प्रश्न - *आज़कल नींद नहीं आती व सरदर्द होता है?*
उत्तर- आत्मीय बहन, सर पर विचारों का कबाड़ रखोगी तो नींद कैसे आएगी? आजकल ज़्यादा पढ़े लिखे लोग ज़्यादा विचारों के कबाड़ के भार से ग्रसित हैं।
कबाड़ी भी जानता है कि सोने से पहले कबाड़ नीचे साइड में रख दो और सुबह पुनः उठा लेना काम कर लेना।
अफ़सोस यह है कि यह साधारण सी बात हम जैसे पढ़े लिखे कबाड़ी नहीं समझते। विचारों का कबाड़ सर पर रखकर सोने की व्यर्थ चेष्टा करते हैं।
विचारों का कबाड़ तो सम्हालना हमारा उत्तरदायित्व ही है, लेकिन कितने घण्टे यह हमें तय करना आना चाहिए। क्या कब सोचना है और क्या कब नहीं सोचना इतना नियंत्रण तो स्वयं पर होना ही चाहिए डियर।
तनाव का अर्थ है मन के घोड़े का बेलगाम होना।
साधारण ग्लास भी यदि पीने के वक्त उठाओ और फिर रख दो तो कोई समस्या नहीं। मग़र वही ग्लास कई घण्टे तक उठाकर रखो तो स्ट्रेश होगा ही। ग्लास को उठाना व ग्लास को रखना आना चाहिए तभी हाथ मे स्ट्रेश नहीं होगा।
इसी तरह विचार को चिंतन में लाना और चिंतन के प्लेटफार्म से हटाना सीखना पड़ेगा।
गीता में भगवान ने इसीलिए सतत अभ्यास और वैराग्य अपनाने के लिए कहा है। मन की घुड़सवारी करना जो सीख जाए वो घोड़े से भयभीत नहीं होता। उसे स्ट्रेश नहीं होता।
शाम को सोने से पूर्व गायत्री मंत्र लेखन व जप करके, किसी अच्छी पुस्तक व गीता का स्वाध्याय करके मन का कचरा साफ करके सोने की आदत डालो बड़ी मीठी नींद आएगी। भगवान से बोलो हे भगवान मुझे मेरे विचारों को सम्हालने की शक्ति दीजिये। मैं रात्रि को आपकी गोद मे विश्राम करने आ रही हूँ, तब तक इन विचारों को अपने चरणों मे स्थान दीजिये और मुझे विचार मुक्त करके गहन निंद्रा में शांति दीजिये।
या देवी सर्वभूतेषु *मातृ- रूपेण* संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
या देवी सर्वभूतेषु *निद्रा- रूपेण* संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
या देवी सर्वभूतेषु *मानसिक शांति- रूपेण* संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
नेत्र बन्द कर माता के चरणों का ध्यान करते हुए सो जाइये। माता के स्वरूप को मन ही मन निहारिये स्मरण करते हुए सो जाइये।
विचारों पर नियंत्रण आसान है कोशिश करने वालो के लिए, क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- आत्मीय बहन, सर पर विचारों का कबाड़ रखोगी तो नींद कैसे आएगी? आजकल ज़्यादा पढ़े लिखे लोग ज़्यादा विचारों के कबाड़ के भार से ग्रसित हैं।
कबाड़ी भी जानता है कि सोने से पहले कबाड़ नीचे साइड में रख दो और सुबह पुनः उठा लेना काम कर लेना।
अफ़सोस यह है कि यह साधारण सी बात हम जैसे पढ़े लिखे कबाड़ी नहीं समझते। विचारों का कबाड़ सर पर रखकर सोने की व्यर्थ चेष्टा करते हैं।
विचारों का कबाड़ तो सम्हालना हमारा उत्तरदायित्व ही है, लेकिन कितने घण्टे यह हमें तय करना आना चाहिए। क्या कब सोचना है और क्या कब नहीं सोचना इतना नियंत्रण तो स्वयं पर होना ही चाहिए डियर।
तनाव का अर्थ है मन के घोड़े का बेलगाम होना।
साधारण ग्लास भी यदि पीने के वक्त उठाओ और फिर रख दो तो कोई समस्या नहीं। मग़र वही ग्लास कई घण्टे तक उठाकर रखो तो स्ट्रेश होगा ही। ग्लास को उठाना व ग्लास को रखना आना चाहिए तभी हाथ मे स्ट्रेश नहीं होगा।
इसी तरह विचार को चिंतन में लाना और चिंतन के प्लेटफार्म से हटाना सीखना पड़ेगा।
गीता में भगवान ने इसीलिए सतत अभ्यास और वैराग्य अपनाने के लिए कहा है। मन की घुड़सवारी करना जो सीख जाए वो घोड़े से भयभीत नहीं होता। उसे स्ट्रेश नहीं होता।
शाम को सोने से पूर्व गायत्री मंत्र लेखन व जप करके, किसी अच्छी पुस्तक व गीता का स्वाध्याय करके मन का कचरा साफ करके सोने की आदत डालो बड़ी मीठी नींद आएगी। भगवान से बोलो हे भगवान मुझे मेरे विचारों को सम्हालने की शक्ति दीजिये। मैं रात्रि को आपकी गोद मे विश्राम करने आ रही हूँ, तब तक इन विचारों को अपने चरणों मे स्थान दीजिये और मुझे विचार मुक्त करके गहन निंद्रा में शांति दीजिये।
या देवी सर्वभूतेषु *मातृ- रूपेण* संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
या देवी सर्वभूतेषु *निद्रा- रूपेण* संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
या देवी सर्वभूतेषु *मानसिक शांति- रूपेण* संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
नेत्र बन्द कर माता के चरणों का ध्यान करते हुए सो जाइये। माता के स्वरूप को मन ही मन निहारिये स्मरण करते हुए सो जाइये।
विचारों पर नियंत्रण आसान है कोशिश करने वालो के लिए, क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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