Sunday, 21 June 2020

मष्तिष्क एक कल्पवृक्ष है - लेकिन इस कल्पवृक्ष को गर्भ से ही सम्हालना होता है। इसे एक्टिव व जागृत रखने के लिए उम्रभर प्रयास करना होता है

*मष्तिष्क एक कल्पवृक्ष है - लेकिन इस कल्पवृक्ष को गर्भ से ही सम्हालना होता है। इसे एक्टिव व जागृत रखने के लिए उम्रभर प्रयास करना होता है।*

गर्भवती माता मानसिक रूप से जितनी सक्रिय व मानसिक सजगता के साथ कार्य करती है। माता जितनी मानसिक मेहनत करती है उतना बच्चे के मष्तिष्क के न्यूरॉन्स सक्रिय होते हैं।

मनुष्य का मष्तिष्क न्यूरॉन्स नाम के विशेष संवेदनशील कोशिकाओं से बना है। जैसे ही गर्भ में भ्रूण स्थापित होता है, उसके तुरन्त बाद से ही मष्तिष्क के न्यूरॉन्स बनने लगते हैं। दो से चार महीने के अंदर लगभग 20 खरब तक उनकी संख्या पहुंच जाती है। लेकिन यह संयोग की बात है कि माता पिता की अज्ञानता व लापरवाही के कारण संयोग की बात यह है कि छः से सात महीने में गर्भस्थ शिशु के 50% न्यूरॉन्स नष्ट हो जाते हैं।

आइये इसका कारण समझते हैं - मनुष्य के मष्तिष्क की कोशिकाएं (न्यूरॉन्स) बहुत संवेदनशील हैं। इनके जीवित रहने के लिए जरूरी है कि इन्हें कोई न कोई काम मिलता रहे। क्योंकि गर्भ में पल रहे शिशु का सीधा कनेक्शन माता के दिमाग से होता है। यदि माता सजग व सक्रिय दिमाग से कोई कार्य, चिंतन, स्वाध्याय व ध्यान नहीं करती, कोई विशेष मानसिक कार्य नहीं करती या गर्भवती तनाव ग्रस्त, अस्वस्थ, नशे का आदी है तो माता के मष्तिष्क के असक्रियता से बच्चे के मष्तिष्क को कार्य नहीं मिलता, सक्रियता कम होने मष्तिष्क के न्यूरॉन्स को काम न मिलने से वह सुस्त होती है, धीरे धीरे नष्ट होने लगती हैं।

यहां सभी होने वाले माता पिता व उनके परिवार जन को यह महत्त्वपूर्ण बात समझनी चाहिए कि यदि बच्चे को गर्भ के अंदर उसके मष्तिष्क के विकास के लिए सही परिवेश नहीं मिल पाया तो उसे इतना बड़ा नुकसान  उठाना पड़ता है कि उसकी भरपाई जिंदगी भर नहीं हो पाती है।

यह वैज्ञानिकों का मानना है कि नवजात शिशु जितने न्यूरॉन्स लेकर गर्भ से बाहर आता है, वही उसके दिमाग़ की जीवन भर की पूंजी होती है। यदि यही पूंजी गर्भ से आने से पहले कम हो गई तो उसकी भरपाई कभी भी नहीं हो पाती, क्योंकि जन्म के बाद कभी भी नए न्यूरॉन्स नहीं बनते।

लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि जन्म के बाद नए न्यूरॉन्स बनने बन्द हो गए तो मष्तिष्क का विकास वहीं रुक जाता है। मष्तिष्क का विकास जारी रहता है, लेकिन दूसरे तरह से..

शिशु के जन्म से लेकर एक साल की उम्र तक मष्तिष्क में अरबो खरबो नए साइनेप्स बनते है। यह सन्देश को लाने ले जाने का कार्य करते हैं। जब सीखने की प्रक्रिया शुरू होती है, तब हमारा मष्तिष्क न्यूरॉन्स की संख्या में वृद्धि करने की बजाय साइनेप्स के द्वारा न्यूरॉन्स कोशिकाओं के आपसी सम्बन्धो को मजबूत बनाता है।

वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रयोगों में यह पाया है कि जो बालक जितनी जटिल परिस्थितियों को सामना करते हुए बड़ा होता है, उसे उतना ज्यादा दिमाग  उपयोग करना पड़ेगा। इससे उसके मष्तिष्क के साइनेप्स सक्रिय होकर उसकी मष्तिष्क की क्षमता को बढ़ा देंगे।

हमें इस खतरनाक चेतावनी को याद रखना चाहिए - यदि बचपन मे बनने वाले साइनेप्स व्यवहार और अनुभव के साथ जुड़कर मजबूत नहीं बन पाए तो यह साइनेप्स भी खत्म होने लगेंगे और दोबारा नहीं बनेंगे।

मष्तिष्क की क्षमता सीमाओं से परे है।  जीनियस वह है जो सही बात का सही तरीके से प्रयोग कर सके।

मष्तिष्क को दस प्रकार के कार्य नियमित मिलते रहना चाहिए:-

1- ज्ञान प्राप्त करना
2- सूचनाओं का संकलन करना
3- ज्ञान का विश्लेषण करना
4- ज्ञान का उपयोग कर सृजन करना, कुछ इनोवेटिव करना
5- नियंत्रण व संतुलन करना
6- नित्य 15 मिनट कम से कम ध्यान
7- नित्य आधे घण्टे कुछ न कुछ पुस्तकों का स्वाध्याय करना
8- कुछ न कुछ जरूर लिखना
9- स्वस्थ शरीर मे स्वस्थ मन का वास होता है, मष्तिष्क को ऊर्जा युक्त भोजन देना
10- योग व प्राणायाम करना


मष्तिष्क की क्षमता व प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती, यह साधारण परिस्थिति में सुस्त होती है और प्रतिकूल परिस्थिति में अधिक निखरती है।

मष्तिष्क की क्षमता को बचपन से वृद्धावस्था तक अनवरत प्रखर रखने के लिए योग, व्यायाम,  ध्यान व स्वाध्याय करना चाहिए। मष्तिष्क को सजगता व सक्रियता के कार्य देते रहना चाहिए, जिससे उसे काम मिलता रहे और दिमाग़ सक्रिय रहे।

रेफरेंस पुस्तक - *मष्तिष्क एक कल्पवृक्ष (युगऋषि पं श्रीराम शर्मा आचार्य)* और *पढ़ो तो ऐसे पढ़ो (डॉ. विजय अग्रवाल)*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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