*गुरुगीता प्रश्नोत्तरी - स्कन्दपुराण - उत्तराखंड - शिवपार्वती सम्वाद*
प्रश्न- *श्लोक 84 एवं 86- प्रथम में गुरु सेवा की ठीक-ठीक विधि कोई नहीं जानता ऐसा लिखा है दूसरे में गुरु सेवा से विमुख होने पर मोक्ष नहीं मिल सकता ऐसा लिखा है. अतः सही विधि की जानकारी ना होने पर गुरु सेवा से विपरीत या विमुख कोई कार्य या विचार है यह कैसे ज्ञात हो?*
उत्तर - आत्मीय भाई,
गुरुसेवा की ठीक ठीक विधि न जानना एक अलग बात है, और गुरुसेवा का प्रयास न करना दूसरी बात है।
ॐ आवाहनं न जानामि, नैव जानामि पूजनम् । विसर्जनं न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर....
यह मन्त्र यज्ञ में सुना होगा, ठीक ठीक विधि नहीं आती, फिर भी यज्ञ पूरी श्रद्धा निष्ठा से किया है। इसे स्वीकार लीजिये। इसी तरह गुरुसेवा की ठीक विधि ज्ञात न होने पर भी भक्ति भावना व समर्पण से किया गुरुकार्य गुरुसेवा फ़लित होती है।
कृष्ण विष्णु ज्ञानी कहे, किशन-बिशन अज्ञान,
ज्यो बालक टोटी कहे, माता रोटी जान।।
भूल चूक क्षमा करो भगवान।
भगवान व सद्गुरु माता की तरह होते हैं, ठीक ठाक विधि गुरुसेवा की न जानने के कारण भी यदि शिष्य निर्मल मन से गुरुसेवा का अनवरत प्रयास कर रहा है, तो गुरु माता की तरह प्रशन्न हो उठता है। व लाड़ प्यार व अनुदान वरदान शिष्य पर लुटाता रहता है।
मग़र जो अहंकार वश गुरुसेवा से ही विमुख हो जाये। दीक्षा तो ले ली मग़र गुरुसेवा हेतु उनके बताए गुरु अनुशासन और शत सूत्रीय कार्यक्रम में से कुछ भी न करे, कोई मिशन का कार्य न करे। गुरु की न सुने, गुरु सेवा से विमुख हो जाये तो भला उसका कल्याण कैसे होगा?
जो शिष्य निर्मल भाव से प्रयास जो करता है वह लाभान्वित होता है। जो गुरु का साहित्य पढ़ता है, जो गुरु निर्देशो को सुनता है, जो गुरु के ध्यान में डूबता है उसे गुरु क्या चाहता है, निर्देश स्पष्ट मिलने लगता है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
प्रश्न- *श्लोक 84 एवं 86- प्रथम में गुरु सेवा की ठीक-ठीक विधि कोई नहीं जानता ऐसा लिखा है दूसरे में गुरु सेवा से विमुख होने पर मोक्ष नहीं मिल सकता ऐसा लिखा है. अतः सही विधि की जानकारी ना होने पर गुरु सेवा से विपरीत या विमुख कोई कार्य या विचार है यह कैसे ज्ञात हो?*
उत्तर - आत्मीय भाई,
गुरुसेवा की ठीक ठीक विधि न जानना एक अलग बात है, और गुरुसेवा का प्रयास न करना दूसरी बात है।
ॐ आवाहनं न जानामि, नैव जानामि पूजनम् । विसर्जनं न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर....
यह मन्त्र यज्ञ में सुना होगा, ठीक ठीक विधि नहीं आती, फिर भी यज्ञ पूरी श्रद्धा निष्ठा से किया है। इसे स्वीकार लीजिये। इसी तरह गुरुसेवा की ठीक विधि ज्ञात न होने पर भी भक्ति भावना व समर्पण से किया गुरुकार्य गुरुसेवा फ़लित होती है।
कृष्ण विष्णु ज्ञानी कहे, किशन-बिशन अज्ञान,
ज्यो बालक टोटी कहे, माता रोटी जान।।
भूल चूक क्षमा करो भगवान।
भगवान व सद्गुरु माता की तरह होते हैं, ठीक ठाक विधि गुरुसेवा की न जानने के कारण भी यदि शिष्य निर्मल मन से गुरुसेवा का अनवरत प्रयास कर रहा है, तो गुरु माता की तरह प्रशन्न हो उठता है। व लाड़ प्यार व अनुदान वरदान शिष्य पर लुटाता रहता है।
मग़र जो अहंकार वश गुरुसेवा से ही विमुख हो जाये। दीक्षा तो ले ली मग़र गुरुसेवा हेतु उनके बताए गुरु अनुशासन और शत सूत्रीय कार्यक्रम में से कुछ भी न करे, कोई मिशन का कार्य न करे। गुरु की न सुने, गुरु सेवा से विमुख हो जाये तो भला उसका कल्याण कैसे होगा?
जो शिष्य निर्मल भाव से प्रयास जो करता है वह लाभान्वित होता है। जो गुरु का साहित्य पढ़ता है, जो गुरु निर्देशो को सुनता है, जो गुरु के ध्यान में डूबता है उसे गुरु क्या चाहता है, निर्देश स्पष्ट मिलने लगता है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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