Tuesday, 19 May 2020

चैन की नींद का राज़

*चैन की नींद का राज़*
💫✨💫✨💫✨💫

कब तक चिन्ता का कबाड़ लेकर,
सोने का व्यर्थ प्रयास करोगे,
कब तक कूड़े व मरे चूहों के दुर्गंध पर,
सेंट छिड़कर दुर्गंध से बचने की राह ढूँढोगे?

कब तक मन की खिड़की बन्द करके रखोगे,
कब तक मन में,
चिंता कर मकड़ियों के जालों को बुनने दोगे,
कब तक मन को कूड़ाघर बनाओगे,
औऱ फ़िर मन में शांति ढूंढने का व्यर्थ प्रयास करोगे...

परिस्थिति को नियंत्रण करने में,
मनमुताबिक रिश्तों के भविष्य चुनने में,
उम्र भर भी जुटे रहोगे,
तब भी यह कर न सकोगे।

परिस्थिति तो सबके लिए एक सी होती है,
लेकिन अंतर तो मनःस्थिति में होता है,
कोई उन परिस्थितियों में टूट कर बिखर जाता है,
कोई उन्हीं परिस्थितियों में कुछ बनकर संवर जाता है।

कभी तो मन की सफ़ाई कर लो,
कभी तो कूड़ो को बाहर फेंक दो,
कभी तो सद्विचारों के दिये से मन रौशन कर लो,
कभी तो भक्ति भाव की सुगंध भर लो।

परिस्थिति को नियंत्रण करने की जगह,
मनःस्थिति को सम्हालने में जुट जाओ,
दूसरों को सुधारने की जगह,
उन्हें हैंडल करने के तरीकों पर नज़र दौड़ाओ।

जीवनसाथी या जीवनसंगिनी,
जो जैसा है वैसा स्वीकारो,
उन्हें बदलने की व्यर्थ चेष्टा न करो,
ससुराल वाले या ऑफिस वाले,
जो जैसा हैं वैसा स्वीकारो,
बस उनके साथ एडजस्ट करो।

सोचो यह ज़िंदगी का सफ़र है,
यह शरीर गाड़ी है,
और मन ड्राईवर है,
अब रोड सुंदर है,
 तो ईश्वर को धन्यवाद दो,
और गाड़ी चलाने का हुनर मांगो,
अगर रोड गड्ढ़े भरी हो,
तो भी ईश्वर को धन्यवाद दो,
और उनसे गाड़ी चलाने का हुनर मांगो,
हर हाल में ज़िंदगी के सफ़र में,
गाते गुनगुनाते रहो,
रोड के गड्ढों को रोड में रहने दो,
उन्हें मन के भीतर मत लाओ,
मंज़िल पर पहुंचने के लिए,
बस अनवरत चलते जाओ।

अब जंगल में जाकर,
तपस्या करने की जरूरत नहीं,
जंगली खूँखार प्रकृति के लोगों से,
यह दुनियाँ भर गई है,
इनके बीच ही ध्यानस्थ रहो,
जंगल में मङ्गल प्रभु स्मरण से करो।

कलियुग है - यह कलह युग है,
कलह झगड़ो और मन मुटावो का युग है,
तुम इनमें मत उलझो,
इन्हें बाहर रहने दो,
इन्हें मन के भीतर मत लाओ,
कौवे से कोयल की मधुर बोली न मिलेगी,
कौवे की कांव काव भी निर्लिप्त सुनो,
कोयल की मधुर आवाज़ का भी निर्लिप्त हो सुनो,
रिश्तेदार में कौवा मिले या कोयल,
दोनों में समभाव रखो,
उनकी कटुता हो या मधुरता,
दोनों से स्वयं को मुक्त रखो।

मन में तुम सतयुग लाओ,
मन:स्थिति सतयुगी बनाओ,
यह कलियुग - कलह युग,
तुम्हारा कुछ बिगाड़ न सकेगा,
कीचड़ में खिले क़मल की तरह,
तुम्हारा व्यक्तित्व निखरेगा,
ईश्वर जिसे गाड़ी चलाने का हुनर देगा,
वह दुर्गम पहाड़ी हो या गड्ढे भरी सड़क,
उसमें भी गाड़ी चला ही लेगा,
हर परिस्थिति में,
स्वयं को सम्हाल ही लेगा।

जो आत्मबोध-तत्त्वबोध की साधना करेगा,
वह ही बंधनमुक्त कर्मयोगी की तरह जियेगा,
जो नित्य स्वाध्याय करेगा,
वह ही मन को साफ़ रख सकेगा।

जिसके मन में भक्ति दीप जलेगा,
वह ही कलियुग के अंधेरे से लड़ पायेगा,
ईश्वर पर जो विश्वास रखेगा,
उसके मन में ही आशा का दीप जलेगा,
जो नित्य जप-तप-भजन करेगा,
उसके भीतर ही आत्मविश्वास जगेगा,
जो नित्य पुरुषार्थ करेगा,
वह ही अपना भाग्य लिख सकेगा,
जो प्रत्येक रात मौत,
और प्रत्येक दिन एक नया जीवन मानेगा,
वह ही चैन की नींद रात में सोएगा,
जो स्वयं की शाश्वत आत्मा को जानेगा,
जो शरीर और इससे जुड़े रिश्तों को नश्वर मानेगा,
वह ही चिंता मुक्त रह सकेगा,
मन के मकड़जाल से मुक्ति पा सकेगा,
वह ही चैन की नींद सो सकेगा।


🙏🏻श्वेता, DIYA

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