Thursday, 30 April 2020

प्रश्न - *मैं जब जब साधना करता हूँ, मेरा स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है, कृपया उपाय बताइये।*

प्रश्न - *मैं जब जब साधना करता हूँ, मेरा स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है, कृपया उपाय बताइये।*

उत्तर- आत्मीय भाई, मनुष्य अचेतन जगत में बहुत से उन घावों, कड़वी बातों, झल्लाहट और बुरे अनुभवों को स्टोर किये रहता है, जिन्हें वह समय काल मे भूल चुका है। जिनके सँस्कार बीज रूप में चित्त में जमे हुए हैं।

जब जब साधना करते हो तो चेतना अंतर्जगत में प्रवेश करती है, और उसके प्रवेश करने के कारण भीतर भरे हुए अवांछनीय विचार बाहर आते हैं जिनसे हम वस्तुतः पीछा छुड़ाना चाहते हैं। जो हम बोलना व सोचना नहीं चाहते वह पुनः स्मृतिपटल में आने के चिड़चिड़ापन  उतपन्न करते हैं।

तुम साधना से पूर्व गुरुगीता में वर्णित विनियोग, कर न्यास व हृदय न्यास करो। एवं जल हाथ मे लेकर सङ्कल्प लो कि हे परमात्मा पिछले से अभी तक के जन्म में जिन जिन आत्माओं ने मुझे जाने व अनजाने में कष्ट दिया है, मैं उन्हें क्षमा करता हूँ। जिनको मैंने जाने व अनजाने में कष्ट दिया है, वह मुझे क्षमा कर दें।

हे परमात्मा कण कण में जन जन में मुझे सिर्फ़ आप ही महसूस हों, मुझमें आपके प्रेम व आत्मियता के गुण उभरे। मेरे व्यक्तित्व में देवत्व उभारने के लिए मैं यह साधना कर रहा हूँ, मुझे शक्ति व सामर्थ्य दीजिये। सफल बनाइये।

इस तरह साधना कीजिये, स्वभाव का चिड़चिड़ा पन तिरोहित हो जाएगा और प्रेम व सुंदर भावों से हृदय भर उठेगा।

अंधेरे से लड़कर उसे दूर नहीं किया जा सकता, मात्र प्रकाश की व्यवस्था करके उसे दूर भगाया जा सकता है।

चिड़चिड़ापन से लड़ा नहीं जा सकता, मात्र प्रेम व भाव संवेदना के विचारों को अंतर्जगत में उतपन्न कर इससे मुक्ति पाई जा सकती है।

पुस्तक- *भावसम्वेदना की गंगोत्री* जरूर पढ़ो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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