Tuesday, 12 May 2020

प्रश्न - *लेखन व संकलन में क्या अंतर है? लेखक किसे कहेंगे और संकलनकर्ता किसे कहेंगे?*

प्रश्न - *लेखन व संकलन में क्या अंतर है? लेखक किसे कहेंगे और संकलनकर्ता किसे कहेंगे?*

उत्तर- आत्मीय भाई,  फूलों में परागकण होते हैं, मधुमक्खी उन कणों से शहद बनाती है अर्थात निर्माण करती हैं। विभिन्न कम्पनी डाबर, वैद्यनाथ, पातंजलि इत्यादि उनके संकलनकर्ता और डिस्ट्रीब्यूटर हैं, अपना नाम उस पर लगा देते हैं।

लेक़िन वस्तुतः लेबल लगा देने से क्या शहद पतंजलि का हो गया या डाबर का हो गया? नहीं न..

इसी तरह लेखन संसार में मौजूद ज्ञान को नवीन तरीक़े से अभिव्यक्त करके, कुछ अन्वेषण करके, कुछ प्रश्नों के समाधान ढूंढकर जप-तप द्वारा उन्हें कलमबद्ध किया जाता है, इसमें वस्तुतः कोई न कोई जानकारी किसी भी क्षेत्र की ज्ञानार्जन-मनोमन्जन हेतु दी जाती है, या मनोविनोद-मनोरंजन हेतु लिखा जाता है ।  लेखक अन्य लोगों की पुस्तकों व कंटेंट का रेफरेंस दे सकता है, लेकिन वह उसके बनाये कथन के समर्थन में होता है।
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*मूल लेखक* कभी कभी वाहवाही पाने के लिए नहीं लिखता, वह लिखता है क्योंकि यह उसकी आत्मा का मूल तत्व उसे प्रतीत होता है। लेखन उसका शौक और जुनून होता है।

*कुछ तपस्वी  व सेवाभावी लेखक* जनकल्याण के लिए कठोर तप करके लेखन को अग्निवत - प्राण ऊर्जा से ओतप्रोत कर देते हैं, मनुष्य जब पढ़ता है तो उसका कल्याण होता चला जाता है। लोगों में दैवीय मनोभूमि विकसित करता है, इंसान मानव से महामानव और देवमानव बनने में जुट पड़ता है। ऐसे साहित्य औषधि की तरह है जिसका नित्य स्वाध्याय अनिवार्य है।

*कुछ पिशाच लेखक* अश्लीलता की सोच को कलमबद्ध करके लोगों में ज़हरीली व घातक सोच का निर्माण कर देते हैं। उनका लेखन इंटेलेक्चुअल आतंकवाद होता है, जो आतंकिमनोभूमि तैयार करता रहता है। ऐसा लेखन शीघ्रातिशीघ्र नष्ट न हुआ तो जन्मजन्मांतर मानव समाज के लिए नुकसानदेह होता है। यह विष समान है। इनके द्वारा लिखे धर्मग्रन्थ भी इनकी कुत्सित भावना के कारण उल्टा ही असर देते हैं।

*कुछ व्यापारी बुद्धि के लेखक* आर्थिक उपार्जन के उद्देश्य से लिखते हैं व धन कमाते हैं।

*कुछ प्रतिष्ठित व समानित होने के लिए लेखक बनते हैं।* इनमें रावण के गुण विकसित हो जाते हैं, ज्ञान तो अपार हो जाता है, लेकिन आचरण में राक्षसी पन आ जाता है। यह अपने ही आराध्य शिव को भी गाली देने में रावण की तरह नहीं चूकते। इनका लेखन पाठक के अंदर की भी इंसानियत को तबाह करता है।

लेखक की मनःस्थिति  पाठक की मनःस्थिति पर असर डालती है। एक ही कथन किसने लिखा यह लेखक के व्यक्तित्व व कृतित्व के अनुसार कम या ज़्यादा असर करता है।

तलवार से बड़ी शक्ति कलम में होती है।

पुस्तक का टाइटल देखकर कभी पुस्तक नहीं खरीदनी चाहिए, पुस्तक के लेखक के बारे में व्यक्तित्व व कृतित्व पता करके ही उसकी पुस्तकों को घर लाना चाहिए। क्योंकि आप केवल पुस्तक घर में नहीं लाते, वस्तुतः आप उस लेखक की सोच व भावनाओं को घर मे व मन में प्रवेश देते हैं।

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*संकलनकर्ता* वह होता है जो कुछ अलग अलग लेखकों की पुस्तक के कंटेंट या किसी एक ही लेखक के विभिन्न पुस्तकों के एक ही विषयवस्तु पर लिखे कंटेंट को संकलित क्रमबद्ध तरीक़े से कर देता है।

*ईमानदार संकलनकर्ता* लेखक नहीं कहलाता, वह अक्सर जो भी पुस्तक पब्लिश करवाता है उसमें समस्त पुस्तक के ओरिजिनल लेखक के नाम व पुस्तक के नाम अवश्य लिखता है, साथ ही स्वयं को संकलनकर्ता ही घोषित करता है।

*बेईमान संकलनकर्ता* स्वयं को लेखक घोषित करता है, कई ओरिजिनल लेखकों के कंटेंट मिक्सिंग करके उनके नाम हटाकर उसे अपने नाम से प्रिंट करवा के लेखक बनने वाहवाही लूटता है। ऐसे लोगों पर इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी चोरी करने पर केस किया जा सकता है। इसमें सजा व आर्थिक दण्ड दोनों मिलता है। अध्यात्म जगत में भी चोरी का पाप लगता है।

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यदि लेखक बनना चाहते हैं तो स्पष्ट व गहन चिंतन अनिवार्य है। विचारों की स्पष्टता के लिए गहन ध्यान, जप, तप व स्वाध्याय जरूरी है।

*लेखक बनो या संकलनकर्ता ईमानदार रहना और जनकल्याण की भावना मन में रखना। क्योंकि तुम्हारे हृदय के भाव ही पाठक को प्रभावित करेंगे, अन्यथा शब्द मृत हो जाएंगे।*

यदि तुम्हारा लेखन किसी को सुकून पहुंचाता है, उसकी जीवन की समस्या सुलझाता तो पुण्य का कर्मफ़ल उतपन्न करेगा।

यदि तुम्हारा लेखन किसी के हृदय में द्वेष उतपन्न करता है, उसे जीवन मे उलझाकर अधर्म करने हेतु प्रेरित करता है तो पाप का कर्मफल उतपन्न करेगा।

किसी के लेखन से किसी की आत्मा को दरिद्र बनती है और उसमें दुर्बुद्धि उतपन्न होती है, तो उसे उतना ही पाप मिलेगा जितना किसी स्वार्थी डाकू का किसी के शरीर की हत्या और जीवन के अंत करने पर पाप लगता है।

इसी तरह किसी के लेखन से किसी की आत्मा को संतुष्ट-समृद्ध, जागृत होती है और उसमें सद्बुद्धि उतपन्न होती है, तो उसे उतना ही  पुण्य मिलेगा जितना किसी सेवाभावी निःश्वार्थ चिकित्सक का किसी के जीवन को बचाने पर पुण्यफ़ल मिलता है।

🙏🏻 *लेखन के साथ जिम्मेदारी आती है, लेखन ईश्वर के अनुसाशन में उसके निमित्त जनकल्याण के लिए लिखा जाता है। स्वयं को प्रतिष्ठित करने के लिए लिखा लेखन पतन का कारण बनता है।*

पूरे जीवन में यदि एक लेख या एक पुस्तक भी किसी की आत्मा को प्रकाशित करता है, तभी लेखन धन्य बनता है।

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जो जनसेवा व जनकल्याण के लिए लेखन करता है, उस लेखक का मन शांत, हृदय प्रफुल्लित, होठों में मुस्कुराहट और चेहरे पर ओज  झलकता है। ऐसे व्यक्ति के समीप बैठकर ज्ञान चर्चा या उससे फ़ोनचर्चा पर समाधान भी आत्मा को तृप्त कर देती है। उसके लेख सीधे हृदय को आह्लादित कर देते हैं, उन्हें पढंकर लगता है जैसे भगवान का सन्देश देने वाला पोस्टमैन यह लेखक है।

जनमानस को बुद्धि का पांडित्य असर नहीं करता, अपितु लिखने वाले या संकलनकर्ता के मनोभाव असर करते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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