Monday 25 May 2020

गुरुगीता प्रश्नोत्तरी - स्कन्दपुराण - उत्तराखंड - शिवपार्वती सम्वाद* प्रश्न- *श्लोक 106

*गुरुगीता प्रश्नोत्तरी - स्कन्दपुराण - उत्तराखंड - शिवपार्वती सम्वाद*

प्रश्न- *श्लोक 106- गुरु शिष्य संबंध का विवेचन किन अर्थों में है ?  क्योंकि आध्यात्मिक संबंध में विषम स्थिति  प्रस्तुत होना लगभग नामुमकिन है*


 उत्तर - आत्मीय भाई,

आपने श्रीरामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में कागभुशुण्डि द्वारा गुरु का अपमान करने पर श्राप मिलने की कथा पढ़ी होगी। यदि नहीं पढ़ी हो तो एक बार जरूर पढ़े। तब यह निम्नलिखित श्लोक 106 स्पष्ट हो जाएगा:-

अशक्ता हि सुराद्याश्च अशक्ता मुनय स्तथा।
गुरु शापेन ते शीघ्रं क्षयं यान्ति न शंशय:।।

देवता, यक्ष, किन्नर, मुनि इत्यादि के श्राप से गुरु त्राण(रक्षण करने में) समर्थ है। मग़र यदि गुरु अपमान व गुरुद्रोह में गुरु श्राप मिले व्यक्ति का त्राण (रक्षण करने में) कोई देवता, यक्ष, किन्नर, मुनि समर्थ नहीं है।

कागभुशुण्डि ने गुरु का अपमान कर दिया था अभिमान-अहंकार वश, उन्हें रौरवनर्क झेलना पड़ा था।

गुरुदेव दया के सागर हैं, मग़र दया के सागर मे भी सुनामी आती है, जब पाप अक्षम्य हो जाता है, तब शिष्य को श्राप मिलता है। तब उसका पतन निश्चयत: होता है। गुरुश्राप से केवल गुरु ही मुक्त कर सकता है। तीनो लोक के अधिपति देवता हस्तक्षेप नहीं करते।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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