Monday 27 April 2020

प्रश्न - *समर्पित कार्यकर्ता को लोग दूध में से मक्खी की तरह निकाल देते हैं, उनके कार्य का यश स्वयं ले लेते हैं।*

प्रश्न - *समर्पित कार्यकर्ता को लोग दूध में से मक्खी की तरह निकाल देते हैं, उनके कार्य का यश स्वयं ले लेते हैं।*

उत्तर - आत्मीय भाई, समर्पित कार्यकर्ता पहली बात लालची मक्खी हो ही नहीं सकता। अपितु वह तो परोपकारी मधुमक्खी होता है, वह दूध व मलाई के लिए गुरु सेवा या समाजसेवा में नहीं जाता, वह स्वयं को खोकर गुरु को, ईश्वर को पाने जाता है। वह मान अपमान से परे है। वह तो मधुमक्खी होता है, जनकल्याण के लिए शहद इकठ्ठा करता है, किसी के उड़ा देने व उसके शहद लेने पर वो पुनः नए छत्ते के निर्माण में जुट जाता है। आप मधुमक्खी से शहद छीन सकते हो, उसका शहद बनाने का हुनर नहीं।

शहद छीनकर कम्पनी का लेवल लगा लेने से लोग मूर्ख नहीं बनते, सब जानते हैं कि मधुमक्खी ने मेहनत से इसे बनाया है, कम्पनी वाला तो उसका श्रेय खा रहा है। तो क्या अंतर्यामी गुरु व भगवान आपके कार्य को नहीं जानेंगे।

जो गुरु पर समर्पित होता है, उसे श्रेय, माइक, मान चाहिए ही नहीं तो वो दुःखी हो ही नहीं सकता। वह तो गुरु चरणों मे रमा जोगी होता है। जब दूध चाहिए ही नहीं तो दूध मलाई के छूटने का गम भी नहीं हो सकता।

दुःखी वह होता है जो स्वयं को कर्ता व अपने कार्य का अहंकार करता है। अहंकार पर चोट पड़ना तो तय होता है।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देशहित गोली खा सकते हैं, और हम और आपको तो मात्र गालियाँ ही गुरु के लिए खानी है तो खाने में मुझे कोई दिक्कत नहीं लगती। लोग आपके या हमारे कार्य का श्रेय खा सकते हैं, लेकिन हमारे या आपके हुनर, व्यक्तित्व व कृतित्व को तो नहीं खा सकते।

अतः मन्दिर हो या गुरुधाम चप्पल और अहंकार को त्याग के ही प्रवेश करना उचित है। संसार के जॉब में पद प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष सर्वथा उचित है, अध्यात्म में तो इन दास भाव, समर्पण और स्वयं को खोकर उसे पाने के लिए आये हो। तो जब स्वयं को खोना है, *मैं* - *अहंकार*  खोना है, फ़िर कुछ सम्मान व श्रेय पाने का मोह क्यों? भामाशाह बनो, श्रेय व सम्मान दान कर दो। मान-अपमान से परे हाथी की तरह हो जाओ, कोई गणेश समझ के प्रणाम करे या कोई कुत्ते की तरह पीछे से गाली देकर भौंके तुम्हें फर्क नहीं पड़ना चाहिए। तुमने तो स्वयं के ऊपर जिस महावत गुरु को स्वीकार किया है, उसके अंकुश व अनुशासन में कार्य करो। आनन्दित मस्ती में रहो।

विवेकानंद जी कहते हैं, गुरु के पास कुछ पाने नहीं अपितु स्वयं को विलीन करने जाओ। जब मैं विलीन होगा तो भीतर गुरु ही शेष बचेगा। अब गुरु को तुम्हारे भीतर से और तुम्हे गुरु के हृदय से कोई नहीं निकाल सकता😇😇😇😇😇 स्मरण रखो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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