प्रश्न - *श्वेता, आज सुबह सुबह मेरे पैर से कुचलकर मर गया, मेरा मन उसे देख दुःखी हो गया। स्मरण हो आया कि गृहस्थ न जाने कितने जीवों की हत्या जैसे कॉकरोच, मच्छर, चूहे, छिपकली, सर्प इत्यादि की करता है। जीव हत्या पाप है तो क्या प्रत्येक गृहस्थ को इसका प्रारब्ध भुगतना पड़ेगा?*
उत्तर - आत्मीय भाई,
ईश्वर की प्रकृति में कर्मफ़ल की गहनता व कर्मफ़ल का निर्धारण कर्म(Action) पर नहीं अपितु कर्म को करने के पीछे आपकी भावना-विचारणा-उद्देश्य(Intention) क्या था उस पर निर्भर करता है।
यदि कोई आत्मरक्षा-जीवनरक्षा में या अंजाने में भूलवश किसी जीव का वध करता है तो वह कर्मफ़ल की गहनता अत्यंत कम होगी, लेकिन यदि स्वार्थसिद्धि व जिह्वा के स्वाद हेतु जानबूझकर कर जीव की हत्या करता है तो कर्मफ़ल की गहनता अधिक होगी।
किसान फसलों में कीटनाशक डालकर न जाने कितने जीवों की हत्या करता है, इन जीवों की उपस्थिति में अनाज प्राप्ति सम्भव न होगी। गृहस्थ मनुष्य सर्प, चूहे, कॉकरोच, मच्छर इत्यादि इन जीवों की हत्या करता है। इन जीवों की उपस्थिति से वह जीवन निर्वहन नहीं कर सकेगा। इसलिए जीवन रक्षा हेतु इनकी हत्या कर्म की गहनता नहीं उतपन्न करता।
यदि सर्पों को केवल इसलिए मारना कि उनके मांस को खाना, उनकी स्किन से बेल्ट बनाना इत्यादि ऐसे उद्देश्य हैं जो कर्म की गहनता को बढाएंगे। यहां प्रश्न जीवन रक्षण नहीं है, यहां तो ख्वाइशें व स्वार्थ सिद्धि उद्देश्य है।
इसी कर्म विधान को भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में समझाया है, कि युद्ध में हत्या के पीछे का उद्देश्य उसके कर्मफ़ल का निर्धारण करेगा। कर्म करने के पीछे उद्देश्य-भावना क्या है? धर्म स्थापना या स्वार्थसिद्धि? फल उसी अनुसार मिलेगा।
जब भी आध्यात्मिक गृहस्थ से कोई अनजाने में जीव हत्या हो या हानिकारक जीवों की हत्या उसे मजबूरी में करनी पड़े तो 3 माला गायत्री मंत्र और 24 महामृत्युंजय मंत्र उस जीव की आत्मा की मुक्ति हेतु अवश्य कर दें। दैनिक यज्ञ में निम्नलिखित मन्त्र की तीन आहुति दे दीजिए:-
*शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवत्वर्यमा।*
*शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरुरुक्रमः॥ ऋग्वेद १-९०-९।*
स्वाहा इदम् दिंवगतात्मानाम् शानत्यर्थम इदम् न मम्
प्रार्थना करें, हे प्रभु! मनुष्य जीवन की रक्षा हेतु यह जीव हत्या मजबूरी में करनी पड़ी। हे परमात्मा! इस जीव की आत्मा को शांति देना, मुक्ति देना, तृप्ति देना।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई,
ईश्वर की प्रकृति में कर्मफ़ल की गहनता व कर्मफ़ल का निर्धारण कर्म(Action) पर नहीं अपितु कर्म को करने के पीछे आपकी भावना-विचारणा-उद्देश्य(Intention) क्या था उस पर निर्भर करता है।
यदि कोई आत्मरक्षा-जीवनरक्षा में या अंजाने में भूलवश किसी जीव का वध करता है तो वह कर्मफ़ल की गहनता अत्यंत कम होगी, लेकिन यदि स्वार्थसिद्धि व जिह्वा के स्वाद हेतु जानबूझकर कर जीव की हत्या करता है तो कर्मफ़ल की गहनता अधिक होगी।
किसान फसलों में कीटनाशक डालकर न जाने कितने जीवों की हत्या करता है, इन जीवों की उपस्थिति में अनाज प्राप्ति सम्भव न होगी। गृहस्थ मनुष्य सर्प, चूहे, कॉकरोच, मच्छर इत्यादि इन जीवों की हत्या करता है। इन जीवों की उपस्थिति से वह जीवन निर्वहन नहीं कर सकेगा। इसलिए जीवन रक्षा हेतु इनकी हत्या कर्म की गहनता नहीं उतपन्न करता।
यदि सर्पों को केवल इसलिए मारना कि उनके मांस को खाना, उनकी स्किन से बेल्ट बनाना इत्यादि ऐसे उद्देश्य हैं जो कर्म की गहनता को बढाएंगे। यहां प्रश्न जीवन रक्षण नहीं है, यहां तो ख्वाइशें व स्वार्थ सिद्धि उद्देश्य है।
इसी कर्म विधान को भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में समझाया है, कि युद्ध में हत्या के पीछे का उद्देश्य उसके कर्मफ़ल का निर्धारण करेगा। कर्म करने के पीछे उद्देश्य-भावना क्या है? धर्म स्थापना या स्वार्थसिद्धि? फल उसी अनुसार मिलेगा।
जब भी आध्यात्मिक गृहस्थ से कोई अनजाने में जीव हत्या हो या हानिकारक जीवों की हत्या उसे मजबूरी में करनी पड़े तो 3 माला गायत्री मंत्र और 24 महामृत्युंजय मंत्र उस जीव की आत्मा की मुक्ति हेतु अवश्य कर दें। दैनिक यज्ञ में निम्नलिखित मन्त्र की तीन आहुति दे दीजिए:-
*शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवत्वर्यमा।*
*शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरुरुक्रमः॥ ऋग्वेद १-९०-९।*
स्वाहा इदम् दिंवगतात्मानाम् शानत्यर्थम इदम् न मम्
प्रार्थना करें, हे प्रभु! मनुष्य जीवन की रक्षा हेतु यह जीव हत्या मजबूरी में करनी पड़ी। हे परमात्मा! इस जीव की आत्मा को शांति देना, मुक्ति देना, तृप्ति देना।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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