प्रश्न - समर्पित कार्यकर्ता को लोग दूध में से मक्खी की तरह निकाल देते हैं, उनके कार्य का यश स्वयं ले लेते हैं।
उत्तर - समर्पित कार्यकर्ता पहली बात मक्खी नहीं अपितु मधुमक्खी होता है, वह दूध व मलाई के लिए गुरु सेवा में नहीं जाता, वह स्वयं को खोकर गुरु को पाने जाता है। वह मान अपमान से परे है। वह तो मधुमक्खी होता है, जनकल्याण के लिए शहद इकठ्ठा करता है, किसी के उड़ा देने व उसके शहद लेने पर वो पुनः नए छत्ते के निर्माण में जुट जाता है। वह गुरु पर समर्पित होता है। जब उसे श्रेय, माइक, मान चाहिए ही नहीं तो वो दुःखी हो ही नहीं सकता। वह तो गुरु चरणों मे रमा जोगी होता है।
दुःखी वह होता है जो स्वयं को कर्ता व अपने कार्य का अहंकार करता है। अहंकार पर चोट पड़ना तो तय होता है।
~श्वेता, DIYA
उत्तर - समर्पित कार्यकर्ता पहली बात मक्खी नहीं अपितु मधुमक्खी होता है, वह दूध व मलाई के लिए गुरु सेवा में नहीं जाता, वह स्वयं को खोकर गुरु को पाने जाता है। वह मान अपमान से परे है। वह तो मधुमक्खी होता है, जनकल्याण के लिए शहद इकठ्ठा करता है, किसी के उड़ा देने व उसके शहद लेने पर वो पुनः नए छत्ते के निर्माण में जुट जाता है। वह गुरु पर समर्पित होता है। जब उसे श्रेय, माइक, मान चाहिए ही नहीं तो वो दुःखी हो ही नहीं सकता। वह तो गुरु चरणों मे रमा जोगी होता है।
दुःखी वह होता है जो स्वयं को कर्ता व अपने कार्य का अहंकार करता है। अहंकार पर चोट पड़ना तो तय होता है।
~श्वेता, DIYA
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