प्रश्न - *मेरी बुआ की लड़की अत्यंत जॉली व फ्रेंक नेचर की बेबाक़ लड़की है। उसकी शादी अत्यंत कम बोलने वाले धीर गम्भीर व्यक्ति से हुई है। फोन पर जब भी विदेश जाते हैं बात कर लेते हैं, जब भी पति सामने होते हैं दस बात बोलो तो एक शब्द में जवाब देते है। वह नर्वस हो जाती है, समझ नहीं आता क्या करे? मार्गदर्शन करें*
उत्तर - आत्मीय बहन, अपनी उन बहन को बोलो, प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति भिन्न होती है। कमल के फूल का अपना महत्त्व है और गुलाब का अपना महत्त्व है। जॉली नेचर का भी महत्त्व है और धीर-गम्भीर नेचर का भी महत्त्व है।
उनसे कहो, अपने जॉली व फ्रैंक नेचर को पति में ढूंढने की गलती न करे। जैसा है वैसा स्वीकारे और गृहस्थी में एडजस्ट करे। ज़रा सोचो, उनके पति भी यदि पत्नी में गम्भीर नेचर ढूढ़े तो समस्या बढ़ न जाएगी????
पांच उंगलियां बराबर नहीं, दो आंख हूबहू एक नहीं, दो हाथों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते तो भला दो इंसान के स्वभाव व व्यवहार एक जैसे कैसे हो सकते हैं?
बिजली भी तब जलती है, जब एक "+" और दूसरा "-" होता है।
अतः दो लोगों के स्वभाव की भिन्नता में इसमें नर्वस होने जैसी तो कोई बात नहीं है। अपितु एक दूसरे को समझ के व्यवहार करने की जरूरत है।
अतः जीवनसाथी को अपने जैसा बनाने की इच्छा त्यागें जो जैसा है उसे समझ के व्यवहार करें। जो मिला है वह ईश्वर की कृपा है। मित्रवत रहें व उनके एक शब्द के उत्तर में से दस सम्वाद के प्रश्न के उत्तर समझने की कला विकसित करें।
मनुष्य की प्रकृति समझना और तद्नुसार व्यवहार करना ही जीवन जीने का उत्तम उपाय है।
एक दूसरे को बदलने की जगह एक दूसरे को समझने की जरूरत उत्तम गृहस्थी की प्राथमिकता है। दोस्त बने, एक दूसरे के मन को समझें, तब शब्दों की आवश्यकता ही न रह जायेगी।
विवाह *देवता* बनकर किसी के जीवन को सुखमय करने हेतु करें, यदि *लेवता* बनकर सुख मनचाहा पाने की इच्छा करेंगे तो दुःख निश्चयत: मिलेगा।
*निःश्वार्थ सुख* व सेवा देने वाले को सुख व सेवा स्वयंमेव मिलता है। प्रकृति यज्ञ स्वरूप है, यहां जिस भावना से जीवन जियोगी वह तुम तक वैसा अवश्य लौटेगा। पत्थर की मूर्ति में भगवान का आह्वान तो सब करते हैं, तुम जीवित इंसान की मूर्ति पति में भी ईश्वर का आह्वाहन करके सती अनुसुइया जैसे गृहस्थ सुख के साथ तपस्या का फल भी प्राप्त कर सकती हो। भाव बदलो और जीवन में फर्क स्वयंमेव दिखेगा।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - आत्मीय बहन, अपनी उन बहन को बोलो, प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति भिन्न होती है। कमल के फूल का अपना महत्त्व है और गुलाब का अपना महत्त्व है। जॉली नेचर का भी महत्त्व है और धीर-गम्भीर नेचर का भी महत्त्व है।
उनसे कहो, अपने जॉली व फ्रैंक नेचर को पति में ढूंढने की गलती न करे। जैसा है वैसा स्वीकारे और गृहस्थी में एडजस्ट करे। ज़रा सोचो, उनके पति भी यदि पत्नी में गम्भीर नेचर ढूढ़े तो समस्या बढ़ न जाएगी????
पांच उंगलियां बराबर नहीं, दो आंख हूबहू एक नहीं, दो हाथों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते तो भला दो इंसान के स्वभाव व व्यवहार एक जैसे कैसे हो सकते हैं?
बिजली भी तब जलती है, जब एक "+" और दूसरा "-" होता है।
अतः दो लोगों के स्वभाव की भिन्नता में इसमें नर्वस होने जैसी तो कोई बात नहीं है। अपितु एक दूसरे को समझ के व्यवहार करने की जरूरत है।
अतः जीवनसाथी को अपने जैसा बनाने की इच्छा त्यागें जो जैसा है उसे समझ के व्यवहार करें। जो मिला है वह ईश्वर की कृपा है। मित्रवत रहें व उनके एक शब्द के उत्तर में से दस सम्वाद के प्रश्न के उत्तर समझने की कला विकसित करें।
मनुष्य की प्रकृति समझना और तद्नुसार व्यवहार करना ही जीवन जीने का उत्तम उपाय है।
एक दूसरे को बदलने की जगह एक दूसरे को समझने की जरूरत उत्तम गृहस्थी की प्राथमिकता है। दोस्त बने, एक दूसरे के मन को समझें, तब शब्दों की आवश्यकता ही न रह जायेगी।
विवाह *देवता* बनकर किसी के जीवन को सुखमय करने हेतु करें, यदि *लेवता* बनकर सुख मनचाहा पाने की इच्छा करेंगे तो दुःख निश्चयत: मिलेगा।
*निःश्वार्थ सुख* व सेवा देने वाले को सुख व सेवा स्वयंमेव मिलता है। प्रकृति यज्ञ स्वरूप है, यहां जिस भावना से जीवन जियोगी वह तुम तक वैसा अवश्य लौटेगा। पत्थर की मूर्ति में भगवान का आह्वान तो सब करते हैं, तुम जीवित इंसान की मूर्ति पति में भी ईश्वर का आह्वाहन करके सती अनुसुइया जैसे गृहस्थ सुख के साथ तपस्या का फल भी प्राप्त कर सकती हो। भाव बदलो और जीवन में फर्क स्वयंमेव दिखेगा।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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