*जीवन की पाँच चाहतें*
पँच महाभूतों- पँच तत्त्वों से शरीर बना है, प्रत्येक बच्चे के पास उसकी पांच चाहतें प्रायोरिटी के साथ क्लियर होनी चाहिए, कि वो जीवन में क्या क्या अचीव करना चाहता है।
1- स्वयं के लिए क्या चाहता है?
2- माता पिता के लिए क्या करना चाहता है?
3- समाज के लिए क्या योगदान करना चाहता है?
4- जो भी जीवन में लक्ष्य बनाया है उसके दो हिस्से क्या हैं? उसका कैरियर लक्ष्य क्या है? उसका मनचाहा कैरियर बनने के बाद उसके आगे जीवन लक्ष्य क्या होगा?
5- उसकी आत्मसंतुष्टि व आत्मसमृद्धि के लिए वह क्या करेगा?
यदि उपरोक्त बातें आपके किशोर बच्चों के दिमाग मे क्लियर है, तो उन्हें जीवन पथ पर भटकना नहीं पड़ेगा। सांसारिक लक्ष्य क्लियर होगा तो मार्ग पर आगे बढ़ना आसान होगा।
जो बच्चे जीवन में अध्यात्म और आत्मज्ञान की रौशनी चलेंगे तो जीवन उनका कभी अंधकारमय नहीं हो सकता, वह तत्वदर्शी बनेगे और आत्मा की शिखर यात्रा में पहुंचेगे, उज्जवल भविष्य के स्वयं निर्माता बनेंगे। परमानन्द में स्थित रहेंगे, जीवनलक्ष्य को प्राप्त करेगे, संसार व अध्यात्म दोनों के बीच संतुलन रखेंगे। जीवन जीना क्यों व कैसे यह क्लियर हो जाएगा।
अपने बच्चों से बातें कीजिये, उनसे उपरोक्त पाँच चाहतें पेपर में लिखकर देने को कहिए, दिनांक व उनके हस्ताक्षर लेने को बोलिये। फिर उस पेपर को उनके ही कमरे में कहीं ऐसी जगह लगाइए जिनपर उनकी और आपकी नजर पड़ती रहे।
उनसे बात करके पूँछिये यह जो आपकी पाँच चाहत है, इसके मार्ग में आने वाले पाँच भटकाव व बाधाएं कौन कौन सी हो सकती हैं? उन बाधाओं को दूर करने के लिए व अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आप कौन कौन सी रणनीति अपनाएंगे।
स्कूल में अध्यापक भी यह पांच चाहतों और उनके मार्ग की संभावित बाधा और उनके निराकरण में बच्चे क्या सोचते हैं सम्बन्धी प्रश्न रख सकते हैं।
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, यह कथन उन्हें हृदयग्राह्य नहीं करवाएंगे तो उनका समाधान केंद्रित दृष्टिकोण कैसे विकसित होगा? वह लक्ष्य बनाते समय सम्भावित खतरों और उनके निवारण की पूर्व योजना नहीं बनाएंगे तो डिप्रेशन का शिकार तो होंगे ही? बच्चे या तो समाधान ढूंढने हेतु *चिन्तन* करेंगे या समस्या गिनने में *चिंता(स्ट्रेस)* लेंगे, यह तो माता-पिता व अध्यापक की टीम ही तय करेगी कि कैसा बच्चा गढ़ रहे हैं....
🙏🏻श्वेता, DIYA
पँच महाभूतों- पँच तत्त्वों से शरीर बना है, प्रत्येक बच्चे के पास उसकी पांच चाहतें प्रायोरिटी के साथ क्लियर होनी चाहिए, कि वो जीवन में क्या क्या अचीव करना चाहता है।
1- स्वयं के लिए क्या चाहता है?
2- माता पिता के लिए क्या करना चाहता है?
3- समाज के लिए क्या योगदान करना चाहता है?
4- जो भी जीवन में लक्ष्य बनाया है उसके दो हिस्से क्या हैं? उसका कैरियर लक्ष्य क्या है? उसका मनचाहा कैरियर बनने के बाद उसके आगे जीवन लक्ष्य क्या होगा?
5- उसकी आत्मसंतुष्टि व आत्मसमृद्धि के लिए वह क्या करेगा?
यदि उपरोक्त बातें आपके किशोर बच्चों के दिमाग मे क्लियर है, तो उन्हें जीवन पथ पर भटकना नहीं पड़ेगा। सांसारिक लक्ष्य क्लियर होगा तो मार्ग पर आगे बढ़ना आसान होगा।
जो बच्चे जीवन में अध्यात्म और आत्मज्ञान की रौशनी चलेंगे तो जीवन उनका कभी अंधकारमय नहीं हो सकता, वह तत्वदर्शी बनेगे और आत्मा की शिखर यात्रा में पहुंचेगे, उज्जवल भविष्य के स्वयं निर्माता बनेंगे। परमानन्द में स्थित रहेंगे, जीवनलक्ष्य को प्राप्त करेगे, संसार व अध्यात्म दोनों के बीच संतुलन रखेंगे। जीवन जीना क्यों व कैसे यह क्लियर हो जाएगा।
अपने बच्चों से बातें कीजिये, उनसे उपरोक्त पाँच चाहतें पेपर में लिखकर देने को कहिए, दिनांक व उनके हस्ताक्षर लेने को बोलिये। फिर उस पेपर को उनके ही कमरे में कहीं ऐसी जगह लगाइए जिनपर उनकी और आपकी नजर पड़ती रहे।
उनसे बात करके पूँछिये यह जो आपकी पाँच चाहत है, इसके मार्ग में आने वाले पाँच भटकाव व बाधाएं कौन कौन सी हो सकती हैं? उन बाधाओं को दूर करने के लिए व अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आप कौन कौन सी रणनीति अपनाएंगे।
स्कूल में अध्यापक भी यह पांच चाहतों और उनके मार्ग की संभावित बाधा और उनके निराकरण में बच्चे क्या सोचते हैं सम्बन्धी प्रश्न रख सकते हैं।
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, यह कथन उन्हें हृदयग्राह्य नहीं करवाएंगे तो उनका समाधान केंद्रित दृष्टिकोण कैसे विकसित होगा? वह लक्ष्य बनाते समय सम्भावित खतरों और उनके निवारण की पूर्व योजना नहीं बनाएंगे तो डिप्रेशन का शिकार तो होंगे ही? बच्चे या तो समाधान ढूंढने हेतु *चिन्तन* करेंगे या समस्या गिनने में *चिंता(स्ट्रेस)* लेंगे, यह तो माता-पिता व अध्यापक की टीम ही तय करेगी कि कैसा बच्चा गढ़ रहे हैं....
🙏🏻श्वेता, DIYA
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