प्रश्न - *पूजा माला करने के बाद भी ज्यादा डरावने, बेकार, अशुभ सपने प्रतिदिन क्यों आने लगते हैं। ऐसा क्यों होता है?*
उत्तर - आत्मीय भाई,
बुखार के लिए जिस प्रकार किसी एक प्रकार के संक्रमण के कारण नहीं होता, विभिन्न प्रकार के संक्रमण बुखार का कारण बनते है, वैसे ही दु:स्वप्न के भी अनेक कारण होते हैं।
👉🏻कारण 1- *पूर्वजन्म की स्मृति के सँस्कार*
पूर्वजन्म में आपकी या स्वजन की मृत्यु किसी प्राकृतिक आपदा से हुई थी। जिनकी स्मृतियाँ आपके सँस्कार रूप में चित्त में मौजूद हैं। आप उस भय को वर्तमान में जानते नहीं, इसलिए भूले रहते हैं। ध्यान और स्वप्न दोनों अवस्था में स्थूल व सूक्ष्म के बीच का पर्दा उठता है, भूली स्मृतियां उभरती हैं।
👉🏻कारण 2 - *मोहग्रस्त मानसिकता*
प्रेम और मोह में एक बड़ा अंतर है, प्रेम में व्यक्ति स्वयं दूसरे बन्धता है और उसके प्रति समर्पित होता है। मोह में व्यक्ति दूसरों को बाँधता है, दूसरे से स्वयं के प्रति समर्पण चाहता है। मोह में व्यक्ति आशंकित व भयभीत रहता है, प्रेम में व्यक्ति मुक्त व आनन्दित रहता है।
पति व पुत्र से अत्यंत मोह करने वाली स्त्री उनके घर आने पर यदि देरी हो जाये तो उन पलों में समस्त प्रकार के अशुभ व डरावने बातें सोच डालती है, हे भगवान! कहीं एक्सीडेंट तो नहीं हो गया, कोई अनहोनी तो नहीं हो गयी इत्यादि इत्यादि। क्योंकि वह पति पुत्र को खोने से डरती है। इसी तरह परिवार मोह या व्यक्ति विशेष के मोह में ग्रस्त व्यक्ति स्वप्न में भी उनके खोने के भय से ग्रसित रहता है और विभिन्न आपदा के माध्यम से उन्हें खोने के जो भी दुनियाँ में उपलब्ध कारण है उन्हें स्वप्न में देखता है।
👉🏻 कारण 3- *पितृदोष*
जिन घरों में पितृ दोष होता है, वहाँ के घर के लोग अक्सर डरावने स्वप्न देखते हैं व विचलित होते हैं।
👉🏻 कारण 4- *वैचारिक प्रदूषण का सेवन*
जो लोग दिन रात टीवी से चिपक के नकारात्मक विचारों का सेवन न्यूज व आपराधिक सीरियल के माध्यम से करते हैं, वह भी डरावने , बेकार व अशुभ स्वप्न के शिकार होते हैं।
👉🏻 कारण 5- *मानसिक दुर्बलता*
मानसिक तौर पर कमज़ोर व्यक्ति स्वप्न में भी जो शरीर धारण कर स्वप्न देखता है वह मानसिक दुर्बलता के कारण पराजित होता है। बुरे स्वप्नों का शिकार होता है।
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👉🏻 ध्यान रखिये, जो आत्मा जितना आत्मबल चैतन्य अवस्था मे रखती है, उतना ही आत्मबल स्वप्न शरीर मे भी रखती है, साथ ही मरने के बाद भी उतना ही आत्मबल उसके प्रेत/पितर शरीर मे भी होता है।
दुर्बल व डरपोक व्यक्ति की यदि हत्या हो तो वह मरकर प्रेत शरीर धारण कर किसी से बदला लेने में अक्षम होता है, यदि वहीं किसी शशक्त आत्मबल से युक्त आत्मा का धोखे से वध कर दो तो वह प्रेत शरीर धारण कर बदला लेने में सक्षम होती है।
अतः अंधेरे से लड़ने के लिए हथियार मात्र दीपक, टॉर्च इत्यादि पर्याप्त हैं। पूर्वजन्म की बुरी स्मृतियों को निरन्तर गायत्री जप से नष्ट कर सकते हो, साथ ही गायत्री मंत्र जप और ध्यान से आत्मबल प्राप्त करके वर्तमान संसार और स्वप्न संसार दोनों जगह विजयी हो सकते हो। सोने से पूर्व स्वाध्याय अवश्य करें, मन के वैचारिक प्रदूषण को स्वाध्याय से दूर करें।
पितृदोष की शांति के लिए अपने बिस्तर पर बैठकर 40 दिन नित्य सुबह या शाम उच्चारण करते हुए श्रीमद्भगवद्गीता के 7 वें अध्याय का पाठ करें, हिंदी या संस्कृत जिसमें भी मन चाहे करें। कमरे की ऊर्जा स्वच्छ करें। 40 दिन तक पानी में साधारण नमक मिलाकर स्नान करें। शाम को सूर्यास्त के बाद घृत का दीपक खुली आँखों से 5 मिनट तक देखें। नित्य बलिवैश्व यज्ञ अवश्य करें। पितृदोष शांत होगा।
आत्मबोध व तत्त्वबोध साधना से मोह बन्धन कटते हैं, योगियों की तरह प्रत्येक रात मृत्यु और प्रत्येक दिन नई ज़िंदगी मानना। 24 घण्टे को साक्षी भाव से जीना। शरीर नश्वर है और आत्मा शाश्वत है, सोने से पूर्व शरीर और शरीर से जुड़े सभी रिश्तों के मोह को त्याग के परमात्मा की शरण मे सोना। योगियों जैसी मुक्त निंद्रा आएगी।
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👉🏻 *छोटा हृद्यान्यास व शरीर को सुरक्षा चक्र में सुरक्षित करने की विधि याद करलें, नित्य सोने से पूर्व या संध्या पूजन के समय कर लें*
हृदय में हाथ रखकर बोलें - *ॐ हृदयाय नमः*
सर पर हाथ से स्पर्श करके बोलें - *ॐ भू: शिरसे स्वाहा*
शिखा का हाथ से स्पर्श करके बोलें - *ॐ भुव: शिखायै वषट्*
अब दाहिने हाथ की उंगलियों से बायां कंधा और बाएं हाथ की उंगलियों से दाहिना कंधा एक साथ स्पर्श करें, एक तरह से दोनो हाथ एक साथ एक दूसरे को क्रॉस करते हुए एक दूसरे कंधे कक एक साथ छुएंगे। बोलिये - *ॐ स्व: कवचाय हुंम्*
अब नेत्र बन्द करके दाहिने हाथ की उंगलियों से दोनों नेत्र के मध्यभाग और मष्तिष्क के मध्य भाग को अपनी तीन उंगलियों से स्पर्श कीजिये, तर्जनी उंगली दाहिनी आंख पर, मध्यमा तिलक के स्थान पर और अनामिका बाएं आंख पर स्पर्श करेगी। बोलिये - *ॐ भूर्भुवः नेत्राभ्याम् वौषट्*
अब अंत में पूरे शरीर को सुरक्षा चक्र में बांधने हेतु अपने दाहिने हाथ से शरीर के बाएं तरफ से पीठ के पीछे से घुमाते हुए दाहिने तरफ से सामने हाथ लाकर निम्नलिखित मन्त्र बोलते बाएं हाथ पर दाहिने हाथ हुए ताली बजा दें।
- *ॐ भूर्भुवः स्व: अस्त्राय फ़ट्*
इतना कर स्वाध्याय करके सो जाइये।
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उपरोक्त उपाय के बाद दुःस्वप्न आएगा नहीं, यदि फिर भी कभी दु:स्वप्न आ जाये, तो उसके फल के नाश के लिए सुबह उठकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ लें:-
पहले गायत्री मंत्र श्रीराम का स्मरण निम्नलिखित मन्त्र से कीजिये:-
*ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात*
*ॐ दशरथाय विद्महे, सीता वल्लभाय धीमहि, तन्नो श्री राम: प्रचोदयात।*
*मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी।*
अब कुक्कुट ब्राह्मण का स्मरण कीजिये -
*लँकाया दक्षिणे कोणे, कुक्कुटो नाम ब्राह्मण:*
*तस्य स्मरण मात्रेण, दु:स्वप्नो सु:स्वप्नो भवति:।।*
शांति मन्त्र
*सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।*
कुक्कुट नाम के ब्राह्मण को भगवान श्रीराम ने तप के बाद आशीर्वाद मांगने को कहा, तो उसने वरदान मांगा, प्रभु यदि कोई मनुष्य दुःस्वन देखकर उठे और मेरा नाम स्मरण कर ले, तो उसका दु:स्वपन नष्ट कर दीजिए। भगवान तथास्तु कहा। तब से सुबह श्रीराम चन्द्र जी के स्मरण के बाद कुक्कुट ब्राह्मण के स्मरण को दु:स्वप्न को सु:स्वप्न में बदलने हेतु किया जाता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई,
बुखार के लिए जिस प्रकार किसी एक प्रकार के संक्रमण के कारण नहीं होता, विभिन्न प्रकार के संक्रमण बुखार का कारण बनते है, वैसे ही दु:स्वप्न के भी अनेक कारण होते हैं।
👉🏻कारण 1- *पूर्वजन्म की स्मृति के सँस्कार*
पूर्वजन्म में आपकी या स्वजन की मृत्यु किसी प्राकृतिक आपदा से हुई थी। जिनकी स्मृतियाँ आपके सँस्कार रूप में चित्त में मौजूद हैं। आप उस भय को वर्तमान में जानते नहीं, इसलिए भूले रहते हैं। ध्यान और स्वप्न दोनों अवस्था में स्थूल व सूक्ष्म के बीच का पर्दा उठता है, भूली स्मृतियां उभरती हैं।
👉🏻कारण 2 - *मोहग्रस्त मानसिकता*
प्रेम और मोह में एक बड़ा अंतर है, प्रेम में व्यक्ति स्वयं दूसरे बन्धता है और उसके प्रति समर्पित होता है। मोह में व्यक्ति दूसरों को बाँधता है, दूसरे से स्वयं के प्रति समर्पण चाहता है। मोह में व्यक्ति आशंकित व भयभीत रहता है, प्रेम में व्यक्ति मुक्त व आनन्दित रहता है।
पति व पुत्र से अत्यंत मोह करने वाली स्त्री उनके घर आने पर यदि देरी हो जाये तो उन पलों में समस्त प्रकार के अशुभ व डरावने बातें सोच डालती है, हे भगवान! कहीं एक्सीडेंट तो नहीं हो गया, कोई अनहोनी तो नहीं हो गयी इत्यादि इत्यादि। क्योंकि वह पति पुत्र को खोने से डरती है। इसी तरह परिवार मोह या व्यक्ति विशेष के मोह में ग्रस्त व्यक्ति स्वप्न में भी उनके खोने के भय से ग्रसित रहता है और विभिन्न आपदा के माध्यम से उन्हें खोने के जो भी दुनियाँ में उपलब्ध कारण है उन्हें स्वप्न में देखता है।
👉🏻 कारण 3- *पितृदोष*
जिन घरों में पितृ दोष होता है, वहाँ के घर के लोग अक्सर डरावने स्वप्न देखते हैं व विचलित होते हैं।
👉🏻 कारण 4- *वैचारिक प्रदूषण का सेवन*
जो लोग दिन रात टीवी से चिपक के नकारात्मक विचारों का सेवन न्यूज व आपराधिक सीरियल के माध्यम से करते हैं, वह भी डरावने , बेकार व अशुभ स्वप्न के शिकार होते हैं।
👉🏻 कारण 5- *मानसिक दुर्बलता*
मानसिक तौर पर कमज़ोर व्यक्ति स्वप्न में भी जो शरीर धारण कर स्वप्न देखता है वह मानसिक दुर्बलता के कारण पराजित होता है। बुरे स्वप्नों का शिकार होता है।
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👉🏻 ध्यान रखिये, जो आत्मा जितना आत्मबल चैतन्य अवस्था मे रखती है, उतना ही आत्मबल स्वप्न शरीर मे भी रखती है, साथ ही मरने के बाद भी उतना ही आत्मबल उसके प्रेत/पितर शरीर मे भी होता है।
दुर्बल व डरपोक व्यक्ति की यदि हत्या हो तो वह मरकर प्रेत शरीर धारण कर किसी से बदला लेने में अक्षम होता है, यदि वहीं किसी शशक्त आत्मबल से युक्त आत्मा का धोखे से वध कर दो तो वह प्रेत शरीर धारण कर बदला लेने में सक्षम होती है।
अतः अंधेरे से लड़ने के लिए हथियार मात्र दीपक, टॉर्च इत्यादि पर्याप्त हैं। पूर्वजन्म की बुरी स्मृतियों को निरन्तर गायत्री जप से नष्ट कर सकते हो, साथ ही गायत्री मंत्र जप और ध्यान से आत्मबल प्राप्त करके वर्तमान संसार और स्वप्न संसार दोनों जगह विजयी हो सकते हो। सोने से पूर्व स्वाध्याय अवश्य करें, मन के वैचारिक प्रदूषण को स्वाध्याय से दूर करें।
पितृदोष की शांति के लिए अपने बिस्तर पर बैठकर 40 दिन नित्य सुबह या शाम उच्चारण करते हुए श्रीमद्भगवद्गीता के 7 वें अध्याय का पाठ करें, हिंदी या संस्कृत जिसमें भी मन चाहे करें। कमरे की ऊर्जा स्वच्छ करें। 40 दिन तक पानी में साधारण नमक मिलाकर स्नान करें। शाम को सूर्यास्त के बाद घृत का दीपक खुली आँखों से 5 मिनट तक देखें। नित्य बलिवैश्व यज्ञ अवश्य करें। पितृदोष शांत होगा।
आत्मबोध व तत्त्वबोध साधना से मोह बन्धन कटते हैं, योगियों की तरह प्रत्येक रात मृत्यु और प्रत्येक दिन नई ज़िंदगी मानना। 24 घण्टे को साक्षी भाव से जीना। शरीर नश्वर है और आत्मा शाश्वत है, सोने से पूर्व शरीर और शरीर से जुड़े सभी रिश्तों के मोह को त्याग के परमात्मा की शरण मे सोना। योगियों जैसी मुक्त निंद्रा आएगी।
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👉🏻 *छोटा हृद्यान्यास व शरीर को सुरक्षा चक्र में सुरक्षित करने की विधि याद करलें, नित्य सोने से पूर्व या संध्या पूजन के समय कर लें*
हृदय में हाथ रखकर बोलें - *ॐ हृदयाय नमः*
सर पर हाथ से स्पर्श करके बोलें - *ॐ भू: शिरसे स्वाहा*
शिखा का हाथ से स्पर्श करके बोलें - *ॐ भुव: शिखायै वषट्*
अब दाहिने हाथ की उंगलियों से बायां कंधा और बाएं हाथ की उंगलियों से दाहिना कंधा एक साथ स्पर्श करें, एक तरह से दोनो हाथ एक साथ एक दूसरे को क्रॉस करते हुए एक दूसरे कंधे कक एक साथ छुएंगे। बोलिये - *ॐ स्व: कवचाय हुंम्*
अब नेत्र बन्द करके दाहिने हाथ की उंगलियों से दोनों नेत्र के मध्यभाग और मष्तिष्क के मध्य भाग को अपनी तीन उंगलियों से स्पर्श कीजिये, तर्जनी उंगली दाहिनी आंख पर, मध्यमा तिलक के स्थान पर और अनामिका बाएं आंख पर स्पर्श करेगी। बोलिये - *ॐ भूर्भुवः नेत्राभ्याम् वौषट्*
अब अंत में पूरे शरीर को सुरक्षा चक्र में बांधने हेतु अपने दाहिने हाथ से शरीर के बाएं तरफ से पीठ के पीछे से घुमाते हुए दाहिने तरफ से सामने हाथ लाकर निम्नलिखित मन्त्र बोलते बाएं हाथ पर दाहिने हाथ हुए ताली बजा दें।
- *ॐ भूर्भुवः स्व: अस्त्राय फ़ट्*
इतना कर स्वाध्याय करके सो जाइये।
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उपरोक्त उपाय के बाद दुःस्वप्न आएगा नहीं, यदि फिर भी कभी दु:स्वप्न आ जाये, तो उसके फल के नाश के लिए सुबह उठकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ लें:-
पहले गायत्री मंत्र श्रीराम का स्मरण निम्नलिखित मन्त्र से कीजिये:-
*ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात*
*ॐ दशरथाय विद्महे, सीता वल्लभाय धीमहि, तन्नो श्री राम: प्रचोदयात।*
*मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी।*
अब कुक्कुट ब्राह्मण का स्मरण कीजिये -
*लँकाया दक्षिणे कोणे, कुक्कुटो नाम ब्राह्मण:*
*तस्य स्मरण मात्रेण, दु:स्वप्नो सु:स्वप्नो भवति:।।*
शांति मन्त्र
*सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।*
कुक्कुट नाम के ब्राह्मण को भगवान श्रीराम ने तप के बाद आशीर्वाद मांगने को कहा, तो उसने वरदान मांगा, प्रभु यदि कोई मनुष्य दुःस्वन देखकर उठे और मेरा नाम स्मरण कर ले, तो उसका दु:स्वपन नष्ट कर दीजिए। भगवान तथास्तु कहा। तब से सुबह श्रीराम चन्द्र जी के स्मरण के बाद कुक्कुट ब्राह्मण के स्मरण को दु:स्वप्न को सु:स्वप्न में बदलने हेतु किया जाता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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