प्रश्न - *कोई एक स्त्री सौ पुत्रों को कैसे जन्म दे सकती है? गांधारी सौ पुत्रों की माता कैसे बनी?*
उत्तर- आत्मीय बेटे,
आधुनिक युग से कहीं अधिक प्राचीन युग टेक्नोलॉजी और चिकित्सा से सम्पन्न था। पुष्पक विमान, ज्योतिष, खगोल, आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा, अणु-परमाणु बम से घातक हथियार सबकुछ मौजूद था।
IVF का पूरा नाम इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In Vitro Fertilization) है जिसे बहुत से लोग टेस्ट ट्यूब बेबी के नाम से भी जानते हैं, यह प्राचीन समय में खूब प्रचलित विधा थी, जो आधुनिक चिकित्सा भी उपयोग करता है। आर्टिफिशियल गर्भाधान की सरल प्रक्रिया के विपरीत (जिसमें गर्भाशय में शुक्राणु रखा जाता है और गर्भधारण सामान्य रूप से होता है), आईवीएफ (IVF in Hindi) में लैब्स में शरीर के बाहर एग और स्पर्म को जोड़ा जाता है। एक बार जब भ्रूण बन जाता है तो, उस भ्रूण को माँ या सरोगेट मां के गर्भाशय या दिव्य औषधीय के द्रव्य से भरे कृत्रिम ट्यूब जिसे प्राचीन समय में घड़ा या कुम्भ कहा जाता था में रखकर सन्तान जन्म करवाया जाता था।
सत्ययुग्, त्रेता, द्वापर और कलियुग प्रत्येक युग मे इस विधा का बहुतायत प्रयोग हुआ।
त्रेता में वानर राज सुग्रीव, हनुमानजी इत्यादि का जन्म इसी कृत्रिम विधि से हुआ था। द्वापर में बलराम का देवकी के गर्भ की जगह रेणुका के गर्भ में स्थापित होना व जन्मना इसी का परिणाम था।
धृतराष्ट्र, पांडु, विदुर भी इसी विधि से जन्मी सन्तान थीं, साथ ही पांडु पुत्र की समस्त संतानें इसी कृत्रिम विधि से जन्मी थी। गांधारी के कौरव भी इसी विधि का परिणाम थे।
एक अंडे से जुड़वा, तीन, चार और इससे अधिक बच्चों के जन्मने की घटना आये दिन हम लोग टीवी और अखबारों में पढ़ते हैं। तो एक स्त्री के अंडे का विभाजन सही तरीक़े से अणुवत नैनो स्तर करने पर सौ से अधिक भागों में उसका तोड़ा जाना सम्भव है और पुरुष के शुक्राणुओं से संयोग करवा के सौ पुत्रों को टेस्ट ट्यूब बेबी (IVF) के ज़रिए पैदा करवाना सम्भव है। गांधारी और धृतराष्ट्र को वर्षभर चिकित्सीय तपस्या करवा कर यह विधान भगवान वेदव्यास की निगरानी में पूरा करवाया गया था।
तुम जैसे आधुनिक बच्चे प्राचीन टेक्नोलॉजी के ज्ञान को इसलिए नहीं जानते क्योंकि तुम्हें हमारा समृद्धशाली गौरवशाली इतिहास पढ़ाया ही नहीं जाता।
तुम्हें तो हमारे देश के लुटेरों का इतिहास पढ़ाया जाता है जिन्होंने लूटा व यहां शासन किया। यहां की संस्कृति सभ्यता के नष्ट होने के बाद का ज्ञान तुम्हें पढ़ाया जाता है। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है, जन्म से हिंदुस्तानी, दिमाग़ से अंग्रेज और गुलाम भारत में जन्में लोगो ने शिक्षा व्यवस्था बनाई हैं, क्योंकि वह इतने वेदों के ज्ञानी तो थे नहीं कि स्वयं कुछ अपने दिमाग़ से सोच के बना सकें तो आनन-फानन में अंग्रेजो की क्लर्क बनाने वाली शिक्षा पद्धति को ही स्वतंत्रता के बाद भी लागू रखा। क्योंकि वह स्वयं उसी व्यवस्था से पढ़े थे। उन्हें दोष देना व्यर्थ है।
अब आप जैसे युवा लोगों को स्वयं भारतीय संस्कृति का इतिहास पढ़ना होगा और उसे मूल शिक्षा पद्धति में लाना होगा। बाबर और महमूद गजनवी जैसे लुटेरों का जीवन कोई पढ़ने की चीज़ नहीं है, इससे कोई विशेष लाभ नहीं है। इन्हें पाठ्यक्रम से बाहर कर गौरवशाली इतिहास को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करवाना होगा। खैर पॉलिसी के जरिये आने में अभी वक्त लगेगा। लेकिन स्वेच्छिक अतिरिक्त पुस्तको के रूप में जागरूक शिक्षक व स्कूल इसे अपने अपने स्तर पर लागू कर सकते हैं।
आप और आपके जैसे कोई भी युवा जो चाहे प्रश्न पूंछ सकते हो। हम उत्तर देने का पूर्ण प्रयास करेंगे।
🙏🏻आपकी बहन
श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय बेटे,
आधुनिक युग से कहीं अधिक प्राचीन युग टेक्नोलॉजी और चिकित्सा से सम्पन्न था। पुष्पक विमान, ज्योतिष, खगोल, आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा, अणु-परमाणु बम से घातक हथियार सबकुछ मौजूद था।
IVF का पूरा नाम इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In Vitro Fertilization) है जिसे बहुत से लोग टेस्ट ट्यूब बेबी के नाम से भी जानते हैं, यह प्राचीन समय में खूब प्रचलित विधा थी, जो आधुनिक चिकित्सा भी उपयोग करता है। आर्टिफिशियल गर्भाधान की सरल प्रक्रिया के विपरीत (जिसमें गर्भाशय में शुक्राणु रखा जाता है और गर्भधारण सामान्य रूप से होता है), आईवीएफ (IVF in Hindi) में लैब्स में शरीर के बाहर एग और स्पर्म को जोड़ा जाता है। एक बार जब भ्रूण बन जाता है तो, उस भ्रूण को माँ या सरोगेट मां के गर्भाशय या दिव्य औषधीय के द्रव्य से भरे कृत्रिम ट्यूब जिसे प्राचीन समय में घड़ा या कुम्भ कहा जाता था में रखकर सन्तान जन्म करवाया जाता था।
सत्ययुग्, त्रेता, द्वापर और कलियुग प्रत्येक युग मे इस विधा का बहुतायत प्रयोग हुआ।
त्रेता में वानर राज सुग्रीव, हनुमानजी इत्यादि का जन्म इसी कृत्रिम विधि से हुआ था। द्वापर में बलराम का देवकी के गर्भ की जगह रेणुका के गर्भ में स्थापित होना व जन्मना इसी का परिणाम था।
धृतराष्ट्र, पांडु, विदुर भी इसी विधि से जन्मी सन्तान थीं, साथ ही पांडु पुत्र की समस्त संतानें इसी कृत्रिम विधि से जन्मी थी। गांधारी के कौरव भी इसी विधि का परिणाम थे।
एक अंडे से जुड़वा, तीन, चार और इससे अधिक बच्चों के जन्मने की घटना आये दिन हम लोग टीवी और अखबारों में पढ़ते हैं। तो एक स्त्री के अंडे का विभाजन सही तरीक़े से अणुवत नैनो स्तर करने पर सौ से अधिक भागों में उसका तोड़ा जाना सम्भव है और पुरुष के शुक्राणुओं से संयोग करवा के सौ पुत्रों को टेस्ट ट्यूब बेबी (IVF) के ज़रिए पैदा करवाना सम्भव है। गांधारी और धृतराष्ट्र को वर्षभर चिकित्सीय तपस्या करवा कर यह विधान भगवान वेदव्यास की निगरानी में पूरा करवाया गया था।
तुम जैसे आधुनिक बच्चे प्राचीन टेक्नोलॉजी के ज्ञान को इसलिए नहीं जानते क्योंकि तुम्हें हमारा समृद्धशाली गौरवशाली इतिहास पढ़ाया ही नहीं जाता।
तुम्हें तो हमारे देश के लुटेरों का इतिहास पढ़ाया जाता है जिन्होंने लूटा व यहां शासन किया। यहां की संस्कृति सभ्यता के नष्ट होने के बाद का ज्ञान तुम्हें पढ़ाया जाता है। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है, जन्म से हिंदुस्तानी, दिमाग़ से अंग्रेज और गुलाम भारत में जन्में लोगो ने शिक्षा व्यवस्था बनाई हैं, क्योंकि वह इतने वेदों के ज्ञानी तो थे नहीं कि स्वयं कुछ अपने दिमाग़ से सोच के बना सकें तो आनन-फानन में अंग्रेजो की क्लर्क बनाने वाली शिक्षा पद्धति को ही स्वतंत्रता के बाद भी लागू रखा। क्योंकि वह स्वयं उसी व्यवस्था से पढ़े थे। उन्हें दोष देना व्यर्थ है।
अब आप जैसे युवा लोगों को स्वयं भारतीय संस्कृति का इतिहास पढ़ना होगा और उसे मूल शिक्षा पद्धति में लाना होगा। बाबर और महमूद गजनवी जैसे लुटेरों का जीवन कोई पढ़ने की चीज़ नहीं है, इससे कोई विशेष लाभ नहीं है। इन्हें पाठ्यक्रम से बाहर कर गौरवशाली इतिहास को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करवाना होगा। खैर पॉलिसी के जरिये आने में अभी वक्त लगेगा। लेकिन स्वेच्छिक अतिरिक्त पुस्तको के रूप में जागरूक शिक्षक व स्कूल इसे अपने अपने स्तर पर लागू कर सकते हैं।
आप और आपके जैसे कोई भी युवा जो चाहे प्रश्न पूंछ सकते हो। हम उत्तर देने का पूर्ण प्रयास करेंगे।
🙏🏻आपकी बहन
श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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