Thursday, 14 May 2020

सत्य दुष्पाच्य होता है। वह सीधा नहीं पचता

*सत्य दुष्पाच्य होता है। वह सीधा नहीं पचता*

एक बड़बोला और उतावला व्यक्ति अपने गुरु के पास गया और बोला, गुरुदेव, दु:ख से छूटने का कोई शॉर्टकट उपाय बताइए। शिष्य ने थोड़े शब्दों में बहुत बड़ा प्रश्न किया था। दु:खों की दुनिया में जीना लेकिन उसी से मुक्ति का उपाय भी ढूंढना! बहुत मुश्किल प्रश्न था।

गुरु ने मुस्कुराते हुए धैर्य पूर्वक कहा, एक काम करो, जो आदमी सबसे सुखी है, उसके पहने हुए जूते लेकर आओ। फिर मैं तुझे दु:ख से छूटने का उपाय बता दूंगा। जो जूते तुम लाओगे मैं योगविद्या से उसके डुप्लीकेट बना दूँगा, तुम उसे पहन लोगे तो तुम उसी के समान सुखी हो जाओगे। ध्यान रखना जिसके भी जूते लाना बस उसके मन में कोई दुःख का कारण, दुःख का कोई एक कण व दुःख का भाव नहीं होना चाहिए।

शिष्य चला गया। एक घर में जाकर पूछा, भाई, तुम तो बहुत सुखी लगते हो। अपने जूते सिर्फ आज के लिए मुझे दे दो।

उसने कहा, कमाल करते हो भाई! मेरा पड़ोसी इतना बदमाश है कि क्या कहूं? ऐसी स्थिति में मैं सुखी कैसे रह सकता हूं? मैं तो बहुत दु:खी इंसान हूं।

वह दूसरे घर गया। दूसरा बोला, अब क्या कहूं भाई? सुख की तो बात ही मत करो। मैं तो पत्नी की वजह से बहुत परेशान हूं। ऐसी जिंदगी बिताने से तो अच्छा है कि कहीं जाकर साधु बन जाऊं। सुखी आदमी देखना चाहते हो तो किसी और घर जाओ।

वह तीसरे घर गया, चौथे घर गया। किसी की पत्नी के पास गया तो वह पति को क्रूर बताती, पति के पास गया तो वह पत्नी को दोषी कहता। पिता के पास गया तो वह पुत्र को बदमाश बताता। पुत्र के पास गया तो पिता की वजह से खुद को दु:खी बताता। सैकड़ों-हजारों घरों के चक्कर लगा आया।

बड़ी हिम्मत करके नगर के ऐश्वर्य शाली सेठ के पास पहुंचा, नगर सेठ निःसन्तान होने के कारण दुःखी था।

फ़िर वह बड़ी हिम्मत करके राजा के पास पहुंचा, राजा पड़ोसी राज्य के आक्रमण और अपने राज्य के और अधिक विस्तार के लिए दुःखी था।

सुखी आदमी के जूते मिलना तो दूर खुद के ही जूते घिस गए।

खाली हाथ गुरु के पास निराश होकर लौटा और बताया कोई सुखी व्यक्ति उसे अपने राज्य में नहीं मिला।

गुरु ने पूछा, लोग क्यों दु:खी हैं? उन्हें किस बात का दुख है?

उसने कहा, किसी का पड़ोसी खराब है। कोई पत्नी से परेशान, कोई पति से दुखी तो कोई पुत्र से परेशान है। आज हर आदमी दूसरे आदमी के कारण दु:ख भोग रहा है। राजा से लेकर प्रजा तक सब किसी न किसी दुःख से पीड़ित थे।

तब गुरु ने उसे प्यार से समझाया, *सुख का सूत्र है - दूसरे की ओर नहीं, बल्कि अपनी ओर देखो। खुद में झांको। खुद की काबिलियत पर गौर करो। प्रतिस्पर्द्धा करनी है तो खुद से करो, दूसरों से नहीं। जीवन तुम्हारी यात्रा है। दूसरों को देखकर अपने रास्ते मत बदलो। खुद को सुनो, खुद को देखो। यही सुख का सूत्र है।*

शिष्य बोला, महाराज, बात तो आपकी सत्य है लेकिन यही आप मुझे सुबह भी बता सकते थे। फिर इतनी परिक्रमा क्यों करवाई?

*सदगुरु ने कहा, वत्स, सत्य दुष्पाच्य होता है। वह सीधा नहीं पचता। अगर यह बात मैं सुबह बता देता तो तू हर्गिज नहीं मानता। जब स्वयं अनुभव कर लिया, सबकी परिक्रमा कर ली, सबके चक्कर लगा लिए, तो बात समझ में आ गई। अब ये बात तुम पूरे जीवन में नहीं भूलोगे।*

Reference - patrika.com, guru-shishya-story-change-your-life-899819

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