Saturday, 9 May 2020

प्रश्न - *श्रद्धा और विश्वास से सभी काम कैसे बनते हैं? इसका अध्यात्म क्षेत्र में इतना महत्त्व क्यों है? साइंटिफिक विवेचन क्या है?*

प्रश्न - *श्रद्धा और विश्वास से सभी काम कैसे बनते हैं? इसका अध्यात्म क्षेत्र में इतना महत्त्व क्यों है? साइंटिफिक विवेचन क्या है?*

उत्तर - दी, उपरोक्त प्रश्न पर गहन चिंतन कर रही थी कि अध्यात्म के लिए क्या ज्यादा जरूरी है यम नियम ज्ञान या भक्ति प्रेम विह्वलता श्रद्धा विश्वास। बस चिंतन में खोई तभी अन्तस् में गीत गूंज उठा -

मां सुनते हैं कृपा तेरी, दिन-रात बरसती है।
*श्रद्धालु* ही पाते हैं, दुनियाँ तो तरसती है॥

फिर दिमाग़ में विचार कौंधा इस गीत से और श्लोक याद आया :-

भवानी शंकरौ वन्दे, *श्रद्धा विश्वास रूपिणौ*”

*श्रद्धा-विश्वास* मनुष्य जीवन के उन आधार-भूत सिद्धान्तों में से एक है जिससे वह पूर्ण विकास की ओर गमन करता है। श्रद्धा-विश्वास न हो तो मनुष्य साँसारिक सफलतायें प्राप्त करके भी आत्मिक सुख प्राप्त न कर सकेगा क्योंकि जिन गुणों से आध्यात्मिक सुख मिलता है उनकी पृष्ठभूमि श्रद्धा-विश्वास पर ही निर्भर है।

वैज्ञानिक किसी भी रिसर्च को शुरु करने से पहले उस रिसर्च की सफ़लता-असफ़लता की परवाह न करते हुए स्वयं के विचार पर पूर्ण श्रद्धा-विश्वास रखते हुए जो वर्तमान में अव्यक्त है उसे व्यक्त करने जुट पड़ते हैं।

तर्क हमेशा व्यक्त पर कार्य करता है, लेकिन जो अव्यक्त है उसे व्यक्त व खोजने के लिए तो श्रद्धा-विश्वास रखके ही कार्य करना पड़ता है।

बीज गणित में भी प्रत्येक फार्मूले में पहले किसी वेरीयेबल की वैल्यू अमुक मानते हो तब जाकर अंत मे सत्य तक पहुंचते हो। शुरू मानोगे(विश्वास करोगे)  नहीं तो सत्य तक पहुंचोगे भी नहीं।

*इसलिए मानसकार तुलसीदास जी ने बताया है- ‘‘ *भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ। याभ्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥*” (बालकाण्ड 2)

अर्थात्- शंकर विश्वास है तो भवानी श्रद्धा। दोनों की उपासना से ही सिद्धि या अंतःकरण में स्थित परमात्म देव के दर्शन सम्भव होते हैं।

शिवत्व अर्थात् जीवन के बुरे तत्वों का संहार-ईश्वर प्राप्ति का प्रमुख कारण है किन्तु शिव अकेला अपूर्ण है उसे उमा भी चाहिए। उमा अर्थात् गुणों का अभिवर्द्धन। शिव का अर्थ है असुरता का संहार और भवानी का अर्थ है भावनाओं का परिष्कार। शिव के रूप में विश्वास दृढ़ होता है, कठिन होता है पर भवानी के रूप में श्रद्धा सरल और सुखदायक होती है। अतः विश्वास जगाना हो तो श्रद्धा की शरण लेनी चाहिए। श्रद्धा साधना को सरल बना देती है, सुख रूप कर देती है।

*श्रद्धा और विश्वास के बिना भक्ति और ज्ञान दोनों मंजिल तक नहीं पहुंचेगे।*

विज्ञान,अध्यात्म और किसी रिश्ते का आधार श्रद्धा विश्वास ही होता है, वैज्ञानिक जब कोई इन्वेंशन(ख़ोज) शुरू करता है तो विश्वास के सहारे करता है। और जब ख़ोज पूरी हो जाती है तो विज्ञान द्वारा प्रमाणित हो जाती है। हम किसी से इस विश्वास पर शादी करते हैं क़ि यह हमारा उम्र भर साथ देगा। हम बच्चों को स्कूल इस विश्वास से भेजते हैं क़ि वो पढ़लिख के कुछ बन जायेंगे। डॉक्टर के पास भी स्वस्थ हो जायेंगे इस श्रद्धा- विश्वास पर ही जाते है। भगवान और गुरु से भी श्रद्धा-विश्वास पर जुड़ते हैं। यदि श्रद्धा-विश्वास न हो तो न ही दवा असर करेगी और न ही दुआ असर करेगी, और न ही विज्ञान की खोज सम्भव होगी। श्रद्धा विश्वास बिना जीवन ही सम्भव नहीं है, क्यूंकि यदि जीवन के प्रति श्रद्धा विश्वास न हुआ तो, व्यक्ति स्वयं के जीवन का अंत कर लेगा।

कोई भी रिश्ता भगवान से हो या इंसान से उसका आधार श्रद्धा व विश्वास ही होता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
दिया गुरुग्राम

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