*॥जब भगवान श्रीकृष्ण पर दुश्मनों द्वारा लगाया कलंक का टीका ( स्यमन्तक मणि कथा ) ॥*
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सत्राजित नामक यादव को भगवान सूर्य ने उसकी कठिन तपस्या से प्रशन्न होकर "🧊स्यमन्तक मणि" दे रखी थी, *" , सत्राजित की वह मणि प्रतिदिन आठ भार सवर्ण स्वतः प्रदान करती थी, उसकी सुरक्षा हेतु वह नित्य चिंतित रहता था । एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेन उस मणि को अपने कण्ठ में बाँधकर अश्व पर आरूढ़ ही शिकार खेलने के लिये वन में विचरने लगा । वहाँ एक सिंह ने प्रसेन को मार डाला । फिर उस उस सिंहको भी जाम्बवान ने मार डाला और तत्काल उस मणि को लेकर जाम्बवान अपनी गुफा में चले गये । सत्राजित श्रीकृष्ण से वैर भाव रखते थे, उन्होंने लोगों के बीच में यह प्रचार करने लगे कि 'मेरा भाई प्रसेन मणि को कण्ठ में धारण करके वन में गया था , परन्तु श्रीकृष्ण ने वहाँ मणि की लालच में उसका वध कर दिया ; इसलिये आज वह सभा भवन में नहीँ आया '। " *भगवान श्रीकृष्ण पर यह कलंक का टीका लग गया* " ।
भगवान श्रीकृष्ण कुछ द्वारका वासियो को लेकर वन में गये । वहाँ उन्होंने पहले घोड़े सहित मरे हुये प्रसेन को देखा और फिर किसी दुसरेके द्वारा मारे गये सिंह के शव को पड़ा देखा । यह देखकर पदचिन्हों से पता लगाते हुए वे *' ऋक्षराज जाम्बवान की गुफा तक जा पहुँचे । वह उस गुफामें प्रवेश कर गये, जहाँ उन्होंने अठाइस दिनों तक उस मणि को लाने के लिये जाम्बवान से युद्ध किया, ( रामावतार में भगवान श्रीरामजी ने जाम्बवान को कहा था,, किसी वजह से मेरा औऱ तुम्हारा युद्ध होगा ) तथा आखिर अठाइस दिन पश्चात ऋक्षराज पर विजय पायीं । " जाम्बवान ने अपनी कन्या ' जाम्बवन्ती ' को उस स्यमन्तक मणि के साथ श्रीहरि ( श्रीकृष्ण ) को विवाह कर दिया । जिसे लेकर भगवान श्रीकृष्ण द्वारका लौट आये । '*
भगवान श्रीकृष्ण ने सभा मे सत्राजित को वह मणि देदी । स्त्राजीत को अपने कृत्यपर बड़ी लज्जा आयी, और वह मुँह नीचे किये भयभीत से रहने लगे । उन्होंने आत्मग्लानि और यादव परिवार में शान्ति रखने के लिये, *" अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया और उस समयन्तक मणि को भी भगवान श्रीकृष्णको कन्यादान स्वरूप भगवान को अर्पित कर दिया । "*
जब कलंक लगाने वाले व दोषारोपण करने वाले मनगढ़ंत आरोप लगा सकते हैं, उन्हें मात्र दो दिन लगते हैं। लेकिन सत्यान्वेषण और सत्य को बाहर लाने में अधिक वक़्त लगता है। आग लगाने के लिए एक तीली काफी है, आग बुझाने में वक़्त लगता है।
भगवान श्रीकृष्ण कुछ द्वारका वासियो को लेकर वन में गये । वहाँ उन्होंने पहले घोड़े सहित मरे हुये प्रसेन को देखा और फिर किसी दुसरेके द्वारा मारे गये सिंह के शव को पड़ा देखा । यह देखकर पदचिन्हों से पता लगाते हुए वे *' ऋक्षराज जाम्बवान की गुफा तक जा पहुँचे । वह उस गुफामें प्रवेश कर गये, जहाँ उन्होंने अठाइस दिनों तक उस मणि को लाने के लिये जाम्बवान से युद्ध किया, ( रामावतार में भगवान श्रीरामजी ने जाम्बवान को कहा था,, किसी वजह से मेरा औऱ तुम्हारा युद्ध होगा ) तथा आखिर अठाइस दिन पश्चात ऋक्षराज पर विजय पायीं । " जाम्बवान ने अपनी कन्या ' जाम्बवन्ती ' को उस स्यमन्तक मणि के साथ श्रीहरि ( श्रीकृष्ण ) को विवाह कर दिया । जिसे लेकर भगवान श्रीकृष्ण द्वारका लौट आये । '*
भगवान श्रीकृष्ण ने सभा मे सत्राजित को वह मणि देदी । स्त्राजीत को अपने कृत्यपर बड़ी लज्जा आयी, और वह मुँह नीचे किये भयभीत से रहने लगे । उन्होंने आत्मग्लानि और यादव परिवार में शान्ति रखने के लिये, *" अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया और उस समयन्तक मणि को भी भगवान श्रीकृष्णको कन्यादान स्वरूप भगवान को अर्पित कर दिया । "*
जब कलंक लगाने वाले व दोषारोपण करने वाले मनगढ़ंत आरोप लगा सकते हैं, उन्हें मात्र दो दिन लगते हैं। लेकिन सत्यान्वेषण और सत्य को बाहर लाने में अधिक वक़्त लगता है। आग लगाने के लिए एक तीली काफी है, आग बुझाने में वक़्त लगता है।
तब भी कुछ द्वारिकावासियों ने भगवान श्रीकृष्ण को संदेह की दृष्टि से देखा था, और बहुत से द्वारिकावासियों और भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया था। वर्तमान में भी हृदय की सुनना चाहिए, अफवाहों को नकार देना चाहिए। सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। सत्यान्वेषण में वक्त लगता है। धैर्य पूर्वक श्रद्धा व विश्वास बनाये रखने की आवश्यकता होती है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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