प्रश्न - *मैम, दिसम्बर 2019 को मेरे बेटे की मृत्यु हो गयी, मैं उसे ज़रा भी नहीं भूल पा रहा हूँ। मैं खुद को कहीं न कहीं उसकी मृत्यु का जिम्मेदार मानता हूँ कि मैं उसे बचा न सका?*
उत्तर- आत्मीय भाई,
आपके पुत्र की मृत्यु का शोक हृदयविदारक है, हमारी पूरी संवेदना आपके साथ है। इस शोक से अपने हृदय को मुक्त कीजिये। प्रत्येक आत्मा कितने दिन हमारे साथ रहेगी यह पूर्वनिर्धारित होता है, हम सब तय नहीं कर सकते किसी का जीवन कितना होगा और वह कब शरीर त्यागेगा।
अब देखो, कोरोना महामारी में लाखों लोग मर गए, न तुम किसी के जन्म के लिए जिम्मेदार बन सकते हो और न ही किसी की मृत्यु के लिए जिम्मेदार बन सकते। प्रत्येक पिता जीवन बचाने का प्रयास करता है, लेकिन जिस आत्मा के जाने का वक्त आ जाता है, उसे करोड़पति पिता भी नहीं बचा सकता, कोई बड़ा डॉक्टर पिता भी नहीं बचा सकता। हम सब पूर्व जन्म में किसी के रिश्तेदार थे, वहां मरे तभी तो इस जन्म में जन्में। तुम्हारा पुत्र की आत्मा तुम्हारे लिए शोक का कारण बनी हुई है लेकिन वर्तमान में किसी के गर्भ में प्रवेश कर अपने नए माता पिता के सुख का कारण बन रही होगी। जैसे हमें और आपको पूर्व जन्म की याद नहीं तो उसे भी आप याद नहीं होंगे। अब उसे जब आप याद नहीं तो आप उसे याद करके परेशान मत होइए। नए जीवन व नए शरीर मे उसे नई जिंदगी जीने की शुभकामनाएं दीजिये।
कोई इस संसार मे न मरता हैं न ही जन्म लेता है। आत्मा तो वस्तुतः सिर्फ शरीर बदलती है।
सुख और दुःख जुड़े हुए हैं, कोई कहीं मृत्यु के कारण सुख देगा, वही कहीं जन्म के कारण सुख देगा।
जीवन की ट्रेन में चढ़ते वक्त ही उतरने का स्टेशन और वक्त मिल जाता है, बस समस्या यह है कि हम नहीं जानते, भूल जाते हैं। जीवन ट्रेन में कई लोग हमारे बोगी में चढ़ते उतरते रहते हैं, जिसका जब स्टेशन आएगा व्व उतरेगा भले ही उससे हमारा कितना ही लगाव क्यों न हो।
हम उसकी मृत्यु का ज्यादा शोक करते हैं जिससे हमारा जुड़ाव ज्यादा होता है या जिससे हमें प्रेम व सुखानुभूति के साधन मिलते हैं। बीमार वृद्ध की मृत्यु हमें उतना दुःख नहीं देती जितना कमाने वाला जवान पुत्र की मृत्यु शोक देती है। व्यभिचारी पति की मृत्यु उतना शोक नहीं देती जितना शोक प्रेम करने वाला पति की मृत्यु पर होगा। इससे सिद्ध होता है कि वस्तुतः मृत्यु दुःखद नहीं है, दुःख का कारण हमारा उस जाने वाले व्यक्ति से लगाव और पूरी होने वाली इच्छाओं की बाधा से है। यदि मृत्यु दुःखद होती तो गैर पड़ोसी की मृत्यु ही उतना दुःख देती जितना निज पुत्र की मृत्यु देता है। दुःख मन की भावनाओ पर निर्भर करता है न कि किसी घटना पर निर्भर करता है।
अतः शोक मत कीजिये, स्वयं को सम्हालिये। संसार की नश्वरता और आत्मा की अमरता को समझते हुए स्वयं व परिवार जन को शोक से उबारिये। इस संसार को मृत्यु लोक ही कहते हैं, यहां जन्म व मृत्यु आत्मा के देह त्याग को कहते हैं, आत्मा के लिए वस्तुतः यह वस्त्र त्याग के समान ही है।
कहीं देह त्याग दुःख का कारण बनेगा, कहीं नया देह सुख का का कारण बनेगा। जब पुत्र आपका आपके घर जन्मा था तब वह कहीं से मरकर-देहत्याग करके ही आया था। अब यहां से देह त्याग के कहीं गर्भ में प्रवेश कर जन्म की तैयारी में है। जिस आत्मा के लिए इस जन्म के माता पिता अर्थात आप दुःखी हैं, उसी आत्मा के नए माता पिता व परिवार उसके जन्म लिए खुश होकर उसके जन्मने की प्रतीक्षा कर रहा होगा।
यही परम सत्य है, शोक न करें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- आत्मीय भाई,
आपके पुत्र की मृत्यु का शोक हृदयविदारक है, हमारी पूरी संवेदना आपके साथ है। इस शोक से अपने हृदय को मुक्त कीजिये। प्रत्येक आत्मा कितने दिन हमारे साथ रहेगी यह पूर्वनिर्धारित होता है, हम सब तय नहीं कर सकते किसी का जीवन कितना होगा और वह कब शरीर त्यागेगा।
अब देखो, कोरोना महामारी में लाखों लोग मर गए, न तुम किसी के जन्म के लिए जिम्मेदार बन सकते हो और न ही किसी की मृत्यु के लिए जिम्मेदार बन सकते। प्रत्येक पिता जीवन बचाने का प्रयास करता है, लेकिन जिस आत्मा के जाने का वक्त आ जाता है, उसे करोड़पति पिता भी नहीं बचा सकता, कोई बड़ा डॉक्टर पिता भी नहीं बचा सकता। हम सब पूर्व जन्म में किसी के रिश्तेदार थे, वहां मरे तभी तो इस जन्म में जन्में। तुम्हारा पुत्र की आत्मा तुम्हारे लिए शोक का कारण बनी हुई है लेकिन वर्तमान में किसी के गर्भ में प्रवेश कर अपने नए माता पिता के सुख का कारण बन रही होगी। जैसे हमें और आपको पूर्व जन्म की याद नहीं तो उसे भी आप याद नहीं होंगे। अब उसे जब आप याद नहीं तो आप उसे याद करके परेशान मत होइए। नए जीवन व नए शरीर मे उसे नई जिंदगी जीने की शुभकामनाएं दीजिये।
कोई इस संसार मे न मरता हैं न ही जन्म लेता है। आत्मा तो वस्तुतः सिर्फ शरीर बदलती है।
सुख और दुःख जुड़े हुए हैं, कोई कहीं मृत्यु के कारण सुख देगा, वही कहीं जन्म के कारण सुख देगा।
जीवन की ट्रेन में चढ़ते वक्त ही उतरने का स्टेशन और वक्त मिल जाता है, बस समस्या यह है कि हम नहीं जानते, भूल जाते हैं। जीवन ट्रेन में कई लोग हमारे बोगी में चढ़ते उतरते रहते हैं, जिसका जब स्टेशन आएगा व्व उतरेगा भले ही उससे हमारा कितना ही लगाव क्यों न हो।
हम उसकी मृत्यु का ज्यादा शोक करते हैं जिससे हमारा जुड़ाव ज्यादा होता है या जिससे हमें प्रेम व सुखानुभूति के साधन मिलते हैं। बीमार वृद्ध की मृत्यु हमें उतना दुःख नहीं देती जितना कमाने वाला जवान पुत्र की मृत्यु शोक देती है। व्यभिचारी पति की मृत्यु उतना शोक नहीं देती जितना शोक प्रेम करने वाला पति की मृत्यु पर होगा। इससे सिद्ध होता है कि वस्तुतः मृत्यु दुःखद नहीं है, दुःख का कारण हमारा उस जाने वाले व्यक्ति से लगाव और पूरी होने वाली इच्छाओं की बाधा से है। यदि मृत्यु दुःखद होती तो गैर पड़ोसी की मृत्यु ही उतना दुःख देती जितना निज पुत्र की मृत्यु देता है। दुःख मन की भावनाओ पर निर्भर करता है न कि किसी घटना पर निर्भर करता है।
अतः शोक मत कीजिये, स्वयं को सम्हालिये। संसार की नश्वरता और आत्मा की अमरता को समझते हुए स्वयं व परिवार जन को शोक से उबारिये। इस संसार को मृत्यु लोक ही कहते हैं, यहां जन्म व मृत्यु आत्मा के देह त्याग को कहते हैं, आत्मा के लिए वस्तुतः यह वस्त्र त्याग के समान ही है।
कहीं देह त्याग दुःख का कारण बनेगा, कहीं नया देह सुख का का कारण बनेगा। जब पुत्र आपका आपके घर जन्मा था तब वह कहीं से मरकर-देहत्याग करके ही आया था। अब यहां से देह त्याग के कहीं गर्भ में प्रवेश कर जन्म की तैयारी में है। जिस आत्मा के लिए इस जन्म के माता पिता अर्थात आप दुःखी हैं, उसी आत्मा के नए माता पिता व परिवार उसके जन्म लिए खुश होकर उसके जन्मने की प्रतीक्षा कर रहा होगा।
यही परम सत्य है, शोक न करें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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