ होते हुये भी योगी व योद्धा दोनों बनने को कहा जाता था।

इसी गुरुकुल परम्परा का कमाल था कि भारत सोने की चिड़िया था और विश्व व्यापार में 23% मार्किट पर राज करता था। टेक्नोलॉजी व चिकित्सा व्यवस्था उच्च थी।

इस गुरुकुल परम्परा को तोड़े बिना, कोई कैसे भारत को गुलाम बना सकता था। इसलिए जब जब भी कोई राक्षस शक्ति सम्पन्न बनकर भारत वर्ष को गुलाम बनाना चाहता, उसका पहला टारगेट गुरुकुल ही होते थे।

प्राचीन समय के राक्षस हों या मुगल हो या अंग्रेज सभी ने गुरुकुल ही ध्वस्त किये। परिणाम आपके सामने है। सब पुनः ठीक करना है और भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना है तो पुनः शस्त्र व शास्त्र युक्त गुरुकुल परम्परा को विद्यालयों में लाना होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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