Monday, 1 June 2020

प्रश्न - *सुख की सृष्टि कौन करता है? परिस्थति या मनःस्थिति?*

प्रश्न - *सुख की सृष्टि कौन करता है? परिस्थति या मनःस्थिति?*

उत्तर- इस प्रश्न का उत्तर प्रैक्टिकल द्वारा समझाने के लिए विवेकानंद जी शिष्यों को मन्दिर निर्माण हेतु पत्थर तोड़ने वाले मजदूरों के समक्ष ले गए। सभी की परिस्थिति एक सी व कार्य एक सा था।

सबसे एक ही प्रश्न विवेकानन्द जी ने किया कि आप क्या कर रहे हैं?

तीनो मजदूर के उत्तर इस प्रकार थे:-

1 - *पहला मजदूर ने उत्तर दिया* - मेरी फ़ूटी किस्मत का उपहास उड़ाने आये हो सन्यासी? दिख नहीं रहा जिस प्रकार मेरी किस्मत फ़ूटी है वैसे ही पत्थर फोड़ रहा हूँ।

2- *दूसरे मजदूर ने उत्तर दिया* - सन्यासी पापी पेट का सवाल है, इसे भरने के लिए उपक्रम कर रहा हूँ। मजदूरी कर रहा हूँ, पत्थर तोड़ रहा हूँ।

3- *तीसरे मजदूर आनन्दित व उत्साहित होकर उत्तर दिया* - सन्यासी तुम जिस भगवान की पूजा करते हो, मैं उस भगवान की आराधना स्थली मन्दिर निर्माण करने हेतु पत्थर तोड़ रहा हूँ। मेरा सौभाग्य देखो, हर क्षण हर पल उसके सुमिरण का अवसर मुझे मिल रहा है। प्रत्येक पत्थर पर पड़ने वाला हथौड़ा मुझे मन्दिर की घण्टी से मधुर सुनाई देता है, मुझे भगवन के और क़रीब लाता है। मेरा सौभाग्य जो मुझे प्रभु सेवा का सौभाग्य मिला।

विवेकानन्द जी ने शिष्यों से पूँछा  बताओ, परिस्थति व कार्य के उपरान्त मजदूरी तो तीनों को समान मिलेगी। मग़र इन तीनो में से सुख-सन्तोष किसे मिलेगा?

शिष्यों ने उत्तर दिया - तीसरे मजदुर को, क्योंकि वह यह कार्य ईश्वर की सेवा का सौभाग्य समझ कर रहा है।

विवेकानन्द जी ने कहा - शिष्यों इस घटनाक्रम में से यह सिद्ध हुआ कि परिस्थिति नहीं अपितु मनःस्थिति संतोष व सुख का कारण बनती है।

इसीतरह मात्र बाह्य परिस्थितियों में व बाह्य आवरण में योगी के गेरुए वस्त्र धारण करने से व संसार के त्याग से भगवत सिद्धि नहीं होती, मन से गेरुए व्रत अग्निवत धारण करने होते हैं, मन से समस्त आसक्ति का त्याग कर सन्यासी बनना पड़ता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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