प्रश्न:- *गुरुदेव जब स्थूल शरीर मे थे तो परिजन अपनी बात उन से करते थे । परन्तु अब कैसे उन से बात करें एवं उनका कार्य को कैसे करें, उनका युगपीड़ा का दर्द को कैसे दूर करे। कृपया मार्गदर्शन करें🙏*
उत्तर- आत्मीय भाई,
स्थूल शरीर में जब गुरुदेव थे तब भी वही दर्शन उनका कर सका जो निर्मल मन और शुद्ध अंतःकरण से मिला। वही उनसे जुड़ सका।
बाकी सबने थी उनके पँच तत्वों से बने शरीर को देखा, दर्शन तो मन से मन का होता है। दर्शन सभी नहीं कर सके। नाई जिन्होंने बाल बनाये या दर्जी जिसने उन्हें स्पर्श कर कपड़े सिले वह सिद्ध योगी नहीं बने, क्योंकि उन्होंने देह देखा गुरुदर्शन नहीं किया।
गंगा के पास रहने वाले लोग नहीं तरते, वही तरते हैं जो निर्मल मन से गंगा के स्पर्श से जुड़ते हैं, जो तन के साथ गंगा में मन और हृदय को स्नान करवाते हैं।
संसार हो या अध्यात्म, जॉब तो सुपात्र को ही मिलती है। योग्यता व पात्रता विकसित करनी पड़ती है, संकल्पित होना होता है, स्वयं के निर्माण में जुटना पड़ता है।
हमने भी गुरुदेव व माताजी के पंचतत्वों से निर्मित स्थूल शरीर के दर्शन नहीं किये हैं। लेकिन हमने गुरुदेव के विचारों के दर्शन उनके 20 पुस्तकों के क्रांतिधर्मी साहित्य में और उनके दर्शन अंतःकरण में अवश्य किये हैं।
अध्यात्म जगत में उनके सहयोगी अंग अवयव बनने के लिए अनवरत प्रार्थना की। उनसे कहा, हे महाकाल! तुम तो कंकर पत्थर से भी अपना कार्य करवा सकते हो। तुम तो कीड़े मकोड़े और पशु पक्षी से भी अपना कार्य करवा सकते हो। तुम्हारे आह्वाहन से पत्थर भी शंकर बनकर मनोकामना पूरी करता है। जहां भी तुम्हारा आह्वाहन करो वहीं दिव्यता अनुभव होती है।
हे महाकाल! युगनिर्माण एक दैवीय योजना है, मुझे भी इसमें कार्य दे दो। मुझसे भी अपना कार्य करवा लो। मैं आपका आह्वाहन मन, बुद्धि, चित्त व हृदय में करती हूँ। मेरी बुद्धि रथ को अपने नियंत्रण में ले लीजिए। सर्वस्व मेरा आपके श्री चरणों मे अर्पित है। मेरे जीवन में मेरा नियंत्रण समाप्त करके अपना नियंत्रण स्थापित कर दीजिए। अब केवल आपकी इच्छा पूरी हो। आप जो चाहे वो घटित हो। जो चाहें वो करवा लें। जैसा चाहे वैसा रखें। अपने श्री चरणों का दास बना लीजिए।
कण कण में तुम ही तुम हो, बस तुम्हारा स्मरण मन मे रहे और गिलहरी सा ही सही योगदान ले लो। यह जीवन आपको समर्पित करती हूँ। यह जीवन दान स्वीकार लीजिये।
न मुझे मोक्ष चाहिए, न मुझे मुक्ति चाहिए, न मुझे स्वर्ग चाहिए, न ही मुझे नर्क का भय है, न मुझे बन्धन की चिंता है।
बस मुझे आपके निर्देशन में जीवन आपके लिए जीना है। बस आपकी ख़ुशी के लिए कुछ कर सकूं बस मेरा जीवन धन्य हो जाएगा।
🙏🏻यही प्रार्थना हम करते हैं, बस उन्हीं का ध्यान करते हैं। हमें कभी स्थूल दर्शन की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। हमें कभी भी भगवान से बात करने में कोई असुविधा नहीं हुई। बस उनके समक्ष प्रार्थना करके बैठ जाते हैं, उनके बताये समाधान मन में उभर जाते हैं। गुरुदेव माता जी की तस्वीर को बस एक टक देखते रहते हैं, उनसे सम्वाद हो जाता है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- आत्मीय भाई,
स्थूल शरीर में जब गुरुदेव थे तब भी वही दर्शन उनका कर सका जो निर्मल मन और शुद्ध अंतःकरण से मिला। वही उनसे जुड़ सका।
बाकी सबने थी उनके पँच तत्वों से बने शरीर को देखा, दर्शन तो मन से मन का होता है। दर्शन सभी नहीं कर सके। नाई जिन्होंने बाल बनाये या दर्जी जिसने उन्हें स्पर्श कर कपड़े सिले वह सिद्ध योगी नहीं बने, क्योंकि उन्होंने देह देखा गुरुदर्शन नहीं किया।
गंगा के पास रहने वाले लोग नहीं तरते, वही तरते हैं जो निर्मल मन से गंगा के स्पर्श से जुड़ते हैं, जो तन के साथ गंगा में मन और हृदय को स्नान करवाते हैं।
संसार हो या अध्यात्म, जॉब तो सुपात्र को ही मिलती है। योग्यता व पात्रता विकसित करनी पड़ती है, संकल्पित होना होता है, स्वयं के निर्माण में जुटना पड़ता है।
हमने भी गुरुदेव व माताजी के पंचतत्वों से निर्मित स्थूल शरीर के दर्शन नहीं किये हैं। लेकिन हमने गुरुदेव के विचारों के दर्शन उनके 20 पुस्तकों के क्रांतिधर्मी साहित्य में और उनके दर्शन अंतःकरण में अवश्य किये हैं।
अध्यात्म जगत में उनके सहयोगी अंग अवयव बनने के लिए अनवरत प्रार्थना की। उनसे कहा, हे महाकाल! तुम तो कंकर पत्थर से भी अपना कार्य करवा सकते हो। तुम तो कीड़े मकोड़े और पशु पक्षी से भी अपना कार्य करवा सकते हो। तुम्हारे आह्वाहन से पत्थर भी शंकर बनकर मनोकामना पूरी करता है। जहां भी तुम्हारा आह्वाहन करो वहीं दिव्यता अनुभव होती है।
हे महाकाल! युगनिर्माण एक दैवीय योजना है, मुझे भी इसमें कार्य दे दो। मुझसे भी अपना कार्य करवा लो। मैं आपका आह्वाहन मन, बुद्धि, चित्त व हृदय में करती हूँ। मेरी बुद्धि रथ को अपने नियंत्रण में ले लीजिए। सर्वस्व मेरा आपके श्री चरणों मे अर्पित है। मेरे जीवन में मेरा नियंत्रण समाप्त करके अपना नियंत्रण स्थापित कर दीजिए। अब केवल आपकी इच्छा पूरी हो। आप जो चाहे वो घटित हो। जो चाहें वो करवा लें। जैसा चाहे वैसा रखें। अपने श्री चरणों का दास बना लीजिए।
कण कण में तुम ही तुम हो, बस तुम्हारा स्मरण मन मे रहे और गिलहरी सा ही सही योगदान ले लो। यह जीवन आपको समर्पित करती हूँ। यह जीवन दान स्वीकार लीजिये।
न मुझे मोक्ष चाहिए, न मुझे मुक्ति चाहिए, न मुझे स्वर्ग चाहिए, न ही मुझे नर्क का भय है, न मुझे बन्धन की चिंता है।
बस मुझे आपके निर्देशन में जीवन आपके लिए जीना है। बस आपकी ख़ुशी के लिए कुछ कर सकूं बस मेरा जीवन धन्य हो जाएगा।
🙏🏻यही प्रार्थना हम करते हैं, बस उन्हीं का ध्यान करते हैं। हमें कभी स्थूल दर्शन की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। हमें कभी भी भगवान से बात करने में कोई असुविधा नहीं हुई। बस उनके समक्ष प्रार्थना करके बैठ जाते हैं, उनके बताये समाधान मन में उभर जाते हैं। गुरुदेव माता जी की तस्वीर को बस एक टक देखते रहते हैं, उनसे सम्वाद हो जाता है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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