प्रश्न - *वर्तमान विश्व आपदा कोविड 19 - कोरोना वायरस संक्रमण के सम्बंध में श्रीमद्भगवद्गीता के सांख्य योग के आधार पर विवेचना करके मोहग्रस्त हम मनुष्यो की स्थिति को उबरने हेतु भगवान कृष्ण के वचन स्पष्ट कर दीजिए।*
उत्तर - आत्मीय भाई, मोहग्रस्त अर्जुन को मोह से उबारने के लिए और उसके विषाद को दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अध्याय 2 में सांख्यिकीय विश्लेषण (spiritual and psychology statistics) से समझाया है। उसे ही वर्तमान कोरोना संक्रमण के समय फैले मोह, विषाद व दुःख के शमन के लिए सुनो:-
1- वस्त्र का निर्माण व उसका नष्ट होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। अब वह वस्त्र जलकर नष्ट हुआ या कीड़े-मकोड़ो ने उसे नष्ट किया या चूहे ने कुतर कर नष्ट किया। माध्यम कोई भी हो वस्त्र तो नष्ट होना ही था। वस्त्र के नष्ट होने से उसे जिसने कुछ दिन पहना था वह नष्ट नहीं होता।
2- इसी तरह शरीर रूपी वस्त्र का निर्माण व उसका नष्ट होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। अब यह शरीर रूपी वस्त्र जलकर नष्ट हुआ या जहरीले कीड़े-मकोड़ो के काटने से नष्ट हुआ या विषाणु जनित रोग कोरोना के संक्रमण ने इसे नष्ट किया। माध्यम कोई भी हो शरीर रूपी वस्त्र को तो नष्ट होना ही था। वस्त्र के नष्ट होने से उसे जिस आत्मा ने कुछ दिन इसे पहना था वह नष्ट नहीं होता।
3- आत्मा अजर अमर अविनाशी है, इसका जन्म लेना(वस्त्र धारण करना), मृत्यु होना (वस्त्र त्यागना) और पुनः नया वस्त्र पहनना (पुनर्जन्म) यह स्वभाविक प्रक्रिया है जो अनवरत चल रही है।
4- अतः इसके सामूहिकता से नष्ट होने के दृश्य व खबरों से स्वयं के मन को विचलित मत होने दो। इस समय दुःख, शोक, विषाद जैसी कोई भावना मन मे उतपन्न करने की जरूरत नहीं है। जिसका जब समय आएगा वह निश्चयत: शरीर का त्याग करेगा अब वह त्यागने का बहाना कोई भी हो सकता है।
5- भारत सरकार के अनुशासन और लाकडाउन को पालन करते हुए व साफ-सफ़ाई से स्वयं व परिवार जन के जीवन रक्षण का कर्म योग आसक्ति रहित होकर करो। जीवन बचना या जीवन न बचना यह कर्मफ़ल भगवान के हाथ मे छोड़ दो। तुम सिर्फ कर्म करो एवं फल की चिंता मत करो।
6- यदि तुम चिकित्सा जगत से जुड़े हो तो उत्तम सेवा करो और प्रत्येक जीवन को बचाने का कर्मयोग करो।लेकिन रोगी के जीवन से आशक्त मत हो, उसका जीवन बचेगा या नहीं इस कर्मफ़ल में मत उलझो।
7- यदि चिकित्सा जगत के अन्वेषक हो तो जुट जाओ वैक्सीन व दवा ढूंढने में, कर्मयोग करो, पुरुषार्थ करो। बिना इस बात की परवाह किये कि सफल होंगे या नहीं।
8- यदि पुलिस व सेना में हो, ड्यूटी पर हो अपना अपना पुरुषार्थ निर्देशित नियम पालन करते हुए करो, बिना इस बात की चिंता किये कि कहीं हम स्वयं न संक्रमित हो जाएं। जीवन-मरण कर्मफ़ल है वह ईश्वर के आधीन है, हमें कर्म करना है।
9- यदि किसान हो या भोजन सम्बन्धी व्यवस्था में जुटे हो तो भोज्य आपूर्ति में जुट जाओ, पुरुषार्थ करो कर्मफ़ल की परवाह मत करो।
10- यदि साधारणजन हो तो भूखे ग़रीब एक या दो या जितनी सामर्थ्य हो उनकी क्षुधा निवारण में जुट जाओ। पूरे विश्व के भूखों की चिंता मत करो। जो कर सकते हो वो कर डालो। पी एम केयर या जिस भी संस्था से जुड़े हो जो भी सेवा कार्य कर रहा है उसमें सामर्थ्य अनुसार दान दे दो। दान का उपयोग कहाँ व कैसे होगा इसकी चिंता मत करो।
11- यह जीवन ईश्वरीय निमित्त बनकर जियो। न सुख के क्षणों में भगवान को भूलो और न ही दुःख के क्षणों में भगवान को भूलो। प्रत्येक जीवन की घटना को साक्षी भाव से देखो और सुनो, मग़र उन घटनाओं से व्यथित मत हो। क्योंकि जो तुम्हारे हाथ में नहीं उसका शोक करके कोई लाभ नहीं है।
12- महाकाल का सामूहिक संघार का उदघोष उसी वक्त हो गया था जब चतुर्ग्रही योग नबम्बर 2019 में बना था, 21 नवंबर को चार ग्रहों की युति बनी थी जिसमें शनि,केतु, शुक्र और बृहस्पति थे। शनि और केतु के धनु राशि में होने से अशुभ परिणाम मिलता है जबकि शुक्र और बृहस्पति के धनु राशि में आने पर शुभ फल की प्राप्ति होती है। भारत के कई ज्योतिष पंचाग में विषाणु महामारी की ग्रह गणना अनुसार भविष्यवाणी कर दी गयी थी। अतः जो नियति है जिसमें पूरे विश्व की आबादी का 20% नष्ट होगा तो होगा। अब यह इस वर्ष नबम्बर 2020 तक ही ठीक होगा तो होगा। अर्थ व्यवस्था में मंदी होगी तो होगी। अतः चिंता न करके पुरुषार्थ सभी को अपने अपने स्तर पर करना है जिससे कम से कम क्षति हो और पुनः भारत के जनता के जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए आर्थिक प्रयास करें। प्रत्येक जीवन को बचाने का प्रयास व पुरुषार्थ करे। बस फ़ल की चिंता न करें, जो करें साक्षी भाव से फल की चिंता किये बगैर करें।
जब तक परमात्मा की इच्छा न होगी या उस व्यक्ति की स्वयं की इच्छा न होगी, किसी भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हो सकती। मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है उसके फल के चुनाव में नहीं।
भगवान उसी की मदद करता है, जो अपनी मदद स्वयं करता है। भगवान को ढूढ़ना नहीं होता है, भगवान को पहचानना होता है। जिस प्रकार मछली जल में है और जल मछली के भीतर भी है, वैसे ही हम सब परमात्मा के भीतर हैं और परमात्मा हमारे भीतर हैं। मछली ही जल नहीं है, वैसे ही हम सब परमात्मा नहीं है। मछली के भीतर जल है, हमारे भीतर भी परमात्मा है। अतः सुख दुःख से परे स्थितप्रज्ञ बनो, हे अर्जुनों मोह त्यागो, सांख्य योग समझो औऱ शुद्ध चित्त व शांत मन से अपने अपने कर्म करो और ईश्वरीय निमित्त बनकर निष्काम कर्म करो।
हम सब अजर अमर अविनाशी आत्मा हैं, जब हम जन्में ही नहीं तो मृत्यु कैसे हो सकती है। हमने तो मात्र शरीर रूपी वस्त्र धारण किया है, यदि यह जब भी जिस उम्र में भी फटा, देहत्याग किया तो दूसरा पहन लेंगें, पुनर्जन्म ले लेंगे। चिंता की क्या बात है। आनन्दित जियो, परमानन्द में झूमों।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, मोहग्रस्त अर्जुन को मोह से उबारने के लिए और उसके विषाद को दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अध्याय 2 में सांख्यिकीय विश्लेषण (spiritual and psychology statistics) से समझाया है। उसे ही वर्तमान कोरोना संक्रमण के समय फैले मोह, विषाद व दुःख के शमन के लिए सुनो:-
1- वस्त्र का निर्माण व उसका नष्ट होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। अब वह वस्त्र जलकर नष्ट हुआ या कीड़े-मकोड़ो ने उसे नष्ट किया या चूहे ने कुतर कर नष्ट किया। माध्यम कोई भी हो वस्त्र तो नष्ट होना ही था। वस्त्र के नष्ट होने से उसे जिसने कुछ दिन पहना था वह नष्ट नहीं होता।
2- इसी तरह शरीर रूपी वस्त्र का निर्माण व उसका नष्ट होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। अब यह शरीर रूपी वस्त्र जलकर नष्ट हुआ या जहरीले कीड़े-मकोड़ो के काटने से नष्ट हुआ या विषाणु जनित रोग कोरोना के संक्रमण ने इसे नष्ट किया। माध्यम कोई भी हो शरीर रूपी वस्त्र को तो नष्ट होना ही था। वस्त्र के नष्ट होने से उसे जिस आत्मा ने कुछ दिन इसे पहना था वह नष्ट नहीं होता।
3- आत्मा अजर अमर अविनाशी है, इसका जन्म लेना(वस्त्र धारण करना), मृत्यु होना (वस्त्र त्यागना) और पुनः नया वस्त्र पहनना (पुनर्जन्म) यह स्वभाविक प्रक्रिया है जो अनवरत चल रही है।
4- अतः इसके सामूहिकता से नष्ट होने के दृश्य व खबरों से स्वयं के मन को विचलित मत होने दो। इस समय दुःख, शोक, विषाद जैसी कोई भावना मन मे उतपन्न करने की जरूरत नहीं है। जिसका जब समय आएगा वह निश्चयत: शरीर का त्याग करेगा अब वह त्यागने का बहाना कोई भी हो सकता है।
5- भारत सरकार के अनुशासन और लाकडाउन को पालन करते हुए व साफ-सफ़ाई से स्वयं व परिवार जन के जीवन रक्षण का कर्म योग आसक्ति रहित होकर करो। जीवन बचना या जीवन न बचना यह कर्मफ़ल भगवान के हाथ मे छोड़ दो। तुम सिर्फ कर्म करो एवं फल की चिंता मत करो।
6- यदि तुम चिकित्सा जगत से जुड़े हो तो उत्तम सेवा करो और प्रत्येक जीवन को बचाने का कर्मयोग करो।लेकिन रोगी के जीवन से आशक्त मत हो, उसका जीवन बचेगा या नहीं इस कर्मफ़ल में मत उलझो।
7- यदि चिकित्सा जगत के अन्वेषक हो तो जुट जाओ वैक्सीन व दवा ढूंढने में, कर्मयोग करो, पुरुषार्थ करो। बिना इस बात की परवाह किये कि सफल होंगे या नहीं।
8- यदि पुलिस व सेना में हो, ड्यूटी पर हो अपना अपना पुरुषार्थ निर्देशित नियम पालन करते हुए करो, बिना इस बात की चिंता किये कि कहीं हम स्वयं न संक्रमित हो जाएं। जीवन-मरण कर्मफ़ल है वह ईश्वर के आधीन है, हमें कर्म करना है।
9- यदि किसान हो या भोजन सम्बन्धी व्यवस्था में जुटे हो तो भोज्य आपूर्ति में जुट जाओ, पुरुषार्थ करो कर्मफ़ल की परवाह मत करो।
10- यदि साधारणजन हो तो भूखे ग़रीब एक या दो या जितनी सामर्थ्य हो उनकी क्षुधा निवारण में जुट जाओ। पूरे विश्व के भूखों की चिंता मत करो। जो कर सकते हो वो कर डालो। पी एम केयर या जिस भी संस्था से जुड़े हो जो भी सेवा कार्य कर रहा है उसमें सामर्थ्य अनुसार दान दे दो। दान का उपयोग कहाँ व कैसे होगा इसकी चिंता मत करो।
11- यह जीवन ईश्वरीय निमित्त बनकर जियो। न सुख के क्षणों में भगवान को भूलो और न ही दुःख के क्षणों में भगवान को भूलो। प्रत्येक जीवन की घटना को साक्षी भाव से देखो और सुनो, मग़र उन घटनाओं से व्यथित मत हो। क्योंकि जो तुम्हारे हाथ में नहीं उसका शोक करके कोई लाभ नहीं है।
12- महाकाल का सामूहिक संघार का उदघोष उसी वक्त हो गया था जब चतुर्ग्रही योग नबम्बर 2019 में बना था, 21 नवंबर को चार ग्रहों की युति बनी थी जिसमें शनि,केतु, शुक्र और बृहस्पति थे। शनि और केतु के धनु राशि में होने से अशुभ परिणाम मिलता है जबकि शुक्र और बृहस्पति के धनु राशि में आने पर शुभ फल की प्राप्ति होती है। भारत के कई ज्योतिष पंचाग में विषाणु महामारी की ग्रह गणना अनुसार भविष्यवाणी कर दी गयी थी। अतः जो नियति है जिसमें पूरे विश्व की आबादी का 20% नष्ट होगा तो होगा। अब यह इस वर्ष नबम्बर 2020 तक ही ठीक होगा तो होगा। अर्थ व्यवस्था में मंदी होगी तो होगी। अतः चिंता न करके पुरुषार्थ सभी को अपने अपने स्तर पर करना है जिससे कम से कम क्षति हो और पुनः भारत के जनता के जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए आर्थिक प्रयास करें। प्रत्येक जीवन को बचाने का प्रयास व पुरुषार्थ करे। बस फ़ल की चिंता न करें, जो करें साक्षी भाव से फल की चिंता किये बगैर करें।
जब तक परमात्मा की इच्छा न होगी या उस व्यक्ति की स्वयं की इच्छा न होगी, किसी भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हो सकती। मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है उसके फल के चुनाव में नहीं।
भगवान उसी की मदद करता है, जो अपनी मदद स्वयं करता है। भगवान को ढूढ़ना नहीं होता है, भगवान को पहचानना होता है। जिस प्रकार मछली जल में है और जल मछली के भीतर भी है, वैसे ही हम सब परमात्मा के भीतर हैं और परमात्मा हमारे भीतर हैं। मछली ही जल नहीं है, वैसे ही हम सब परमात्मा नहीं है। मछली के भीतर जल है, हमारे भीतर भी परमात्मा है। अतः सुख दुःख से परे स्थितप्रज्ञ बनो, हे अर्जुनों मोह त्यागो, सांख्य योग समझो औऱ शुद्ध चित्त व शांत मन से अपने अपने कर्म करो और ईश्वरीय निमित्त बनकर निष्काम कर्म करो।
हम सब अजर अमर अविनाशी आत्मा हैं, जब हम जन्में ही नहीं तो मृत्यु कैसे हो सकती है। हमने तो मात्र शरीर रूपी वस्त्र धारण किया है, यदि यह जब भी जिस उम्र में भी फटा, देहत्याग किया तो दूसरा पहन लेंगें, पुनर्जन्म ले लेंगे। चिंता की क्या बात है। आनन्दित जियो, परमानन्द में झूमों।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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