प्रश्न- *गुरुगीता श्लोक १३१ vs १७८,१७९ - एक ओर गुरूगीता को दूसरों से बाँटने कहा गया है दूसरी ओर इसे किसी के सामने (देवों को भी) प्रकट ना करने कहा गया है ।*
उत्तर - आत्मीय भाई, स्वयं के शरीर की चिकित्सा करने व ऑपरेशन करने का अधिकार किसी भी अयोग्य चिकित्सक को कोई नहीं देता। पहले चिकित्सक की योग्यता व पात्रता की जानकारी लेता है, तब सौंपता है।
इसीतरह बैंक के कई सारे एम्प्लॉई में से केवल योग्य व सुपात्र को ही बैंक लॉकर की चाबी दी जाती है।
गुरुगीता जैसे महत्त्वपूर्ण साधना अनुष्ठान का ज्ञान अयोग्य व अनअधिकारियों को देने से भगवान शंकर ने मना किया है।
उन देवों के समक्ष भी गुरुगीता नहीं कहनी चाहिए जो इसका महत्त्व नहीं समझते व इसका आदर नहीं करते।
लेकिन योग्य व सुपात्र शिष्य को जिस प्रकार गुरु स्वयं ढूढ़कर शिष्य बनाता है, ऐसे ही योग्य व सुपात्र लोगों तक गुरुगीता अनुष्ठान को पहुंचाना और उनके भीतर के शिष्यत्व को जगाने में मदद हेतु गुरुगीता उन तक निःशुल्क पहुंचाना अत्यंत पुण्यफलदायी है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - आत्मीय भाई, स्वयं के शरीर की चिकित्सा करने व ऑपरेशन करने का अधिकार किसी भी अयोग्य चिकित्सक को कोई नहीं देता। पहले चिकित्सक की योग्यता व पात्रता की जानकारी लेता है, तब सौंपता है।
इसीतरह बैंक के कई सारे एम्प्लॉई में से केवल योग्य व सुपात्र को ही बैंक लॉकर की चाबी दी जाती है।
गुरुगीता जैसे महत्त्वपूर्ण साधना अनुष्ठान का ज्ञान अयोग्य व अनअधिकारियों को देने से भगवान शंकर ने मना किया है।
उन देवों के समक्ष भी गुरुगीता नहीं कहनी चाहिए जो इसका महत्त्व नहीं समझते व इसका आदर नहीं करते।
लेकिन योग्य व सुपात्र शिष्य को जिस प्रकार गुरु स्वयं ढूढ़कर शिष्य बनाता है, ऐसे ही योग्य व सुपात्र लोगों तक गुरुगीता अनुष्ठान को पहुंचाना और उनके भीतर के शिष्यत्व को जगाने में मदद हेतु गुरुगीता उन तक निःशुल्क पहुंचाना अत्यंत पुण्यफलदायी है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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