Sunday 21 June 2020

प्रश्न - *प्रणाम दीदी, मै रात मे 8-9 घंटे सोती हूँ। लेकिन सुबह उठने के बाद बहुत आलस्य बना रहता है जैसे लगता है बिल्कुल भी सोए ही नही और ऐसा दिनभर बना रहता है कोई काम करने का मन भी नही होता न ही चैतन्यता रहती है। घर मे डाँट भी पड़ती है। आपने जो काम दिया था वो भी नही करने का मन होता। क्या करूँ* 😔

प्रश्न - *प्रणाम दीदी, मै रात मे 8-9 घंटे सोती हूँ। लेकिन सुबह उठने के बाद बहुत आलस्य बना रहता है जैसे लगता है बिल्कुल भी सोए ही नही और ऐसा दिनभर बना रहता है कोई काम करने का मन भी नही होता न ही चैतन्यता रहती है। घर मे डाँट भी पड़ती है। आपने जो काम दिया था वो भी नही करने का मन होता। क्या करूँ* 😔

उत्तर - आत्मीय बहन, जब दिनचर्या में  मानसिक सजगता के कार्य कम होते हैं और उत्साह उमंग की कमी होती है तो नींद अत्यधिक आती है।

नींद न आना भी ग़लत है और नींद अधिक आना भी उतना ही गलत है।

नींद दो प्रकार की होती है - जैवकीय नींद (Biological Sleep) और मनोवैज्ञानिक नींद (Psychological Sleep) ।  जिस व्यक्ति की दिनचर्या में मानसिक व शारीरिक श्रम सम्मिलित होगा उसे रात को गहरी नींद आती है। शरीर व मन कार्य मे थकेगा, अच्छी भूख लगेगी और अच्छी नींद आएगी।

जिस व्यक्ति के पास शरीर को थकाने के लिए कार्य व व्यायाम नहीं होता, मन को थकाने के लिए मानसिक सजगता का कार्य व ध्यान नहीं होता। उन्हें बायोलॉजिकल नींद आने में समस्या 100℅ होगी।  बायोलॉजिकल गहरी नींद पांच से छः घण्टे एक युवा के लिए पर्याप्त है।

यदि छः घण्टे सोने के बाद भी दिन भर आलस्य छाया रहता है, व नींद अधिक आने की समस्या बनी है, तो इसका अर्थ यह है कि बायोलॉजिकल नींद गहरी नहीं थी, व सोने से पूर्व आप चिंता व तनाव में थे, जिस कारण शरीर तो सोने के लिए लेटा, मन से नहीँ सो पाए। शरीर की उपस्थिति नींद में थी लेकिन मन उपलब्ध बिस्तर में सोने के लिए शरीर के साथ नहीं था। मन को सुबह उठकर मन की सजगता का उत्साह उमंग से भरा क्या कार्य करना है रात को सूचित नहीं किया गया। जब मन को यह नहीं पता होगा कि सुबह उठकर क्या क्या करना है, तो वह आइडल स्टेज में चला जाता है और यह साइकोलॉजिकल(मनोवैज्ञानिक) नींद में चला जाता है। यदि आपने दिमाग़ बताया ही नहीं कि उसकी ज़रूरत आज क्यों है तो भला वह क्यों जगा रहे?

एक दूसरा कारण है - ख़राब स्वास्थ्य होना। तबियत ठीक न हो तो भी आलस्य आता है।

तीसरा कारण है - भोजन में शुद्धसात्विक भोजन, फ़ल, सब्जी व ऊर्जा देने वाले सलाद की मौजूदगी न होना। मात्र तलभुना व अत्यधिक मसालेदार भोजन करने वालों का पेट अपसेट रहता है। तब भी आलस्य बहुत आता है।

चौथा कारण है - मनोमन्जन व मनोरंजन की उचित व्यवस्था जीवन में न होना। मन का मनोमन्जन अच्छी पुस्तकों के स्वाध्याय से होता है, मन का मनोरंजन कुछ खेल, सङ्गीत व एक्टिविटी से होता है। यदि मनोमन्जन व मनोरंजन की व्यवस्था न हुई तो भी मन आलस्य से भरता है।

पांचवा कारण - जीवन में जो कार्य कर रहे हैं उसमें आपकी कोई रुचि नहीं है। बस जबरन कर रहे है, स्वयं की इच्छा आकांक्षा के विरुद्ध कर रहे हैं। इसलिए आलस्य से मनभरा है।

🙏🏻 समाधान - स्वयं का ख़्याल रखिये,  चैतन्यता व होश का जीवन मे समावेश कीजिये। जीवन बोर क्यों है उसके कारण को समझिए व उसके निवारण में जुटिये। कुछ नित्य रूचिकर कीजिये, गाना गाइये, चित्र बनाइये, लेख लिखिए, किसी समस्या पर अपने विचार रखिये। स्वयं के मन को कार्य देकर व्यस्त रखिये।

शरीर व मन के लिए दिनचर्या बनाइये, दिन का लक्ष्य बनाएं और उस लक्ष्य को पूरा करें। स्वयं को कार्य करने पर शाबाशी दें, स्वयं की रुचि का पता लगाएं, तदनुसार प्रतिभा विकसित करें व उसको निखारे।

उत्साह व उमंग युक्त मानसिक सजगता का कार्य मनोवैज्ञानिक नींद पर विजय दिलाता है। आइंस्टीन  हो या मोदी हों या युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव श्रीराम आचार्य हों या एडिसन हो या वर्तमान में मोदी जी हों, यह सब कम नींद में भी ऊर्जा से भरे है क्योंकि इनकी मानसिक सजगता भरा कार्य जीवन का अंग है। इन सबमें कुछ कर गुजरने का जुनून था व है।

मनोवैज्ञानिक नींद का उपचार दवा से सम्भव नहीं है, इसका उपचार आपके हाथ में है। अस्त व्यस्त मन:स्थिति को व्यवस्थित करने की जरूरत है। प्रत्येक दिन कुछ कर गुजरने हेतु कुछ उत्साह उमंग युक्त कार्य करने की जरूरत है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

यदि कोई भाई बहन मेरी लिखी पोस्ट में से मेरा नाम हटा कर अपने नाम से पोस्ट करते हैं, तो मुझे स्नेह करने वाले भाई बहन आपको गुस्सा आता है। लेकिन आप उन पर गुस्सा न करें, उन्हें भला बुरा न कहें, उन्हें कुछ न कहें, उन्हें मत टोंकिये। उन्हें करने दें। आप बस अपना स्नेह आशीर्वाद मुझ पर बनाये रखिये, आप सब के हम आभारी हैं। गुरूकृपा से लेखक की ऊर्जा उसके पाठक होते हैं, जो उससे स्नेह करते हैं। उसकी पोस्ट का इंतज़ार करते हैं।मेरी ऊर्जा आप हैं, मेरे लिए आपका स्नेह पर्याप्त है। कोई नाम व प्रतिष्ठा की मुझे चाहत नहीं है। मैं तो अपना नाम इसलिए लिखती हूँ जिससे इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी अधिनियम के तहत इस कंटेंट की जिम्मेदारी मेरी है, इसमे मानसिक उपचार की विधियां होती है। यदि किसी को कोई शंका हो तो वह मुझसे पूंछ सके। लोग अपने प्रश्नमुझ तक पहुंचा सकें।गुरु कृपा से सेवा का सौभाग्य मुझे मिलता रहे। बस इसलिए  काउंसलिंग के कंटेंट के नीचे लेखन कि जिम्मेदारी उठाते हुए नाम लिखती हूँ।

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...