*आत्मबोध जागरण क्यों आवश्यक है?*
दिन में आकाश भी है, नेत्र भी हैं और तारे भी हैं, फ़िर भी हम देख नहीं पाते, तो क्या तारे ग़ायब हो गए?
दिन में पॉल्यूशन का कुहरा हो और मेघों से सूर्य ढका हो, तो नेत्र होते हुए भी सूर्य नहीं दिखता है, धरती के घूमने के कारण रात्रि में भी सूर्य नहीं दिखता है? तो उस वक्त सूर्य गायब या अस्त होता है?
नहीं न... ऐसे ही मृत्यु के पश्चात मात्र देह नष्ट होने से हम उस जीवात्मा को नहीं देख पाते... तो क्या शोकाकुल सिर्फ़ इसलिए होना कि हमारे नेत्र पंचतत्व विहीन शरीर नहीं देख पाते हैं, क्या उचित है?
वस्तुतः यदि कोई जीवात्मा अभी पंचतत्वों में अभिव्यक्त नहीं तो क्या उसका अस्तित्व नहीं है?
हमें तुच्छ अपने नेत्रों और तुच्छ पदार्थ विद्या पर इतना गर्व व अहंकार है, और इस अहंकार में यूँ डूब गए हैं कि स्वयं के ज्ञान को सबकुछ समझ बैठे है?
मात्र द्विआयामी और त्रिआयामी स्थूल दृष्टि रखने वाला मनुष्य चतुर्थ आयाम और पंचम आयाम को देखने में सर्वथा असमर्थ है यह भूल गए हैं।
आइंस्टीन और न्यूटन जैसे बड़े वैज्ञानिक इन चतुर्थ व पंचम आयामों की चर्चा कर चुके हैं, मग़र अफ़सोस लोगों को समझ ही नहीं आया।
चतुर्थ आयाम और पंचम आयाम में देखने की क्षमता आ जाये तो दुनियाँ के नज़ारे ही बदल जाएंगे। वस्तुतः दुःख व सुख से परे हो जाएंगे। इस संसार की स्वप्न की भांति भ्रांति मिट जायेगी। जिस प्रकार स्वप्न में हमारा अस्तित्व होता है एक स्वप्न शरीर होता है। जागने के बाद स्वप्न के तिरोहित होने का गम नहीं होता है। इसीतरह आत्मबोध द्वारा जागने पर यह स्वप्नवत संसार व इससे जुड़े रिश्तों के बनने या तिरोहित होने पर न सुख होता है और न दुःख होता है।
साधना जगत में समय यात्रा सम्भव थी है और रहेगी। मग़र यह यात्रा स्थूल पंचतत्वों से नहीं होती, यह तो चेतन सत्ता हमारी आत्मा कर सकती है। पूर्वज हों या आने वाले भविष्य के परिजन किसी से भी सम्वाद सम्भव है। सूक्ष्म लोकों में आवागमन सम्भव है, दिव्य लोकों की झलक झाँकी सम्भव है।
हम रात्रि में यदि पृथ्वी की दूसरी ओर गमन करेंगे तो पता चल जाता है, सूर्य तो अस्त हुआ ही नहीं, अपितु पृथ्वी घूम रही है, दिन में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर आकर ब्रह्माण्ड में देख सकें तो समस्त तारों का अस्तित्व मिल जाएगा, साधना द्वारा आनंदमय कोष का अनावरण करके सहस्त्रार तक पहुंच सके तो पँच आयामी दृष्टि के मालिक बन जाएंगे। स्वप्नवत संसार में आत्मबोध जागरण हो जाएगा। तब मात्र आनन्द ही आनन्द जीवन में शेष रहेगा, सब कुछ दृष्टि व अनुभव में होगा, कहीं भी आवागमन सरल होगा। इसलिए आत्मबोध जागरण अत्यंत जरूरी है, स्वयं को मात्र साधना मार्ग से ही जगाया जा सकता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
दिन में आकाश भी है, नेत्र भी हैं और तारे भी हैं, फ़िर भी हम देख नहीं पाते, तो क्या तारे ग़ायब हो गए?
दिन में पॉल्यूशन का कुहरा हो और मेघों से सूर्य ढका हो, तो नेत्र होते हुए भी सूर्य नहीं दिखता है, धरती के घूमने के कारण रात्रि में भी सूर्य नहीं दिखता है? तो उस वक्त सूर्य गायब या अस्त होता है?
नहीं न... ऐसे ही मृत्यु के पश्चात मात्र देह नष्ट होने से हम उस जीवात्मा को नहीं देख पाते... तो क्या शोकाकुल सिर्फ़ इसलिए होना कि हमारे नेत्र पंचतत्व विहीन शरीर नहीं देख पाते हैं, क्या उचित है?
वस्तुतः यदि कोई जीवात्मा अभी पंचतत्वों में अभिव्यक्त नहीं तो क्या उसका अस्तित्व नहीं है?
हमें तुच्छ अपने नेत्रों और तुच्छ पदार्थ विद्या पर इतना गर्व व अहंकार है, और इस अहंकार में यूँ डूब गए हैं कि स्वयं के ज्ञान को सबकुछ समझ बैठे है?
मात्र द्विआयामी और त्रिआयामी स्थूल दृष्टि रखने वाला मनुष्य चतुर्थ आयाम और पंचम आयाम को देखने में सर्वथा असमर्थ है यह भूल गए हैं।
आइंस्टीन और न्यूटन जैसे बड़े वैज्ञानिक इन चतुर्थ व पंचम आयामों की चर्चा कर चुके हैं, मग़र अफ़सोस लोगों को समझ ही नहीं आया।
चतुर्थ आयाम और पंचम आयाम में देखने की क्षमता आ जाये तो दुनियाँ के नज़ारे ही बदल जाएंगे। वस्तुतः दुःख व सुख से परे हो जाएंगे। इस संसार की स्वप्न की भांति भ्रांति मिट जायेगी। जिस प्रकार स्वप्न में हमारा अस्तित्व होता है एक स्वप्न शरीर होता है। जागने के बाद स्वप्न के तिरोहित होने का गम नहीं होता है। इसीतरह आत्मबोध द्वारा जागने पर यह स्वप्नवत संसार व इससे जुड़े रिश्तों के बनने या तिरोहित होने पर न सुख होता है और न दुःख होता है।
साधना जगत में समय यात्रा सम्भव थी है और रहेगी। मग़र यह यात्रा स्थूल पंचतत्वों से नहीं होती, यह तो चेतन सत्ता हमारी आत्मा कर सकती है। पूर्वज हों या आने वाले भविष्य के परिजन किसी से भी सम्वाद सम्भव है। सूक्ष्म लोकों में आवागमन सम्भव है, दिव्य लोकों की झलक झाँकी सम्भव है।
हम रात्रि में यदि पृथ्वी की दूसरी ओर गमन करेंगे तो पता चल जाता है, सूर्य तो अस्त हुआ ही नहीं, अपितु पृथ्वी घूम रही है, दिन में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर आकर ब्रह्माण्ड में देख सकें तो समस्त तारों का अस्तित्व मिल जाएगा, साधना द्वारा आनंदमय कोष का अनावरण करके सहस्त्रार तक पहुंच सके तो पँच आयामी दृष्टि के मालिक बन जाएंगे। स्वप्नवत संसार में आत्मबोध जागरण हो जाएगा। तब मात्र आनन्द ही आनन्द जीवन में शेष रहेगा, सब कुछ दृष्टि व अनुभव में होगा, कहीं भी आवागमन सरल होगा। इसलिए आत्मबोध जागरण अत्यंत जरूरी है, स्वयं को मात्र साधना मार्ग से ही जगाया जा सकता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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