*उसमें विलीन होकर, उसे पाया जा सकता है।*
सरसों में तेल है,
चकमक पत्थर में आग है,
बिना प्रयास के,
बिना अस्तित्व के मिटे,
न सरसों से तेल निकलेगा,
न चकमक से आग निकलेगा।
लकड़ी में आग है,
लेकिन लकड़ी आग नहीं,
जन जन में भगवान है,
लेकिन प्रत्येक जन भगवान नहीं,
प्रत्येक बूँद सागर से उपजी,
मग़र प्रत्येक बूँद सागर नहीं।
लकड़ी को जलना होगा,
आग को आग से मिलना होगा,
जन जन को तपना होगा,
आत्मा से परमात्मा को मिलना होगा,
बूँद को सागर में विलीन होना होगा,
स्वयं के अस्तित्व को खोकर ही उसे पाना होगा।
जब मैं मिटेगा,
तब ही वह शेष बचेगा,
स्वयं के अस्तित्व में,
तब ही वह उभरेगा,
ख़ुद में उसको पाना होगा,
उसे बाहर नहीं भीतर ही जानना होगा।
ध्यान जब कुछ पाने के लिए नहीं,
उसमें खोने के लिए करेंगे,
जब ध्यान में समय का पता न रहेगा,
संसार का आभास न रहेगा,
तब ही स्वयं में वह मिलेगा,
तब ही वह अनुभूत होगा,
क्योंकि जब मैं मिटेगा,
तब ही वह शेष बचेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
सरसों में तेल है,
चकमक पत्थर में आग है,
बिना प्रयास के,
बिना अस्तित्व के मिटे,
न सरसों से तेल निकलेगा,
न चकमक से आग निकलेगा।
लकड़ी में आग है,
लेकिन लकड़ी आग नहीं,
जन जन में भगवान है,
लेकिन प्रत्येक जन भगवान नहीं,
प्रत्येक बूँद सागर से उपजी,
मग़र प्रत्येक बूँद सागर नहीं।
लकड़ी को जलना होगा,
आग को आग से मिलना होगा,
जन जन को तपना होगा,
आत्मा से परमात्मा को मिलना होगा,
बूँद को सागर में विलीन होना होगा,
स्वयं के अस्तित्व को खोकर ही उसे पाना होगा।
जब मैं मिटेगा,
तब ही वह शेष बचेगा,
स्वयं के अस्तित्व में,
तब ही वह उभरेगा,
ख़ुद में उसको पाना होगा,
उसे बाहर नहीं भीतर ही जानना होगा।
ध्यान जब कुछ पाने के लिए नहीं,
उसमें खोने के लिए करेंगे,
जब ध्यान में समय का पता न रहेगा,
संसार का आभास न रहेगा,
तब ही स्वयं में वह मिलेगा,
तब ही वह अनुभूत होगा,
क्योंकि जब मैं मिटेगा,
तब ही वह शेष बचेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment