Monday, 25 May 2020

प्रश्न - *गुरु गीता के श्लोक 156 का भावार्थ समझा दीजिये* गुरुपुत्रो वरं मूर्खस्तस्य सिद्धयन्ति नान्यथा। शुभकर्माणि सर्वाणि दीक्षाव्रत तपांसि च।।

प्रश्न - *गुरु गीता के श्लोक 156 का भावार्थ समझा दीजिये*

गुरुपुत्रो वरं मूर्खस्तस्य सिद्धयन्ति नान्यथा।
शुभकर्माणि सर्वाणि दीक्षाव्रत तपांसि च।।

उत्तर - आत्मीय भाई, यहां सदगुरु पुत्र के ज्ञान की तुलना सद्गुरु के ज्ञान से की गई है। हमारे और आपके ज्ञान से नहीं की गई है।

श्लोक - 156, सद्गुरु के घर जन्म लेने वाली आत्मा कभी भी साधारण नहीं होती। उसका शरीर जिन तत्वों से बना है उसमें सद्गुरु का अंश विद्यमान है। सद्गुरु के सान्निध्य में रहने व बहुत कुछ सीखने का उसे अवसर मिलता है।

वह मूर्ख किन अर्थों में कही गयी है यह समझना बहुत आवश्यक है। यदि वह अज्ञानी होगी व अनपढ़ होगी तो उसे संस्कृत का ज्ञान नहीं हो तो दीक्षा व्रत तप इत्यादि वो करवा हिबनहीं पाएगी। क्या कोई सद्गुरु अपने बच्चे को अनपढ़ रहने देगा क्या?

अतः गुरुपुत्र की मूर्खता तुलनात्मक है, अर्थात गुरु के समान बुद्धिमान न होना। गुरु से कम योग्य होना। अर्थात गुरु महान ज्ञान के सामने उनके पुत्र का ज्ञान तुच्छ होना व मूर्ख प्रतीत होना।

कुशल नाविक और रेस में जितने वाले नाविक का बेटा बाप के समान भले न हो, कोई रेस भले जीत न सके।  मग़र वो इतना कुशल जरूर होता है कि तुम्हें डूबने से बचा सके और किनारे तक पहुंचा सके। नदी पार करवा सके।

मग़र वह गुरुपुत्र हमसे और आपसे अधिक बुद्धिमान होगा। गुरु के समान न होते हुए भी वह इतनी क्षमता रखता है कि आपको सन्मार्ग दिखा दे, आपके व्रत तप को पूर्णता तक पहुंचा दें। वह पिता के ज्ञान और तप के सामने तुच्छ प्रतीत भले हो रहा हो, मग़र वह हमसे और आपसे बहुत श्रेष्ठ है, हमसे और आपसे ज्यादा ज्ञान व तप की धरोहर रखता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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