*बुद्ध की पूर्णता -यशोधरा के त्याग पर निर्भर है।*
दर्द से भरे हृदय को रोने दो,
इन आंसुओ को मत रोको, बहने दो,
इस पीड़ा चक्र को घटने दो,
चक्षुओं को अपना दर्द, अभिव्यक्त करने दो।
यशोधरा! तुम्हारा कष्ट अपार है,
तुम्हारा विरह, पीड़ा, हृदय विदारक है।
लेक़िन इस पीड़ा में छिपा विश्वउपचार है,
लाखों की पीड़ा की दवा तुम्हारे त्याग पर निर्भर है।
सैनिक पत्नियों को,
देशहित विरह झेलना पड़ता है,
साइन्टिस्ट के परिवारों को भी,
उपेक्षित रहना पड़ता है,
देशभक्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के,
परिवार भी उपेक्षित होते हैं,
योगी सन्यासियों के परिवार भी,
उनके वियोग में तड़फते हैं।
बुद्ध को गृहत्याग करने दो,
पत्नी सुख से स्वयं को वंचित होने दो,
तुम्हारा एक पुत्र जब पिता सुख त्यागेगा,
तब ही लाखों लोगों को उसका पिता गुरु रूप में मिलेगा।
यदि आज एक योग्य गुरु,
तुम्हारे पति को मिल जाता,
तो सिद्धार्थ से बुद्ध का सफ़र,
तुम्हारे महल में ही घट जाता।
जंगलों में अकेले,
सिद्धार्थ से बुद्ध बनने के लिए,
यूँ भटकना न पड़ता,
यदि सद्गुरु का मार्गदर्शन,
उन्हें तुम्हारे महल में ही मिल जाता।
दुर्भाग्य कहो या सौभाग्य,
तुम्हारा पति ही वह गुरु बनने वाला है,
जो लाखो को भटकने से,
अपने मार्गदर्शन से बचाने वाला है,
लाखों यशोधरा को अब,
पति विरह झेलना न पड़ेगा,
भगवान बुद्ध का मार्गदर्शन,
उन्हें गृहस्थ में जो मिलेगा।
तुम्हारी पीड़ा के नींव पर,
बुद्ध के ज्ञान चिकित्सा का भवन खड़ा होने वाला है,
जिसके अंदर लाखों मनुष्यों की पीड़ा का,
उपचार व समाधान बुद्ध से मिलने वाला है।
यशोधरा तुम्हारी पीड़ा ही वह नींव है,
जिस पर बुद्धत्व निर्भर है,
तुम्हारे त्याग की ऋणी,
यह कण कण और जन जन है।
यह पीड़ा की नींव न होगी,
तो बुद्ध के ज्ञान का भवन भी न होगा,
तुम्हारी विरह वेदना न होगी तो,
लाखों लोगों के उपचार की दवा भी न होगी।
बड़ी विडम्बना है,
विवेकानंद, भगतसिंह व बुद्ध सब चाहते हैं,
लेकिन पड़ोसी के घर में,
कोई देशहित समाजहित नहीं चाहता,
पति सुख, पिता सुख, सन्तान सुख त्याग के।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
दर्द से भरे हृदय को रोने दो,
इन आंसुओ को मत रोको, बहने दो,
इस पीड़ा चक्र को घटने दो,
चक्षुओं को अपना दर्द, अभिव्यक्त करने दो।
यशोधरा! तुम्हारा कष्ट अपार है,
तुम्हारा विरह, पीड़ा, हृदय विदारक है।
लेक़िन इस पीड़ा में छिपा विश्वउपचार है,
लाखों की पीड़ा की दवा तुम्हारे त्याग पर निर्भर है।
सैनिक पत्नियों को,
देशहित विरह झेलना पड़ता है,
साइन्टिस्ट के परिवारों को भी,
उपेक्षित रहना पड़ता है,
देशभक्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के,
परिवार भी उपेक्षित होते हैं,
योगी सन्यासियों के परिवार भी,
उनके वियोग में तड़फते हैं।
बुद्ध को गृहत्याग करने दो,
पत्नी सुख से स्वयं को वंचित होने दो,
तुम्हारा एक पुत्र जब पिता सुख त्यागेगा,
तब ही लाखों लोगों को उसका पिता गुरु रूप में मिलेगा।
यदि आज एक योग्य गुरु,
तुम्हारे पति को मिल जाता,
तो सिद्धार्थ से बुद्ध का सफ़र,
तुम्हारे महल में ही घट जाता।
जंगलों में अकेले,
सिद्धार्थ से बुद्ध बनने के लिए,
यूँ भटकना न पड़ता,
यदि सद्गुरु का मार्गदर्शन,
उन्हें तुम्हारे महल में ही मिल जाता।
दुर्भाग्य कहो या सौभाग्य,
तुम्हारा पति ही वह गुरु बनने वाला है,
जो लाखो को भटकने से,
अपने मार्गदर्शन से बचाने वाला है,
लाखों यशोधरा को अब,
पति विरह झेलना न पड़ेगा,
भगवान बुद्ध का मार्गदर्शन,
उन्हें गृहस्थ में जो मिलेगा।
तुम्हारी पीड़ा के नींव पर,
बुद्ध के ज्ञान चिकित्सा का भवन खड़ा होने वाला है,
जिसके अंदर लाखों मनुष्यों की पीड़ा का,
उपचार व समाधान बुद्ध से मिलने वाला है।
यशोधरा तुम्हारी पीड़ा ही वह नींव है,
जिस पर बुद्धत्व निर्भर है,
तुम्हारे त्याग की ऋणी,
यह कण कण और जन जन है।
यह पीड़ा की नींव न होगी,
तो बुद्ध के ज्ञान का भवन भी न होगा,
तुम्हारी विरह वेदना न होगी तो,
लाखों लोगों के उपचार की दवा भी न होगी।
बड़ी विडम्बना है,
विवेकानंद, भगतसिंह व बुद्ध सब चाहते हैं,
लेकिन पड़ोसी के घर में,
कोई देशहित समाजहित नहीं चाहता,
पति सुख, पिता सुख, सन्तान सुख त्याग के।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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