Friday, 1 May 2020

प्रश्न - *माला से जप करना और बिना माला समय से मानसिक जप करने में क्या अंतर है अगर दोनों में ही एकाग्रता आती हो तो कौन सा जप श्रेष्ठ है?*

प्रश्न -  *माला से जप करना और बिना माला समय से मानसिक जप करने में क्या अंतर है अगर दोनों में ही एकाग्रता  आती हो तो कौन सा जप श्रेष्ठ है?*

उत्तर- आत्मीय बहन,

मनुष्य की चेतना स्वभावतः जल की तरह निम्नगामी है, जिस प्रकार जल को ऊंचे भवनों की छत पर पहुंचाने के  लिए बिजली के मोटर को चलाने के लिए विद्युत ऊर्जा चाहिए, वैसे ही मनुष्य की चेतना को निम्न केंद्रों से उर्ध्वगामी बनाने के लिए प्राण ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है।

यह प्राण ऊर्जा का उत्पादन मन्त्र जप के लगातार अंतर्जगत के घर्षण से उतपन्न होता है।

जप तीन प्रकार के होते हैं - मानसिक, वाचिक एवं उपांशु जप

इनमें ध्वनियों के हलके भारी किये जाने की प्रक्रिया काम में लाई जाती है। वेद मन्त्रों के अक्षरों के साथ-साथ उदात्त-अनुदात्त और त्वरित क्रम से उनका उच्चारण नीचे ऊंचे तथा मध्यवर्ती उतार-चढ़ाव के साथ किया जाता है। उनके सस्वर उच्चारण की परम्परा है।

*वाचिक जप* - यज्ञ के वक़्त आहुति क्रम में वाचिक उच्च स्वर में उच्चारण होता है।

*मानसिक जप* - मौन मानसिक जप में होठ बन्द होते है, ध्वनि बाहर नहीं निकलती। इस तरह के जप कभी भी कहीं भी किये जा सकते हैं। कोई नियम पालन की आवश्यकता नहीं होती।।अशौच और सूतक के वक्त भी मौन मानसिक जप कर सकते हैं।

*उपांशु जप* - गायत्री जप दैनिक उपासना के वक्त या अनुष्ठान के वक्त जब भी माला लेकर किया जाता है तब केवल उपांशु जप किया जाता है, जिसमें होंठ, कण्ठ मुख हिलते रहें या आवाज इतनी मंद हो कि दूसरे पास में बैठा व्यक्ति भी उच्चारण को सुन न सकें। नियम पालन करने पड़ते है। आसन जिस पर बैठकर जप किया जाएगा वो ऊनी या कुश का होना चाहिए।

मुख में स्थित अग्निचक्र से जब उपांशु जप होता है तो इससे उत्पन्न शक्ति प्रवाह नाड़ी तन्तुओं की तीलियों के सहारे सूक्ष्म चक्रों और दिव्य ग्रन्थियों तक पहुंचता है और उन्हें झकझोर कर जगाने, खड़ा करने में संलग्न होता है।  जो इन जागृत चक्रों द्वारा रहस्यमयी सिद्धियों के रूप में साधक को मिलती है। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि यदि जपयोग को विधिवत् साधा गया होगा तो उसका सत्परिणाम उत्पन्न होगा ही। जप में शब्दों की पुनरावृत्ति होते रहने से उच्चारण का एक चक्र-व्यूह—सर्किल बनता है। जो दिव्य उर्जा उतपन्न करता है।

गायत्री जप के साथ ध्यान अनिवार्य है, ध्यान में जप के वक्त या तो मंन्त्र का अर्थ चिंतन करें या उगते हुए सूर्य का ध्यान करें या अपने इष्ट आराध्य का उगते हुए सूर्य में ध्यान करें।

तुलसी की माला दाहिने हाथ में लेकर जप आरम्भ करना चाहिए। तर्जनी उँगली को अलग रखना चाहिए। अनामिका, मध्यमा और अंगूठे की सहायता से जप किया जाता है। एक माला पूरी हो जाने पर मालाको मस्तक से लगाकर प्रणाम करना चाहिए और बीच की केन्द्र मणी सुमेरू को छोड़कर दूसरा क्रम आरंभ करना चाहिए।लगातार केन्द्रमणि को भी जपते हुए सुमेरू का उल्लंघन करते हुए जप करना ठीक नहीं सुमेरू को मस्तक पर लगाने के उपरान्त प्रारम्भ वाला दाना फेरना आरम्भ कर देना चाहिए। कई जप करने वाले सुमेरू पर से माला को वापिस लौटा देते हैं और एक बार सीधी दूसरी बार उलटी इस क्रम से जपते रहते हैं पर वह क्रम ठीक नहीं।

गायत्री जप प्रक्रिया कषाय- कल्मषों, कुसंस्कारों को धोने के लिए पूरी की जाती है। साथ ही स्वास्थ्य वर्धक और बौद्धिक कौशल बढ़ाता है। सर्व संकट का नाश कर के सुख समृद्धि की वृद्धि करता है। गायत्री कलियुग की कामधेनु है, इसके जप से लाभ ही लाभ है।

आल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के डॉक्टर और आई आई टी के सदस्य ने रिसर्च करके यह साबित किया है कि गायत्री जप से बौद्धिक कुशलता बढ़ती है, दिमाग़ सन्तुलित रहता है, मन को सुकून देने वाला गाबा केमिकल रिलीज़ होता है। तनाव दूर करता है।

अनुष्ठान में उपांशु जप ही मान्य है, क्योंकि अपेक्षित ऊर्जा निश्चित समय मे उतपन्न होकर अपेक्षित परिणाम दे सके। इसमें संख्या की गिनती हेतु माला से जप अनिवार्य है। यदि माला से न जपना चाहें तो घड़ी में समय निश्चित करके जप लें। एक घण्टे में दस माला जप होता है।

मौनमानसिक जब तब सर्वश्रेष्ठ होता है जब जप तन्मय तल्लीन होकर किया जाय। स्वयं को खोकर भगवान को पाने केलिए किया जाय तो सर्वश्रेष्ठ है। इसमें भी प्राण ऊर्जा का सृजन होता है और पूर्ण लाभ मिलता है।

भक्त भगवान एक हो और मन में कोई चाह न हो तो मौन मानसिक जप बिना गिनती के सर्वश्रेष्ठ है, मन्त्र सुनते हुए ध्यानस्थ होना भी श्रेष्ठ है। स्वयं को खोकर उस परमात्मा को पाने के लिए भक्ति मार्ग में यह सर्वश्रेष्ठ है। परंतु यह ध्यान रखिये मन बड़ा छलिया है, यदि यह भटका रहा हो तो माला जप का सङ्कल्प का खूंटा बांधना उचित होता है।लेकिन यदि मन सधा हुआ है और इसके जप के दौरान भटकने का भय नहीं तो मौन मानसिक जप या मन्त्र सुनते हुए ध्यान दोनो उत्तम है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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