Monday, 25 May 2020

गुरुगीता प्रश्नोत्तरी* - *स्कन्दपुराण- उत्तराखंड*-शिव पार्वती सम्वाद प्रश्न -- *श्लोक 49

*गुरुगीता प्रश्नोत्तरी* - *स्कन्दपुराण- उत्तराखंड*-शिव पार्वती सम्वाद

प्रश्न -- *श्लोक 49 -  विवेकी मनुष्य की तुलना में अविवेकी मनुष्य को  गुरु तत्त्व  की  प्राप्ति ना हो,  यह ठीक है पर मंद भाग्य को भी विवेक के सहारे गुरु तत्व की प्राप्ति हो सकती है.  किंतु यहां मंद भाग्य को गुरु तत्व प्राप्ति नहीं होती यह अर्थ बताया गया है. श्लोक 134 मैं यह भी बताया गया है गुरु गीता सभी   पापों  का नाश हो जाता है  तो फिर व्यक्ति के मंद भाग्य क्यों कर ठीक नहीं हो सकते.*

*श्लोक  49  एवं 73  -  प्रथम में मंद भाग्य गुरु के अमृत तुल्य रूप को नहीं देख पाता है यह लिखा है दूसरे में गुरु शिष्य के अनेक जन्मों से संचित सभी कर्मों को  भस्मसात  कर देते हैं  ऐसा अर्थ लिखा है.  दोनों में विरोधाभास लगता है*

उत्तर- आत्मीय भाई, सद्गुरु की शरण में चार तरह के लोग शिष्य बनने आते हैं -अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी। सांसारिक लाभ हेतु ज्ञानार्जन अर्थार्थी करता है, आर्त अर्थात दुःखी व्यक्ति दुःख से मुक्ति हेतु सद्गुरु शरण मे आता है, कुछ लोगों को ज्ञान की प्यास होती है, वह ज्ञान प्राप्ति के लिए सद्गुरु शरण में आते हैं। ज्ञानी वस्तुतः  मुमुक्षु होता है मोक्ष व मुक्ति हेतु वैराग्य  भाव से सद्गुरु की शरण मे आता है। ज्ञानी को ही विवेकी पुरुष और सौभाग्यशाली शिष्य कहा जाता है, जो जानता है कि मुक्ति व मोक्ष क्या है? परमात्मा से मिलन की उत्कंठा क्या होती है। सद्गुरु गंगा की तरह है, जो शिष्य जिस भाव-उद्देश्य व योग्यता-पात्रता लेकर आएगा, बस उसे वही व उतना ही मिलेगा।

एक ही गुरु के समस्त शिष्य एक से समर्थ नहीं बनते, इनका मात्र यही कारण होता है।

समस्त पापों व तापों का नाश समर्थ सद्गुरु करता जरूर है, लेकिन केवल सुपात्र शिष्य पर अपनी तपस्या लुटाता है। जिसका समर्पण विसर्जन विलय दास भाव से गुरु के प्रति जितना होगा वह उतना ही लाभ पाता है। निज इच्छाओं का त्याग करके गुरु की इच्छाओं को ही जीवन उद्देश्य मान ले वही भव बन्धन से तरता है।

मंदभाग्य - हतभाग्य शिष्य सद्गुरु के स्वरूप व ज्ञान की विशालता को न समझ पाने के कारण मात्र सांसारिक अर्थ लाभ हेतु गुण सीख कर ही संतुष्ट हो जाता है। इसलिए वह मुक्ति व मोक्ष से वंचित रहता है।

एक बार एक राजा ने एक किसान को मदद के बदले कुछ भी मांगने को कहा, उस मंदभाग्य किसान ने अच्छी क़्वालिटी के कद्दू मांगें। यदि कोई बुद्धिमान होता तो क्या वह मात्र कद्दू मांगता?

युगऋषि के दर्शन को लोग आते थे, तो क्या मांगते थे, बेटी की शादी हो जाए, बेटे की नौकरी लग जाये, फसल अच्छी हो। कितने शिष्यों ने युगऋषि से मांगा - हमें अपनी शरण मे ले लो हमसे अपना कार्य करवा लो। हमारी सांस सांस पर अधिकार कर लो, अपना अंग अवयव बना लो???

उम्मीद है मंदभाग्य और विवेकी शिष्यों का अंतर स्पष्ट हो गया होगा।

मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है, सद्गुरु हो या भगवान बिना आह्वाहन और पात्रता चेक किये किसी के जीवन में अपेक्षित अनुदान वरदान नहीं लुटा सकते हैं। यह नियति का विधि विधान है।

 श्रद्धा-विश्वास, समर्पण के साथ पात्रता के विकास हेतु प्रथम क्रम में प्रयास तो शिष्य को करना होगा, अपना उद्देश्य स्पष्ट करना होगा, तब द्वितीय क्रम में सद्गुरु के उद्धारक स्वरूप का साक्षात्कार शिष्य कर पायेगा। गुरु के अनुदान वरदान से वह जुड़ पायेगा।


🙏🏻श्वेता, DIYA

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