*हाँ, मैं वैरागी हूँ*
*मन से गृह व संसार त्यागी हूँ*
*मन से गृह व संसार त्यागी हूँ*
वैराग्य गीत गाता हूँ,
वैराग्य की बात बताता हूँ,
क्या तुम मेरे साथ यह वैराग्य गीत,
गुनगुनाना चाहोगे?
क्या तुम आत्मज्ञान के मार्ग पर,
साथ चलना चाहोगे?
वैराग्य की बात बताता हूँ,
क्या तुम मेरे साथ यह वैराग्य गीत,
गुनगुनाना चाहोगे?
क्या तुम आत्मज्ञान के मार्ग पर,
साथ चलना चाहोगे?
मनुष्य देह में यदि ज्ञान व वैराग्य न हो,
तो यह नर्क समान कष्टदायी है,
यदि ज्ञान भरा हो तो यही जीवन,
स्वर्ग सा सुखदायी है।
तो यह नर्क समान कष्टदायी है,
यदि ज्ञान भरा हो तो यही जीवन,
स्वर्ग सा सुखदायी है।
यह शरीर तो मलमूत्र के द्वार से निकला है,
यह शरीर रक्त, मांस, मलमूत्र से भरा है,
अस्थियों के ढांचे से निर्मित है,
मांसपेशियों से बंधा है,
उस पर माँस का लेपन चढ़ा है,
चमड़ी से पुनः तरीके से ढका है,
विष्ठा-मूत्र-वात-कफ-पित्त-मज्जा-मेद,
इत्यादि मलों से भरा पड़ा है,
तुम ही बताओ,
फ़िर जीव इस शरीर के मोह में क्यों पड़ा है,
जिसे चिता में जलकर मुट्ठी भर राख होना है।
यह शरीर रक्त, मांस, मलमूत्र से भरा है,
अस्थियों के ढांचे से निर्मित है,
मांसपेशियों से बंधा है,
उस पर माँस का लेपन चढ़ा है,
चमड़ी से पुनः तरीके से ढका है,
विष्ठा-मूत्र-वात-कफ-पित्त-मज्जा-मेद,
इत्यादि मलों से भरा पड़ा है,
तुम ही बताओ,
फ़िर जीव इस शरीर के मोह में क्यों पड़ा है,
जिसे चिता में जलकर मुट्ठी भर राख होना है।
क्यों न तप से ज्ञान प्राप्त करूँ,
क्यों न ज्ञान से मन पर लगाम लगाऊं,
क्यों न मन को आत्मज्ञान में रमाऊँ,
निज शाश्वत स्वरूप के दर्शन पाऊँ?
क्यों न ज्ञान से मन पर लगाम लगाऊं,
क्यों न मन को आत्मज्ञान में रमाऊँ,
निज शाश्वत स्वरूप के दर्शन पाऊँ?
चित्त से संसार मिटाऊं,
चित्त शुद्धि हेतु घण्टों ध्यान लगाऊँ,
हृदय कमल के मध्य,
उस अविनाशी परमात्मा के दर्शन पाऊँ।
चित्त शुद्धि हेतु घण्टों ध्यान लगाऊँ,
हृदय कमल के मध्य,
उस अविनाशी परमात्मा के दर्शन पाऊँ।
मैं सत चित आनन्द हूँ,
मैं ही धरती और आकाश हूँ,
मैं ही कण कण में हूँ,
क्योंकि मैं वही हूँ,
उसी से निर्मित हूँ,
उसी का अंश हूँ,
मैं उसमें समाया हूँ,
वह मुझमें समाया है,
यह जगत माया है,
शाश्वत तो उसी की कृपा छाया है।
मैं ही धरती और आकाश हूँ,
मैं ही कण कण में हूँ,
क्योंकि मैं वही हूँ,
उसी से निर्मित हूँ,
उसी का अंश हूँ,
मैं उसमें समाया हूँ,
वह मुझमें समाया है,
यह जगत माया है,
शाश्वत तो उसी की कृपा छाया है।
वैराग्य गीत गाता हूँ,
वैराग्य की बात बताता हूँ,
क्या तुम मेरे साथ यह वैराग्य गीत,
गुनगुनाना चाहोगे?
क्या तुम आत्मज्ञान के मार्ग पर,
साथ चलना चाहोगे?
वैराग्य की बात बताता हूँ,
क्या तुम मेरे साथ यह वैराग्य गीत,
गुनगुनाना चाहोगे?
क्या तुम आत्मज्ञान के मार्ग पर,
साथ चलना चाहोगे?
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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