*गुरुगीता प्रश्नोत्तरी - स्कन्दपुराण - उत्तराखंड - शिवपार्वती सम्वाद*
प्रश्न- *श्लोक 102- मुक्त होने का अर्थ क्या है... 'विलय' या अन्य कुछ.. यदि विलय हो जाए स्मरण कैसे हो?*
उत्तर - आत्मीय भाई, श्लोक व उसका भावार्थ स्पष्ट कर रही हूँ।
श्लोक - 102
यावलकल्पताको देहस्तावदेव गुरुं स्मरेत।
गुरुलोपो न कर्तव्य: स्वछन्दों यदि वा भवेत।।
जब तक देह है, तब तक अंतिम श्वांस तक गुरुदेव का स्मरण करते रहना चाहिए। जब देह से मुक्त हो या पंच तत्वों में यह शरीर विलीन हो जाये, तब भी सूक्ष्म शरीर मे भी गुरु का स्मरण करते रहना चाहिए।
अब प्रश्न यह उठता है कि देहत्याग( देहमुक्त या पंचतत्वों में शरीर के विलय) के बाद क्या गुरुदेव का स्मरण सम्भव है?
तो उत्तर है, हाँजी। प्रेत शरीर - सूक्ष्म शरीर बिल्कुल वैसे ही जप-तप व स्मरण कर सकता है, जैसे स्थूल शरीर मे जप-तप व स्मरण सम्भव है।
हिमालयीन ऋषि सत्ताएं सूक्ष्म शरीर मे तप कर रही हैं। जब देह रहते निरन्तर गुरुदेव का स्मरण करते रहोगे तो वह स्मरण अवचेतन मन में प्रवेश कर जाएगा। सूक्ष्म शरीर को व चित्त के संस्कारो में वह स्मरण प्रगाढ़ता के साथ संयुक्त हो जाएगा। तब देह छूटने के बाद गुरुलोक में गमन होगा व सूक्ष्म शरीर रूपी शिष्य को सूक्ष्म शरीर में सूक्ष्म लोकों में गुरु सान्निध्य का लाभ मिलेगा।
आत्मा की शिखर यात्रा निर्बाध रूप से अनवरत होती रहेगी, भले शरीर रहे या छूट जाए।
🙏🏻श्वेता, DIYA
प्रश्न- *श्लोक 102- मुक्त होने का अर्थ क्या है... 'विलय' या अन्य कुछ.. यदि विलय हो जाए स्मरण कैसे हो?*
उत्तर - आत्मीय भाई, श्लोक व उसका भावार्थ स्पष्ट कर रही हूँ।
श्लोक - 102
यावलकल्पताको देहस्तावदेव गुरुं स्मरेत।
गुरुलोपो न कर्तव्य: स्वछन्दों यदि वा भवेत।।
जब तक देह है, तब तक अंतिम श्वांस तक गुरुदेव का स्मरण करते रहना चाहिए। जब देह से मुक्त हो या पंच तत्वों में यह शरीर विलीन हो जाये, तब भी सूक्ष्म शरीर मे भी गुरु का स्मरण करते रहना चाहिए।
अब प्रश्न यह उठता है कि देहत्याग( देहमुक्त या पंचतत्वों में शरीर के विलय) के बाद क्या गुरुदेव का स्मरण सम्भव है?
तो उत्तर है, हाँजी। प्रेत शरीर - सूक्ष्म शरीर बिल्कुल वैसे ही जप-तप व स्मरण कर सकता है, जैसे स्थूल शरीर मे जप-तप व स्मरण सम्भव है।
हिमालयीन ऋषि सत्ताएं सूक्ष्म शरीर मे तप कर रही हैं। जब देह रहते निरन्तर गुरुदेव का स्मरण करते रहोगे तो वह स्मरण अवचेतन मन में प्रवेश कर जाएगा। सूक्ष्म शरीर को व चित्त के संस्कारो में वह स्मरण प्रगाढ़ता के साथ संयुक्त हो जाएगा। तब देह छूटने के बाद गुरुलोक में गमन होगा व सूक्ष्म शरीर रूपी शिष्य को सूक्ष्म शरीर में सूक्ष्म लोकों में गुरु सान्निध्य का लाभ मिलेगा।
आत्मा की शिखर यात्रा निर्बाध रूप से अनवरत होती रहेगी, भले शरीर रहे या छूट जाए।
🙏🏻श्वेता, DIYA
No comments:
Post a Comment