Sunday, 24 May 2020

प्रश्न- *एक पुस्तक में पढ़ा कि आत्मा पहले पिता चुनती है, वहीं दूसरी पुस्तक में पढ़ा आत्मा पहले मां का चयन करती है, एक पुस्तक में पढ़ा आत्मा का जन्म कर्मफ़ल व प्रारब्ध के आधीन है। कृपया बताएं कि इनमें से क्या सही है।*

प्रश्न- *एक पुस्तक में पढ़ा कि आत्मा पहले पिता चुनती है, वहीं दूसरी पुस्तक में पढ़ा आत्मा पहले मां का चयन करती है, एक पुस्तक में पढ़ा आत्मा का जन्म कर्मफ़ल व प्रारब्ध के आधीन है। कृपया बताएं कि इनमें से क्या सही है।*

उत्तर - आत्मीय बहन, युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव की लिखी तीन पुस्तकों में आपको अपने प्रश्न के उत्तर को विस्तार से समझने में मदद मिलेगी।

1- गहना कर्मणो गति: (कर्मफ़ल का सिद्धांत)
2- पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य
3- मरणोत्तर जीवन

आत्मा कब और कहाँ किस कारण से किस उद्देश्य हेतु जन्म लेगी यह पहले निर्धारित होता है?

जब उद्देश्य क्लियर हो जाता है, तब उस आत्मा के सहयोगी आत्मा का चयन माता-पिता के रूप में होता है।

आत्मा किसी विशेष उद्देश्य के लिए जन्म लेने वाली उच्च कोटि की आत्मा होगी तो परमात्मा उसे माता-पिता के चयन का अधिकार देते हैं। पूर्व जन्मों के ऋणानुबंध के आधार पर या किसी विशेष उद्देश्य को साझा करने के लिए चित परिचित आत्मा का चुनाव माता पिता के रूप में होता है।

आत्मा यदि भोग शरीर में आ रही है व प्रतिशोध को पूरा करने अमुक आत्मा में से आ रही है तो वह रुग्ण शरीर लेकर जन्मेगी व माता-पिता को कष्ट देते हुए अकाल मृत्यु को प्राप्त होगी।

कोई सन्त दिव्यात्मा मुक्ति मार्ग में बाधक कुछ गहन प्रारब्ध कष्टों का शीघ्रता से भोग कर मुक्ति चाहती है। अब उसको किसी से प्रतिशोध नहीं लेना, वह अनुरोध करती है कि वह रुग्ण व अपाहिज़ जन्मेगी तो कोई स्वेच्छा से इस भोग में साथ दे दे। उनके ही शिष्यों में से जो इस हेतु वचन देते हैं या उनके गुरु भाई-बहन जो स्वेच्छा से मदद का वचन देते हैं, कि वह गुरु या मित्र की मदद करेंगे। तब अगले जन्म में जब शिष्य या मित्र जब जन्मता है और विवाह करता है, तब उसका वही दिव्यात्मा सन्त रुग्ण व अपाहिज़ जन्म लेता है। कष्ट भोगते हुए शरीर त्याग कर मोक्ष प्राप्त करता है। सन्त प्रकृति के बहुत ही साधक स्तर के अच्छे लोगों के घर जन्मी अपाहिज़ रूग्ण आत्मा सन्तान के रूप में देखी जा सकती हैं। ऐसे सन्त को जन्म देकर रुग्णता व अपाहिज में सेवा करके वह सन्त माता-पिता भी मोक्ष प्राप्त करते हैं।

आत्मा यदि किसी का ऋण उतारने के लिए आ रही है तो सेवाभावी सन्तान के रूप में जन्म लेगी और ताउम्र सेवा करके ऋण उतारेगी।

जन्म का निर्धारण कई सारे तथ्यों व ऋणानुबंध पर निर्भर करता है, प्रारब्ध व जन्म उद्देश्यों पर निर्भर करता है।

साधारण तौर पर यदि कोई ऋणानुबंध न हों और फ़िर भी माता-पिता गर्भ में मनचाही सन्तान चाहते हों और उन्मुक्त आत्मा को जब गर्भ चुनने का अधिकार हो तब जैसी आत्मा की मनोवृत्ति होती है वह वैसा घर व गर्भ अपनी संस्कारो के वशवर्ती होकर चुनती है।

मधुमक्खी पुष्प पर बैठती है, और मक्खी कचरे पर बैठती है, वैसे ही जैसी आत्मा वैसा गर्भ चुनती है।

हिमालयीन ऋषि स्तर की आत्माएं उस गर्भ का चयन करती है जहाँ नित्य साधना व शुभसँकल्प से जन सेवा हो रही हो। दुष्ट आत्माएं उस गर्भ का चयन करती हैं जहाँ उन्हें उनके मनोनुकूल दुष्ट भाव माता-पिता की मनोवृत्ति में मिले।

कभी कभी किसी साधारण आत्मा को कोई फिल्मी गीत बहुत पसंद था, वह मरणोपरांत नए जन्म हेतु गर्भ चयन का अधिकार मिला तो वह उस गर्भ में प्रवेश कर जाती है जो माता वह गीत सुन रही होती है। गर्भ पहले बनता है, आत्मा बाद में प्रवेश करती है। यह गर्भोपनिषद में वर्णित है। अतः आत्मा  द्वारा चयन किस माता पिता द्वारा तैयार गर्भ में होगा यह उस पर निर्भर करता है।

अब गर्भ का चुम्बकत्व किस प्रकार की आत्मा को प्रवेश हेतु आकर्षित करेगा यह माता-पिता के मनोभाव निर्मित करते है। दिव्य गर्भ का निर्माण साधना से हुआ तो उसमें असुर/निम्न आत्मा प्रवेश नहीं कर पाती।

कभी कभी किसी तैयार गर्भ में प्रवेश को कोई आत्मा नहीं मिलती, तब ऐसी स्थिति में गर्भपात हो जाता है।

कभी कभी कोई आत्मा को कुछ दिनों या महीनों का ही प्रारब्ध भोगना होता है, तो गर्भ में उतने दिनों या महीने व्यतीत कर गर्भ त्याग देती हैं। तब भी गर्भपात हो जाता है।

अतः कोई एक कारण व एक नियम गर्भ में आत्मा के प्रवेश का नहीं तय किया जा सकता। गर्भ में आत्मा के प्रवेश के लिए बहुत सारे नियम व विधिव्यवस्था हैं , इसलिए किसी एक कारण में मत उलझिए। एक नियम को सम्पूर्ण मत मानिए।

अलग अलग लेखक ने जिस कारण को जाना उसे लिख दिया, लेकिन केवल एक रिसर्च को ही पूरा मानना न्याय संगत नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे गुरुग्राम से दिल्ली पहुंचने के कई मार्ग, कई साधन-वाहन इत्यादि है। किसी एक मार्ग को खोजने वाले को ही सम्पूर्ण व एकमात्र मार्ग मान लेना भूल ही कही जाएगी। केवल एक वाहन से ही यात्रा सम्भव है यह भी मानना भूल है।

हम मनचाही सन्तान के लिए उपयुक्त मनःस्थिति, मनोवृत्ति, उपयुक्त साधना और परिस्थिति का निर्माण कर गर्भ का निर्माण कर सकते हैं, जिससे अशुभ आत्मा प्रवेश न कर सके, व अच्छी आत्मा को प्रवेश करने में हिचकिचाहट न हो। बाकी यदि अन्य प्रारब्ध व ऋणानुबंध के कारण कोई आत्मा जन्मे तो भी पूर्ण निष्ठा से उसके उचित लालन पालन की व्यवस्था करना हमारा उत्तरदायित्व है।अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहिये, जो मिले उसे स्विकारिये।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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