प्रश्न - *दीदी, यदि हमें भारतीय दर्शन साहित्य को जानना है तो कौन सी पुस्तकों का स्वाध्याय करना चाहिए?*
उत्तर- आत्मीय भाई,
पाणिनीय व्याकरण के अनुसार 'दर्शन' शब्द, 'दृशिर् प्रेक्षणे' धातु से ल्युट् प्रत्यय करने से निष्पन्न होता है। अतएव दर्शन शब्द का अर्थ दृष्टि या देखना, ‘जिसके द्वारा देखा जाय’ या ‘जिसमें देखा जाय’ होगा। दर्शन शब्द का शब्दार्थ केवल देखना या सामान्य देखना ही नहीं है। इसीलिए पाणिनि ने धात्वर्थ में ‘प्रेक्षण’ शब्द का प्रयोग किया है। प्रकृष्ट ईक्षण, जिसमें अन्तश्चक्षुओं द्वारा देखना या मनन करके सोपपत्तिक निष्कर्ष निकालना या अनूभूति जन्य ही दर्शन का अभिधेय है। इस प्रकार के प्रकृष्ट ईक्षण के साधन और फल दोनों का नाम दर्शन है। जहाँ पर इन सिद्धान्तों का संकलन हो, उन ग्रन्थों का भी नाम दर्शन ही होगा, *जैसे-न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, मीमांसा दर्शन, वेदांत दर्शन आदि-आदि।*
*"संस्कृति" का अर्थ है वह कृति- कार्य पद्धति जो संस्कार संपन्न हो*।। व्यक्ति की उच्छृंखल मनोवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित कर कैसे उसे संस्कारी बनाया जाय यह सारा अधिकार क्षेत्र संस्कृति के मूर्धन्यों का है एवं इसी क्षेत्र पर हमारे ऋषिगणों ने सर्वाधिक ध्यान दिया है ।।
भारतीय संस्कृति का दर्शन हमारी मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कही जा सकती है ।। इसी की परिधि में सारे विश्वराष्ट्र के विकास के- वसुधैव कुटुम्बकम् के सारे सूत्र आ जाते हैं ।। हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवी चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है ।। मनुष्य में पशुता के संस्कार उभरने न पायें, यह इसका एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है ।। भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है और मनुष्य में संत, सुधारक, शहीद की मनोभूमि विकसित कर उसे मनीषी, ऋषि, महामानव, देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है ।। सदा से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है ।।
भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं- नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता- शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार- व राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस- मन्यु, पितरों की तृप्ति हेतु तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु स्थान- स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार तथा अवतारवाद का हेतु समझते हुए तदनुसार अपनी भूमिका निर्धारण सभी पक्षों का बड़ा ही तथ्य सम्मत- तर्क विवेचन पूज्यवर ने इसमें प्रस्तुत किया है ।।
*दर्शन वह ज्ञान है जो परम् सत्य और सिद्धांतों, और उनके कारणों की विवेचना करता है*। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शन स्वत्व, तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है। दर्शन सामाजिक चेतना के रूपों में से एक है।
दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है।
*वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन (छः दर्शन) अधिक प्रसिद्ध और प्राचीन हैं।*
*वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन अधिक प्रसिद्ध हैं।* ये सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त के नाम से विदित है। इनकी पुस्तक वैदिक साहित्य में उपलब्ध हैं। इनके प्रणेता कपिल, पतंजलि, गौतम, कणाद, जैमिनि और बादरायण थे। इनके आरंभिक संकेत उपनिषदों में भी मिलते हैं। प्रत्येक दर्शन का आधारग्रंथ एक दर्शनसूत्र है। "सूत्र" भारतीय दर्शन की एक अद्भुत शैली है। गिने-चुने शब्दों में सिद्धांत के सार का संकेत सूत्रों में रहता है।
*श्रीमद्भागवत गीता में इन्हीं दर्शनों को संक्षिप्त रूप में वर्णित किया गया है।*
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- आत्मीय भाई,
पाणिनीय व्याकरण के अनुसार 'दर्शन' शब्द, 'दृशिर् प्रेक्षणे' धातु से ल्युट् प्रत्यय करने से निष्पन्न होता है। अतएव दर्शन शब्द का अर्थ दृष्टि या देखना, ‘जिसके द्वारा देखा जाय’ या ‘जिसमें देखा जाय’ होगा। दर्शन शब्द का शब्दार्थ केवल देखना या सामान्य देखना ही नहीं है। इसीलिए पाणिनि ने धात्वर्थ में ‘प्रेक्षण’ शब्द का प्रयोग किया है। प्रकृष्ट ईक्षण, जिसमें अन्तश्चक्षुओं द्वारा देखना या मनन करके सोपपत्तिक निष्कर्ष निकालना या अनूभूति जन्य ही दर्शन का अभिधेय है। इस प्रकार के प्रकृष्ट ईक्षण के साधन और फल दोनों का नाम दर्शन है। जहाँ पर इन सिद्धान्तों का संकलन हो, उन ग्रन्थों का भी नाम दर्शन ही होगा, *जैसे-न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, मीमांसा दर्शन, वेदांत दर्शन आदि-आदि।*
*"संस्कृति" का अर्थ है वह कृति- कार्य पद्धति जो संस्कार संपन्न हो*।। व्यक्ति की उच्छृंखल मनोवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित कर कैसे उसे संस्कारी बनाया जाय यह सारा अधिकार क्षेत्र संस्कृति के मूर्धन्यों का है एवं इसी क्षेत्र पर हमारे ऋषिगणों ने सर्वाधिक ध्यान दिया है ।।
भारतीय संस्कृति का दर्शन हमारी मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कही जा सकती है ।। इसी की परिधि में सारे विश्वराष्ट्र के विकास के- वसुधैव कुटुम्बकम् के सारे सूत्र आ जाते हैं ।। हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवी चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है ।। मनुष्य में पशुता के संस्कार उभरने न पायें, यह इसका एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है ।। भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है और मनुष्य में संत, सुधारक, शहीद की मनोभूमि विकसित कर उसे मनीषी, ऋषि, महामानव, देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है ।। सदा से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है ।।
भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं- नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता- शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार- व राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस- मन्यु, पितरों की तृप्ति हेतु तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु स्थान- स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार तथा अवतारवाद का हेतु समझते हुए तदनुसार अपनी भूमिका निर्धारण सभी पक्षों का बड़ा ही तथ्य सम्मत- तर्क विवेचन पूज्यवर ने इसमें प्रस्तुत किया है ।।
*दर्शन वह ज्ञान है जो परम् सत्य और सिद्धांतों, और उनके कारणों की विवेचना करता है*। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शन स्वत्व, तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है। दर्शन सामाजिक चेतना के रूपों में से एक है।
दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है।
*वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन (छः दर्शन) अधिक प्रसिद्ध और प्राचीन हैं।*
*वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन अधिक प्रसिद्ध हैं।* ये सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त के नाम से विदित है। इनकी पुस्तक वैदिक साहित्य में उपलब्ध हैं। इनके प्रणेता कपिल, पतंजलि, गौतम, कणाद, जैमिनि और बादरायण थे। इनके आरंभिक संकेत उपनिषदों में भी मिलते हैं। प्रत्येक दर्शन का आधारग्रंथ एक दर्शनसूत्र है। "सूत्र" भारतीय दर्शन की एक अद्भुत शैली है। गिने-चुने शब्दों में सिद्धांत के सार का संकेत सूत्रों में रहता है।
*श्रीमद्भागवत गीता में इन्हीं दर्शनों को संक्षिप्त रूप में वर्णित किया गया है।*
🙏🏻श्वेता, DIYA
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