Friday, 17 April 2020

सांख्ययोग व सांख्यदर्शन

प्रश्न - *श्वेता दीदी प्लीज मुझे बताइए सांख्य योग क्या है सांख्य योग का सरल भाषा में इस तरीके से बताइए कि मुझे समझ में आ जाए यानी आम आदमी को समझ में आ जाए सांख्य योग क्या है प्लीज दीदी 4:00 बजे तक आंसर लिख दे तो आपकी मेहरबानी होगी*

उत्तर- आत्मीय बहन, लाकडाउन में ऑफिस का वर्कफ़्रॉम होम और मेड के बिना गृहकार्य हो रहा है। अतः प्रश्न का उत्तर जल्दी व तय टाइम में मत मांगिये। थोड़ा वक़्त दीजिये।

अध्यात्म में 6 प्रकार के दर्शन है, उनमें से एक दर्शन - सांख्य दर्शन है। इसी सांख्य में जो योग वर्णित है उसे सांख्य योग कहते हैं।

सांख्य शब्द संख्या से बना है जिसका अर्थ होता है गणना युक्त विश्लेषण करना।

*विज्ञान हो या मनोविज्ञान या गृहविज्ञान या अध्यात्म विज्ञान  सब में सांख्यिकी आँकड़े महत्वपूर्ण हैं?* सबसे पहले, आइए सामान्य रूप से आंकड़ों के महत्व के बारे में सोचें। सांख्यिकी हमें जानकारी का एक बड़ा हिस्सा बनाने और व्याख्या करने की अनुमति देती है। एक निश्चित दिन में आपके द्वारा सामना किए जाने वाले डेटा की सरासर मात्रा पर विचार करें। आप कितने घंटे सोए थे? आज सुबह आपके कक्षा के कितने छात्रों ने नाश्ता खाया? आपके घर के एक मील के दायरे में कितने लोग रहते हैं? आंकड़ों का उपयोग करके, हम इस जानकारी को सार्थक तरीके से व्यवस्थित और व्याख्या कर सकते हैं।

यदि सांख्यकी गणना व अनुपात की समझ रखकर, कौन कौन से तत्व को किस मात्रा में मिलाकर क्या पकवान बनाना है, सांख्यकीय विश्लेषण के साथ भोजन बनाया जाय तो भूल की कम सम्भावना रहती है। निश्चित परिणाम मिलने की अधिकतम सम्भावना रहती है।

इसी तरह दिन के प्रत्येक समय को सांख्यकीय आधार पर कैलकुलेट करके टाइम टेबल बनाकर कार्य किया जाय तो अपेक्षित व्यवस्थित दिन व कार्य परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

इसी तरह अध्यात्म को परिभाषित करने के लिए 25 तत्वों को आंकड़ा परक सांख्यकीय विश्लेषण किया गया है। यह तत्व इस प्रकार हैं:-

सांख्य दर्शन के २५ तत्व

*आत्मा*
*अंतःकरण (3)* : मन, बुद्धि, अहंकार
*ज्ञानेन्द्रियाँ (5)* : नासिका, जिह्वा, नेत्र, त्वचा, कर्ण
*कर्मेन्द्रियाँ (5)* : पाद, हस्त, उपस्थ, पायु, वाक्
*तन्मात्रायें (5)* : गन्ध, रस, रूप, स्पर्श, शब्द
*महाभूत (5)* : पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश

*सत्कार्यवाद सिद्धांत सांख्य योग का मुख्य अंग है।*

सांख्य-दर्शन का मुख्य आधार सत्कार्यवाद है। इस सिद्धान्त के अनुसार, बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती।

कपिल मुनि के अनुसार - "कार्य" अपनी उत्पत्ति के पूर्व "कारण" में विद्यमान रहता है(Every action must have intention either known or unknown)। कार्य अपने कारण का सार है। कार्य तथा कारण वस्तुतः समान प्रक्रिया के व्यक्त-अव्यक्त रूप हैं।

*सत्कार्यवाद के दो भेद हैं- परिणामवाद तथा विवर्तवाद*।
👉🏻परिणामवाद से तात्पर्य है कि कारण वास्तविक( Real) रूप में कार्य में परिवर्तित हो जाता है। जैसे तिल तेल में, दूध दही में रूपांतरित होता है।

👉🏻विवर्तवाद के अनुसार परिवर्तन वास्तविक न होकर आभास( illusion) मात्र होता है। जैसे-रस्सी में सर्प का आभास होना।


भारतीय संस्कृति में किसी समय सांख्य दर्शन का अत्यंत ऊँचा स्थान था। देश के उदात्त मस्तिष्क सांख्य की विचार पद्धति से सोचते थे। महाभारतकार ने यहाँ तक कहा है कि ज्ञानं च लोके यदिहास्ति किंचित् सांख्यागतं तच्च महन्महात्मन् ( *शांति पर्व 301.109*)। वस्तुत: महाभारत में दार्शनिक विचारों की जो पृष्ठभूमि है, उसमें सांख्यशास्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है।

श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म योग, भक्ति योग के साथ ही सांख्य योग को भी परिभाषित किया है। जब जब अध्यात्म व योग को तत्वतः परिभाषित किया जाता है वह सांख्ययोग के अन्तर्गत आता है। आत्मतत्व, जीवात्मा, शरीर, त्रिगुणात्मक प्रकृति (सत, रज, तम) इत्यादि की विवेचना सबकुछ सांख्य दर्शन व योग का ही अंग है। ज्ञानी भक्त जो तत्वतः परमात्मा, जीवात्मा और संसार को जानता है, वह स्थितप्रज्ञ होता है। वह सुख में न सुखी होता है, और न ही दुःख में दुःखी होता है। दुनियाँ को साक्षी भाव से देखते हुए, कर्म के पीछे उसे करने का जो कारण है उस पर ही परिणाम पुण्य या पाप होगा वह जानता है। अतः वह निर्विकार रहता है, उसमें विकार नहीं जन्मता है, आसक्ति में सांख्य योग समझने वाला नहीं बंधता है। प्रत्येक घटना के पीछे के कारण व परिणाम की तत्वतः विवेचना करता है, व तद्नुसार कार्य करता है।

इसे विस्तार से निम्नलिखित पुस्तक - "सांख्य एवं योग दर्शन" पुस्तक पढ़ें, जिसे युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है।
http://literature.awgp.org/book/sankhyaaevamyogdarshan/v1


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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