*यौगिक परम्परायुक्त स्वास्थ्य संवर्द्धन से युवाओं का व्यक्तित्व परिष्कार*
यौवन ईश्वरीय वरदान है और अकूत शक्तियों का भण्डार है।
विद्युत की शक्ति को सही दिशा धारा में व्यवस्थित प्रवाहित किया जा सके तो विद्युत उपकरण चलेंगे और घर रौशन होगा। लेकिन यदि यही विद्युत अनियन्त्रित हुई व दिशा भटकी तो बिजली के झटके लगेंगे और घर भी जला कर राख कर सकती है।
इसी तरह युवा शक्ति को यदि सही दिशा देकर नियंत्रित नहीं किया गया तो यह तबाही लाती है और युवा व्यक्तित्व को विखंडित कर देती है। जिस प्रकार परिष्कृत युवा शक्ति राष्ट्र के निर्माण और उत्थान में सहयोग देती है, वैसे ही विकृत युवा शक्ति राष्ट्र के विध्वंस व पतन का कारण बनती है।
वेदों में कहा गया है शरीर रूपी हार्डवेयर की क्षमता के अनुसार ही उस पर हाई कैपेसिटी का सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किया जा सकता है। साधारण शब्दो मे स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन व स्वच्छ मन का वास होता है, परिष्कृत स्वस्थ व स्वच्छ मन ही ईश्वरीय अनुसाशन को स्वीकारता है और स्वयं के लिए अच्छा व बुरा सोचने का सामर्थ्य रखता है। स्वयं के मन को भटकने से रोक पाता है।व्यक्तित्व के बिखराव को रोककर परिष्कृत शानदार व्यक्तित्व गढ़ने में सक्षम होता है।
प्रश्न यह उठता है कि युवाओं के व्यक्तित्व को परिष्कृत करने की शुरुआत कहाँ से व कैसे करें?
सभी आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर ध्वनि मत से इसबात पर सहमति प्रस्तुत करते हैं कि इसकी शुरुआत में सहायक है योग एवं प्राणायाम का नित्य अभ्यास
तिल में तेल और काष्ठ में अग्नि होती है, सभी जानते हैं इसे प्रयत्न पूर्वक विधिव्यवस्था अपनाकर तिल से तेल निकाला जाता है और काष्ठ से अग्नि निकाली जाती है। इसीतरह यौवन में दैवीय अखंड ऊर्जा विद्यमान है, डिवाइन पोटेंसी विद्यमान है, लेकिन इसे भी अनवरत प्रयत्न और यौगिक विधिव्यवस्था अपनाकर ही बाहर उभारा जा सकता है।
*स्वास्थ्य संवर्द्धन से परिष्कृत बुद्धि निखरेगी, जो स्वयं की क्षमता योग्यता का ठीक आंकलन करने में सक्षम होगी, साथ ही योग्यता व पात्रता कैसे निखारें उस पर कार्य करेगी। स्वयं के लिए सही कैरियर का चुनाव करने में सक्षम होगी। साथ ही उस कैरियर की ऊँचाई तक कैसे पहुंच सकते हैं उस पर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करेगी। एक सफल व सुखी जीवन स्वयं के लिए निर्माण में बहुत मददगार होगी। हम जो कुछ भी जीवन मे प्राप्त करना चाहते हैं उसके लिए योग्य व सुपात्र बनने का भाव जगेगा। कुछ कर गुजरने के लिए आत्मविश्वास मिलेगा। कठिन चुनौतियों से मन नहीं डरेगा, विजेता की मनोभूमि की तैयारी बेहतर होगी।*
स्वास्थ्य संवर्द्धन में योग वस्तुतः विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) द्वारा वर्णित समग्र स्वास्थ्य की बात कर रहा है। जिसमें शारिरिक स्वास्थ्य, मानसिक सवास्थ्य, सामाजिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक स्वास्थ्य इन चारों की समग्रता समाहित हो।
कुछ दैनिक योग प्राणायाम का निरन्तर अभ्यास जैसे विपश्यना ध्यान योग, गायत्रीमंत्र जप योग, सहज प्रज्ञा योग, अनुलोमविलोम प्राणायाम, नाड़ी शोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, सूर्य नमस्कार यदि बच्चों और युवाओं के नित्य अभ्यास में लाया जाए तो उनका समग्र स्वास्थ्य का संवर्द्धन होगा। यौगिक परम्परायुक्त स्वास्थ्य संवर्द्धन से युवाओं का व्यक्तित्व परिष्कार होगा। उनके भीतर की शक्तियों का अपव्यय रुकेगा और नियंत्रित यौवन ऊर्जा समाज के सृजन व उत्थान में नियोजित होगी।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
यौवन ईश्वरीय वरदान है और अकूत शक्तियों का भण्डार है।
विद्युत की शक्ति को सही दिशा धारा में व्यवस्थित प्रवाहित किया जा सके तो विद्युत उपकरण चलेंगे और घर रौशन होगा। लेकिन यदि यही विद्युत अनियन्त्रित हुई व दिशा भटकी तो बिजली के झटके लगेंगे और घर भी जला कर राख कर सकती है।
इसी तरह युवा शक्ति को यदि सही दिशा देकर नियंत्रित नहीं किया गया तो यह तबाही लाती है और युवा व्यक्तित्व को विखंडित कर देती है। जिस प्रकार परिष्कृत युवा शक्ति राष्ट्र के निर्माण और उत्थान में सहयोग देती है, वैसे ही विकृत युवा शक्ति राष्ट्र के विध्वंस व पतन का कारण बनती है।
वेदों में कहा गया है शरीर रूपी हार्डवेयर की क्षमता के अनुसार ही उस पर हाई कैपेसिटी का सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किया जा सकता है। साधारण शब्दो मे स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन व स्वच्छ मन का वास होता है, परिष्कृत स्वस्थ व स्वच्छ मन ही ईश्वरीय अनुसाशन को स्वीकारता है और स्वयं के लिए अच्छा व बुरा सोचने का सामर्थ्य रखता है। स्वयं के मन को भटकने से रोक पाता है।व्यक्तित्व के बिखराव को रोककर परिष्कृत शानदार व्यक्तित्व गढ़ने में सक्षम होता है।
प्रश्न यह उठता है कि युवाओं के व्यक्तित्व को परिष्कृत करने की शुरुआत कहाँ से व कैसे करें?
सभी आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर ध्वनि मत से इसबात पर सहमति प्रस्तुत करते हैं कि इसकी शुरुआत में सहायक है योग एवं प्राणायाम का नित्य अभ्यास
तिल में तेल और काष्ठ में अग्नि होती है, सभी जानते हैं इसे प्रयत्न पूर्वक विधिव्यवस्था अपनाकर तिल से तेल निकाला जाता है और काष्ठ से अग्नि निकाली जाती है। इसीतरह यौवन में दैवीय अखंड ऊर्जा विद्यमान है, डिवाइन पोटेंसी विद्यमान है, लेकिन इसे भी अनवरत प्रयत्न और यौगिक विधिव्यवस्था अपनाकर ही बाहर उभारा जा सकता है।
*स्वास्थ्य संवर्द्धन से परिष्कृत बुद्धि निखरेगी, जो स्वयं की क्षमता योग्यता का ठीक आंकलन करने में सक्षम होगी, साथ ही योग्यता व पात्रता कैसे निखारें उस पर कार्य करेगी। स्वयं के लिए सही कैरियर का चुनाव करने में सक्षम होगी। साथ ही उस कैरियर की ऊँचाई तक कैसे पहुंच सकते हैं उस पर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करेगी। एक सफल व सुखी जीवन स्वयं के लिए निर्माण में बहुत मददगार होगी। हम जो कुछ भी जीवन मे प्राप्त करना चाहते हैं उसके लिए योग्य व सुपात्र बनने का भाव जगेगा। कुछ कर गुजरने के लिए आत्मविश्वास मिलेगा। कठिन चुनौतियों से मन नहीं डरेगा, विजेता की मनोभूमि की तैयारी बेहतर होगी।*
स्वास्थ्य संवर्द्धन में योग वस्तुतः विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) द्वारा वर्णित समग्र स्वास्थ्य की बात कर रहा है। जिसमें शारिरिक स्वास्थ्य, मानसिक सवास्थ्य, सामाजिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक स्वास्थ्य इन चारों की समग्रता समाहित हो।
कुछ दैनिक योग प्राणायाम का निरन्तर अभ्यास जैसे विपश्यना ध्यान योग, गायत्रीमंत्र जप योग, सहज प्रज्ञा योग, अनुलोमविलोम प्राणायाम, नाड़ी शोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, सूर्य नमस्कार यदि बच्चों और युवाओं के नित्य अभ्यास में लाया जाए तो उनका समग्र स्वास्थ्य का संवर्द्धन होगा। यौगिक परम्परायुक्त स्वास्थ्य संवर्द्धन से युवाओं का व्यक्तित्व परिष्कार होगा। उनके भीतर की शक्तियों का अपव्यय रुकेगा और नियंत्रित यौवन ऊर्जा समाज के सृजन व उत्थान में नियोजित होगी।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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